पृष्ठ:ज्ञानकोश भाग 1.pdf/१२

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झान' पड़ा अक शानकोश (अ)२ अकबर अकॅडमी-अक्याडमी ( विद्यापीठ अथवा | इंद्रियद्वारा पदार्थों का यथार्थ ज्ञान-का ममा- सरस्वती मन्दिर)। शब्दकी व्युत्पत्ति वहुतही मनो- | वेश होने लगा। रंजक है। यह शब्द ग्रीक वीर अकॅडीमसके नाम ४) इसी समय प्लेटोके अनुयायियोंने भिन्न- से लगाये हुए बागसे प्रचलित हुआ । यह वाग | भिन्न तत्वों, शाखाओं और विचार-धागनों को एथेन्स शहरसे करीब एक मीलकी दूरीपर है। एक सूत्रमें बाँधनेका प्रयत्न किया। इस बागमें प्लेटोने अपने अनुयायियों को ५० वर्षों अकबर-(१५५६-१६०५) बचपन-मुगल तक तत्वज्ञानको शिक्षा दी थी, इसलिये अकॅड- वंशका तीसरा बादशाह । इसका पूरा नाम जला- मीका अर्थ विद्यापीठ हो गया है, और लक्षणसे लुद्दीन मुहम्मद अकबर है। हुमायूँ जय शेरशाह प्लेटोके तत्त्वज्ञानका नाम 'अकॅडमिक पंथका तत्त्व- द्वारा भगाया गया, तब १५ अक्तूबर १५४२ ई० को एथेन्समें इस प्रकारके विद्यापीठ अकबरका जन्म श्रमरकोटके वीगन जंगलमें हुश्रा नौ सौ वर्षतक उन्नति पर थे। था। जब यह चौदह महीनेका था, तभी माता अकॅडमिक पंथ-प्लेटोका तत्वशान लगभग 8 पितासे इसका विछोह हो गया और यह अपने शताब्दियों तक यूरोपमें प्रचलित था। दूसरे चाचाके अधिकाग्में चला गया। दा वर्ष याद शब्दों में यह कहा जा सकता है कि वह विचार- माता पितासे इसकी भेट हुई। बचपनमें इसपर प्रवाह ६०० वर्ष तक बिना किसी रुकावटके बहता अनेक विपत्तियाँ पड़ीं, कई बार इसको कठिन रहा; परन्तु उसमें कई शाखाएँ फूट निकलीं। कारावास भी भोगना पड़ा, अनेक बार इसके इतने वर्षों तक इस तत्त्वज्ञानकी विचारधारा प्राण संकट में पड़ गये, किन्तु इन सब विपत्तियोंसे एक ही दिशामें बह रही थी, इसी कारण युरोपके | इसका बचाव हो गया। हुमायूँन इसके पढ़ाने के तत्वज्ञानके साहित्यमें इसका अधिक महत्व है। लिये एक शिक्षक नियुक्त किया था, परन्तु उसका प्लेटोके अनुयायियोंमें बड़े-बड़े विद्वान पंडित थे। कुछ उपयोग नहीं हुआ। हुमायूँ दयालु होनेपर उन्होंने उसके तत्व और विचार को समय-समय भी चञ्चलचित्त था, इस कारण उसने अपने बेटे पर भिन्न-भिन्न रूप दिये । प्रथमतः प्लेटोके अनुया- को शिक्षाको श्रीरअधिक ध्यान न दिया। अकबरने थियोंने उसमें प्रमाण-स्वरूप माने हुये आध्यात्मिक राज्यके लिये होने वाले उलटफरोके समय प्रत्यक्ष तत्व विना अधिक विचार किये छोड़ दिये । अनुभवसे मिलनेवाली बहुत कुछ शिक्षा प्राप्त कर अनंतर (प्लेटोके) उस तत्वज्ञानमें कार्नेडिजने ली। वह अत्यंत तीक्ष्ण बुद्धिका था, इस कारण नास्तिक मतका तथा स्टोइकोंके (सुख दुखोंके आगे चलकर इस शिक्षाका उसके लिए अच्छा विषयमें उदासीन वृत्तिके ) मोका समावेश उपयोग हुश्रा। वैगम खाँ स्वामिभक्त और शूर हुआ और उसमें के प्रमाणवादका रूपान्तर संभाग्य- था। श्रतः हुमायूँन अकबरको उसके हाथों में सांप वादम हो गया। दिया। उसने अकबरका अच्छी तरह लालन-पालन प्लेटोसे सिसरो तक जो काल माना किया। हुमायूँ की मृत्युके समय अकबरको अवस्था जाता है, उसके निम्नलिखित चार भाग किये केवल तेरह वर्ष तीन महीनेकी थी। इसलिये जा सकते हैं। राज्यका सब कारोवारः बैंगमखाँ हो देखता था। (१) प्लेटोकी कल्पना-मृष्टिकी उत्पत्तिसे उस समय सिवा दिल्ली और श्रागगक देशका और उसके दो शिष्य (जेनोक्रित तथा स्ययुस्टिपस)। कोई भाग अकबर के अधिकार नहीं था; किन्तु सहमत नहीं थे। उदाहरणार्थ-उनका मत था अगले ५० वर्षांमें उत्तर हिन्दुस्तान करीब- कि पदार्थोंके गुणधर्म उन वस्तुओंके अस्तित्वके करीब अकवरने अपने अधिकार कर लिया। लिये कारणीभूत नहीं होते। उसकी उत्तम राज्यव्यवस्थाके कारण उसकी (२) ये सिद्धान्त असलाके काल तक माने गणना संसारके विख्यात और महान् राजपुरुपाम जाते थे कि सब पदार्थों में ऐक्यता है। इसी कारण की जाती है। निश्चित ज्ञान प्राप्त करनेमे उनसे मदद मिलती है। राज्य-प्राप्तिके लिये युद्ध-चौदह वर्षकी अल्पा- परन्तु पीछे इन सिद्धान्तोंकी यथार्थतामें संदेह | वस्थामें ही अकबरको अनेक संकटोंका सामना उत्पन्न हुश्रा और उनके अलग कर दिये जाने पर करना पड़ा। पाचमै सिकन्दरशाह सूर पूर्वी इस पंथमें अज्ञेयवादका प्रारंभ हुश्रा । प्रान्तोंमें मुहम्मदशाह श्रदली और हेमू, मध्य (३) पश्चात् अकडेमिक तत्वज्ञानमें कार्ड हिन्दुस्तानमें राजपूतानेके हिन्दू राजा, पुराने पठान नीज़के नास्तिक मतका-अर्थात् शंकावाद अथवा सरदार और अफगानिस्तानके शासक और सरदार