अकबर ज्ञानकोश (अ)३ अकबर श्रादि सब अकबरके शत्रु थे और उसके साथ अकबर अपने ऊपर की जिम्मेदारी कभी नहीं लड़ाई करने की तय्यारियों में लगे हुए थे। टालता था और कार्यमें दक्षता दिखानेवाले को राज्यका प्रवन्ध बैरामखाँके हाथमैं होनेपर भी इन इनाम इत्यादि देनेमे सदा तत्पर रहता था। किन्तु सब बातोंमें अच्छी तरह ध्यान लगाकर अकबर बैराम निष्ठुर, हठी और क्रोधी था । अपने अधि खुद मेहनत करता था। पहले उसने सिकंदरशाह ! कारके उपयोगमे वह न्याय और अन्याय का कुछ को हरानेका कार्य हाथमें लिया, जो उसके बापने | भी ध्यान नहीं रखता था। इससे उसने अनेक उसे सौंपा था। सिकंदर धीरे-धीरे काश्मीरकी लोगोंको मानसिक कष्ट पहुँचाये। वे लोग बैराम तरफ से पीछे हटने लगा। अकबर की फ़ौजने | के विरोधी हो गए । अकबरकी भी यह इच्छा होने उसका पीछा करते हुए उसको शिवालिक पर्वत | लगी थी कि राजसत्ता स्वयं मेरे हाथमै हो। एक पर मानकोटके किलेमें आश्रय लेनेके लिये बाध्य दिन उसने बड़ी खूबीसे अपनी यह इच्छा बैराम किया। इस प्रकार जब कि 'अकबर पञ्जाबमें उलझा के सामने प्रगट की-"हमने अपना राज्य स्वयं हुआ था, हेमूने दिल्लीपर चढ़ाई कर दी। अकबर- चलानेका विचार किया है। इसलिये आप हमारे के सरदार अलीकुलीखाँ शैबानी (आगे चलकर कल्याणके विचारसे राज्यका सब प्रबंध छोड़ इसे अकबरने खानजमाँकी पदवी दी थी) को ! दीजिये। आपके खर्चकी व्यवस्था ठीक रीतिसे हो हेमूने हराकर श्रागर पर अधिकार कर लियाः | जायगी।” यह देखकर बैरामने बलवा कर दिया और इसके बाद दिल्लीके पास मुगल सरदार । किंतु अकबरने उसको हरा कर सम्मानपूर्वक ताग्दी बेगसे लड़कर उसको भगा दिया। यह एक दरबार में बुलाया (दिसम्बर १५६० )। बैरामने अत्यन्त कठिन प्रसंग था। उस समय कई सरदारों बादशाहसे क्षमा याचना की। अकबर उसके ने विजयके पश्चात् यह सम्मति दी, कि इस समय उपकार और योग्यता को जानता था। उसने हेमूसे युद्ध न किया जाय बल्कि काबुल जाकर | उससे दरवारका काम करनेके लिये कहा; किन्तु पहिले उसका हस्तगत करना चाहिए और फिर | वैरामने मका जानेकी श्राशा माँगी। मक्का जाते वहाँ सेनाका अच्छा प्रबन्ध करके तब हेमूसे समय राहमै किसी पठानने उसको मार डाला। युद्ध करना चाहिए । परन्तु बैरामखाँकी यह (जनवरी १५६१ ) बैरामके मरनेके बाद अकबरने सलाह अकबरको पसंद आई कि हेमूसे इसी वक्त उसके बाल-बच्चोंकी अच्छी ब्यवस्था कर दी। युद्ध करना चाहिये और उसको प्रबल न होने उसके लड़के मिरज़ाखाँको अकबरने उच्च पदपर देना चाहिए। उसने हेमूपर चढ़ाई करनेका निश्चय | नियुक्त करके 'खानखाना” की पदवीसे विभूषित किया। ५ नवम्बर १५५६ को पानीपतके रणक्षेत्रमै किया। बैरामखाँकी शूरता और आपत्कालीन धैर्य घोर युद्ध हुश्रा और हेमू तीर खाकर गिर पड़ा। आदि गुणों के कारण अकबरको बरावर उसका अपने स्वामीका मरा हुआ समझकर उसके स्मरण होता था। हुमायूँको बैरामखाँ जैसे साथियोंमें बहुत खलबली मची जिसके कारण | वीरका साथ मिलने के कारण ही वह विपत्तियोको अकबरकी जीत हुई और हेमू उसके हाथ कैद पार कर सका था और इसीसे अकबरको भी होगया। अकबर हेमूंका मार डालना नहीं चाहता समय पाकर अच्छे दिन देखना नसीव हुश्रा । था। लेकिन बैरामखाँने उसकी बात न सुनकर अकबरकी विजय-ई० सन् १५६१ में अकबरने अपनी तलवार से हेमूका सर उड़ा दिया । राज्यप्रबंध अपने हाथमें ले लिया। उस समय बैरामखाँका संरक्षण-- इसके बाद अकबरने पजाब, वायव्यकोणके प्रांत, ग्वालियर और अज- चढ़ाई करके श्रागरेका कटजम कर लिया। १५५७ | मेरके पश्चिमी प्रदेश; लखनऊ, इलाहाबाद और के मार्च में पञ्जाबमै सिकंदरन फिर उपद्रव मचाना जौनपुर तक का देश उसके अधिकारमै था । बना- शुरू किया। तब अकवरने पंजाबमे जाकर मान रस, चुनार, बंगाल, और बिहारके प्रान्त अभी तक काटके किले पर छः महोन तक घेरा डालकर सूरवंशके लोगोके मातहत थे। १५६० ई० से लेकर सिकंदरशाहको शरणमें धान के लिये बाध्य किया। १५६७ ई० तक अकबरका समय बलवों के दवाने इसके बाद दो वर्ष (इ० स० १५५८ व १५५४) में ही व्यतीत हुआ। तेजीके साथ काम करना, . बैरामखाँने अकबर के अभिभावकके रूपम राज्यका | जीते हुए शत्रुको क्षमा करना,उदारताके साथ बर्ताव प्रबन्ध चलाया। किन्तु जब अकबर और बैराम | करना श्रादि आदि गुणोंकी झलक अकबरमें इसी दोनोंका एक साथ मिलकर काम करनेका अवसर समयसे दिखाई देने लगी थी। राज्यारोहण के छ: शाया, तब दोनौका नापसमें मतभेद हाने लगा। वर्ष उपरांत अकबरने मालवा प्रान्त जीत लिया। -
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