पृष्ठ:ज्ञानकोश भाग 1.pdf/११५

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मा- पिपा नीतिके अनुसार धाकू प्राप्त करने और मध्यएशिया ' केवल नाम मात्रको रह गया । में प्रवेश करनेको तय्यारी तुर्किस्तानने प्रारम्भ अटक जिज्ञा--पंजाब प्रांतका यह एक कर दी। उनसे युद्ध करनेके लिये तथा वाकूकी 'जिला है। इसका क्षेत्रफल ४१२२ वर्ग मील है। अरमेनियन फौजकी सहायताके लिये जनरल इसके पश्चिम और वायव्यमें सिन्धु नदी, वायब्य डन्स्टर हील के नेतृत्वमें एक ब्रिटिशफौज मोसोपोटे.. सीमाप्रान्तमें कोहार और पेशावर ज़िला, ईशान्य मियासे भेजी गई । महासमरकी तहकूबी सन्धिके में इसी प्रान्तका हजाग जिला, पूर्वमें गवलपिंडी, अनुसार तुर्की और जर्मन सेना इस भागको छोड़ आग्नेयमै झेलम, दक्षिणमें शाहपूर और नैऋत्यमै कर चली गई और ग्रिटिश फौजने वाकू पर अपना मियाँवाला जिला है। तल-गंगका पठार समुद्रतल से अधिकार स्थापित किया। वहाँ पर शासन १२०० फीट ऊँचा होनेके कारण दूसरे 'भागोंकी व्यवस्था ठीक करने के लिये तथा व्यापारियोंको : अपेक्षा इसकी बहवा सर्द है। अदकके पठार, तेलोंके कारखानोंका ठीक ठीक प्रबन्ध करने, जहाज जंगलके बालुकामय प्रदेश, तथा भरवंदकी छोटी बनाने, बैंक खोलने, डाक, तार रेल जारी करने, छोटी पहाड़ियों पर अधिक गग्मी पड़ती है। पुलिस विभाग, न्याय विभाग, इत्यादि स्थापित ! यहांको दृष्टिकी वार्षिक औसत १७ से २४ इञ्च करने में ब्रिटिश अधिकारियोंने बड़ी सहायता की। तक है। इससे इस राज्यमें शांति तथा सुव्यवस्था स्थापित इतिहास--- इसका और गवलपिंडी जिलका हो गई थी, किन्तु १६१६ ई० के अगस्त मासमै इतिहास करीब करीब एक है। यह बुद्ध के समय ब्रिटिश सेनाके चले जानेके बाद यहाँ फिर गड़बड़ से विख्यात था। उस समयके भुण्य खगडहर शुरू हो गई। अब तक हसन अब्दुला गाँव इत्यादिमें पाये जाते १९१8 ई. के जनवरी महीने में जो सन्धिपरि है। एक समय यह नक्षिला गज्यके अधिकारमें पद्की बैठक पेरिसमें हुई थी उसमै काकेशिया था। मुहम्मद गजनवीने अानन्द-पालका पराभव प्रदेशकी ओर बहुत कुछ ध्यान दिया गया था। अहिन्दके पास किया था। तत्कालीन अहिन्द परन्तु वहाँके लोक सत्तात्मक राज्योंने सीमाप्रान्तके टकके समीप ही था। झगड़ोको परस्पर ही निवटाने का निश्चय कर जनश्श्या--१४२१ ई. में इस जिलेकी जन- लिया, और उन लोगोको हस्तक्षेप करने न दिया। । संख्या ११२२४६ थी। जनसंख्या में से फीसदी भविष्यमें झगड़ा रोकने के लिये एक हाई कमिश्नर मुसलमान है। यहाँ पंजाबकी भिन्न भिन्न नियुक्त किया गया । वातूम जार्जियाको फिरसे । जातियाँ बसी हुई हैं। यहाँ के निवासी पश्तों प्राप्त हुअा। किन्तु सेहिसकी सन्धिसे श्रनाटो- भाषा बोलते हैं । लियामें फिर बड़ी हलचल मच गई, और उसका खेती--इस जिलेके उत्तरमें चाँत्रका चौरस प्रभाव अज्हरवैजान पर भी बहुत पड़ा । मित्रगष्ट्र मैदान अत्यन्त उपजाऊ है। सौहान और दूसरी ( Allier ) से तुर्को तथा रूसी बोलशेविको नदियों के किनारेकी जमीन भी उपजाऊ है। अन्य दोनों ही का झगड़ा था । अतः कुछ कालके लिये | स्थानोकी भूमि उपजाऊ नहीं है पर यहाँको बस्ती ये दोनों मिल गये और मित्रराष्ट्रके हाथसे इसे कम होनेके कारण वृष्टि कम होने पर भी यहाँ फिर निकाल लेने का प्रयत्न करने लगे। अकाल नहीं मालूम पड़ता है। यहाँको मुख्य १४२० में रूसने वहाँका स्वतन्त्र राष्ट्र नष्ट कर पैदावार तो गेहूँ है, पर चना, बाजड़ा, इत्यादि सोवियेट राष्ट्र स्थापित किया। इसके बाद जब अनाज भी पैदा होते हैं। यहाँ पर घोड़े उत्तम तातारियोंने वहाँ विद्रोह किया तो १५००० तातारी होते हैं। का बोलशेविकाने नाश कर डाला। आगे चलकर अटक जिले में संगमरमरकी खल तथा अनेक तुर्किस्तानकी सहायतासे जार्जिया और एरिहान अन्य वस्तुयें तय्यार की जाती हैं। काला पहाड़ के स्वतन्त्र लोक-सत्तात्मक राज्योंका भी इन्होंने में कोयला मिलता है। फतेहगंजके पास मिट्टीका श्रन्त कर दिया। तुर्किस्तानको इसके फलस्वरूप तेल निकालनेके पाँच कुग है । अईनान, कार्स, और आर्मेनियाका कुछ भाग प्राप्त व्यापार और विज्ञारन---इस जिले में कोई भी बड़े हुना। और रूसने ट्रान्स-काकेशियाका वह भाग महत्वका कारखाना नहीं है। यहाँ रेशमी तथा जो युद्ध के पहले उसके श्राधीन था अपने अधिकार ; सूती कपड़ा वुना जाता है। इसके अतिरिक्त में फिरसे कर लिया। अजहर बैजान, जाजिया लकड़ीके काम, लोहे के बर्तन, ताला, चटाइयाँ, और एरिद्वानके स्वतन्त्र-राज्यका अस्तित्व आय साबुन इत्यादि वस्तु यहाँ बाहरसे आती है।