पृष्ठ:ज्ञानकोश भाग 1.pdf/१२०

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अटीना ज्ञानकोश (अ)१०७ अद्यारह पुराण सीरिया जाने के मार्ग है। इस उपजाऊ प्रदेश or Russian ), १६ रूमियान (Roman or में आग्नेय फ्रीजियाका बन्दरगाह होनेसे इसे बड़ा : Romanian), १७ तलियाथ ( Italian), १= प्रेमर- महत्व प्राप्त हुआ था। ई०पू० से भी पहले यह ! यान ( Pomeranians)। [भा० इ० सं० मं० पेर्गाका बन्दरगाह था। इसी कारणसे यह राज्य इतिवृत्त १८३५] का मुख्य स्थान हो गया था। नगरके एक ओर । अठारह धान्य और उपधान्य-गेहूँ, धान्य,तू , महारानी जूलियाका बनवाया हुश्रा एक बुर्ज है। यव, ज्वार, मटर, लाख, चना. अलसी, मसूर, यहाँके अन्य मुख्य अवशेषोंमें हिड्रियनका वेस मूंग, राल, तिल, हरीक, कुलीथ, साँवा, उड़द (Vase) भी है। • और बाड़ा। ये अट्ठारह मुख्य धान्य निम्नलिखित अटीना-(१) इटली देशके अत्यन्त प्राचीन संस्कृत श्लोकमें दिये हैं- शहरों में से यह भी एक माना जाता है। यह गोधूम शालि तुबरी यव यावनाल लुक्रॉनियामें है। इसकी किलेबंदी प्राचीन है। यह वातानलंक चराका अतला मसूराः। शहर ई० पू०७ वीं शताब्दो भी था। यहाँ मुद्रप्रियंगुतिलकोद्रवकाः कुलित्थाः रोमन लोगोंका अर्धचन्द्र सभागृह और उनके श्यामाक माषचवला इति धान्यवर्गः। अनेक हस्तलिखित लेख पाये जाते हैं। ५८ उपधान्य-ये दो प्रकारसे गिने जाते हैं; (२) यह एक गाँव कॅसियमके पास था। (१) संजगुरा, भादली, वरी, नाचणी, बरग, कांग, (३) पीनीके ग्रंथों लिखा है कि इसी नाम खपले, गेहूँ, मका, करडई, रामदाना भटकी पावटा, का एक गाँव वेनेशी प्रान्तमें था। मूंग, बाल, कारला, साँग, सत्तू, अंबाड़ो (सन)। अट्ठारह अखाड़े-साधुओंके अट्ठारह संप्र. (२) संजगुरा, नाचली बरो, मक्का, मटकी, दायोंके लिये इस शब्दका प्रयोग होता है। यहाँ रामदाना, सरसों, सफेद फली जोरा, मेथी, बेणु- अट्ठारह शब्द "अनेक" अर्थ में इस्तेमाल किया बीज, साँवा, कमलबीज, पाकड़, सन, भेंडी बीज, गया है। साधुओंके सम्प्रदाय निन्नलिखित हैं- गोवारी, कुड़ेका बीज है। औधड़, अरण्य, अवधूत, आनंद, आश्रम, कतिपय लोग खसखस (पोस्ताका दाना) इन्द्रउदासी, कानफरे, कालवेला, गोदंड, गोरखपंथी और सफेद रालको भी उपधान्यमें गिनते हैं। अथवा गोरखनाथी, डबरा, नंगागिरी, निरंजनी, और इस प्रकार उपधान्योंकी संख्या बीस बत. निर्वाणी; पुरी, भराड़ी, भारती राउल, वन, लाते हैं। सरभंगी। अहारह पुराण मयं भद्वयं चैववत्रयं वचतु- अखाड़ेका एक अर्थ तो सम्प्रदाय अर्थात् टयं अनापलिंग कूस्कानो पुराणानि पृथक् पृथक् पंथ है इससे अट्ठारह अखाड़े (साधुओंके ) का आलिंपाग्नि पुराणानि कूस्क गारुड़मेव च। १८ अठारह पंथ रूढ़ाथ समझना चाहिये। पुराणों के नाम निम्नलिखित हैं- ब्राह्म ( श्लाक इनमें से अनेक पंथोंको अब विवाहादिको संख्या १० हजार) २ पद्मपुराण (५५ हजार ), ३ द्वारा जाति स्वरूप प्राप्त हो गया है और साधुच वैष्णव (२३ हजार), ४ शैव अवथा वायु (२४ (गुसाईपन ) का ह्रास होता जा रहा है । (देखये हजार), ५ भागवत ( १८ हजार), ६ भविष्य गुसाई) (१४५००), ७ नारद ( २५ हजार), मार्कण्डेय अहारह दोपकर-(एक पुरानी पुस्तकके (६ हजार), अग्नि ( १५४०० ), २० ब्रह्मवैवर्त आधार पर) निम्नलिखित नामोके आगे यह शब्द | (१८ हजार), ११ लिंग (११ हजार), १२ वराह लगाया जाता था। (२४ हजार), १३ स्कन्द (८११००), १४ वामन पाश्चात् प्रभेद टोपियाँ १८ (१० हजार), १५ कू ( १७ हजार), १६ मत्स्य १ फिरंगी ( Portugal),२ बलंदेज (Holla- | ( १४ हजार), १७ गण्ड (१६ हजार ), और nd), ३ सुवेल (Swiss), ४ निविशियन (Nory-१८ ब्रह्माण्ड (१२ हजार)। पुराणांकी श्लोकसंख्या egian ?), ५ यप्रदोर (१), ६ ग्रेग ( Greek ), के संबन्धमे एकमत नहीं है। पुराणों के विशेष ७ रखतार (१), ८ लतियान ( Latiau), यह उल्लेख पुराण" लेखमै मिलेगा। दोन ( Jew ),१० अंग्रेज (English),११ फरां उपपुराण-उपपुराण बहुतसे हैं। उनमैसे कुछ सिज ( French ), १२ कसन त्यान (Shetlan- प्राचीन और कुछ आधुनिक हैं। देवी भागवत dian ? Ultre ?), १. विनेज ( Venetran), (१२०० ई०) निम्नलिखित नामकी सूची दी हुई १३ दिनमार्क ( Daninurk) १५ उरूस ( Irish है:-१ सनत्कुमार, २ नृसिंह, ३ नंदी, ४ दुर्वासा,