पृष्ठ:ज्ञानकोश भाग 1.pdf/११६

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अटक नदी ज्ञानकोश (अ) १०३ अटक गॉव नार्थ वेस्टर्न रेलवेकी एक शाखा इस जिलेके | जीत कर अटक नदीके पार खदेड़ दें (राजवाड़े उत्तर भागमे होकर गई है । मध्यभागसे खुशहाल खं० १-१५६२४५)। इससे स्पष्ट है कि मराठोंने गढ़वाली एक शाखा गई है । पश्चिम सागमे ! अपने देशको सीमा खैबरदर्ग, केटा इत्यादि न भारीअटक शाख कॅम्बलपुर ( Campbelpur) समझ कर शत्रुको केवल अटक पार ही करना से मुलतानकी ओर गई है। रेलवेकी लाईनसे चाहा। जिस प्रकार 'असितु हिमाचल' सम्पूर्ण सटी हुई दो सड़कें, 'हसन अब्दाल अबटाबाद' भारतके लिये व्यवहार किया जाता है उसी भाँति और 'रावल पिंडी खुशहालगढ़' तक पक्की बनी | अटकसे रामेश्वर तक भी समझा जाता है । १७३२ ई० में बालाजी बाजीरावने पिलाजी जाधवको राज्य-व्यवस्या-अटक पिंडीघेव. फतेहगा | लिखा था कि नवाव और मराठोंका देश अटकसे और तलगंगमें तहसीलदार और नायब तहसील रामेश्वर तक है। दार रहते हैं। कॅम्बॅलपूर जिलेका मुख्य स्थान अटक गाँव-यह गाँव, पंजाब प्रान्त अटक है। यहाँ डिप्टी कमिश्नर रहता है। जिलेके अटक ताल्लुकेका मुख्य स्थान । यह पिंडी और हजाराम म्युनिसिपैलटियाँ हैं। नार्थ वेस्टर्न रेलवेका स्टेशन है। यह कलकत्तेसे अटक 'नोटिफाईड' एरिया है। और दूसरे १५०५ मील, बम्बईसे १५४१ मील और कराचीसे स्थानों का शासन जिला बोर्ड के हाथों में है। ८२ मील दूर है। यहाँकी जनसंख्या १६०१ ई० १६०१ ई. की जनसंख्याके अनुसार प्रतिशत में २८२२ थी। कावुल और सिंध नदीके संगम ३.६ मनुष्यों को पढ़ना लिखना श्राता था। उनमें : के थोड़ा नीचे सिंधके किनारे पर अटकका किला से मनुष्योकी संख्या तो ६४ प्रतिशत थी और है। इस किलेके सामने ही कमालिया और जला- स्त्रियोंकी ४थी। लिया नामक काले पत्थरकी चट्टानों में से होकर अटक ( नदी)-सिन्धु नदीको पश्चिमीय सिंध नदी वहती है । अकबरके समय में दो धाराको ही कदाचित् यह नाम दिया गया होगा।। पाखंडियोको इन चट्टानों परसे ढकेल दिया अटक शब्दका प्रयोग अकबरने किया था और ! गया था। कदाचित् इस नदीको पार न कर सकनेके कारण ऐसा कहते हैं कि काटकसे सोलह मील पर ही (अर्थात् वहाँ आने पर अटक जानेके कारण) ओहिंद में नदीके ऊपर नावौका पुल बनाकर यह नाम दिया गया है। कुछ लोगोका मत है । सिकन्दर इस नदीके पार शाया था। अपने भाई कि वह हिन्दुस्तानकी सीमा है, इसी कारणसे हकीम मिरज़ाके श्राक्रमणों से बचने के लिये अक- उसको यह नाम पूर्वकालसे दिया गया होगा। बरने १५८१ ई० में यह किला फिरसे बनवाया देशकी धार्मिक सीमा भी इसीको मान लिया और उसका नाम अटक---वनारस रखा। दूसरी गया था। धार्मिक दृष्टिसे पुराने जमाने में विदेश दंत कथा है कि इस नदीको पार करना कठिन है जानेसे धर्ममें बाधा पड़ती थी। श्रतः इस नदी' अर्थात् अटकार करती है। इसलिये अकबरने इस के पार जानेवाले हिन्दूको भी दोष लगता था फिलेका नाम अटक रखा और नदी पार कर और प्रायश्चित् करना पड़ता था। इस कारणसे ! उसके पश्चिम किनारे पर उसने खैरवाद याने भी इसका नाम सम्भवतः अटक पड़ा होगा। 'रक्षाका स्थान" स्थापित किया। रघुनाथ राव किन्तु निश्चयरूपसे यह नहीं कहा जा सकता कि ने चढ़ाइयाँ कर भरटोंकी सत्ता अटक तक अटक हिन्दुस्तानकी सीमा कब स्थापित हुई। वढ़ाई। १८१२ ई० में रणजीतसिंहने इस किले अवेस्ता कालमै 'हम हिन्दवः' का उल्लेख मिलता पर हमला किया था। पहले सिक्खयुद्धमें है और यूनानियोने 'इण्डिया' नामसे उल्लेख अंग्रेजोने यह किला ले लिया था परन्तु दूसरे युद्ध किया है। उस समयसे ही उन लोगोंकी यह में वे उसे कायम न रख सके। और वह सिक्खों कल्पना थी कि जिस भाँति यह धार्मिक विचारों के हाथमे आ गया किन्तु युद्ध समाप्त होते ही यह से सीमा निश्चित की गई है उसी भाँति राष्ट्रीय | किला फिरसे अंग्रेजोको मिल गया। १८७३ ई० विचारोंसे भी यही मर्यादा थी। अटकके पार का में सिंध पर रेलवेका पुल और दूसरा रास्ता देश अपने देशके परे समझा जाता रहा है । १७६० | तैयार हुआ । ई० में पेशवा बालाजी वाजीरावने गंगाधर यशवंत अटकमै, 'बेगमकी सराय' नामक धर्मशाला को पत्र लिखा था कि दत्ताजी सोंधिया इत्यादि थी। इस धर्मशालाकी पंजाब सरकारने ३०००) रु. की सहायता लेकर उनको चाहिये कि अब्दोलीको । खर्च कर मरम्मत करवाई है।