पृष्ठ:ज्ञानकोश भाग 1.pdf/१३४

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श्रणु ज्ञानकोष (अ) १२१ अणु अणुगति सिद्धान्तसे निकाला हुआ अणुका-व्यास बॉइलके नि- स्निग्धताके उष्णता वहनके वायुके प्रसरण इन सबकी वायु यमसे व्यास गुणकानुरोध गुणकसे व्यास: से व्यास औसत से व्यास उज (हाइड्रोजन) २०५४१० २०५४१० १:६४४१० २०३४१० (कार्बनमोनाआक्साईड) कर्ब प्राणिद २.६०४१० २७४४१० २१२४१० २५४१० नइट्रोजन (नत्र) ३१२४१० २-६०x१० २७४४१० २४२४१० -C २७२४१० -- २६०४१० प्राण (आक्सिजन) (कार्बनडाय आक्साइड) कब द्विप्राणिद । २००४१० २५:४९० २७०४१० २७०४१० -2 -८ ३.४७४१० ३५-४१० ३२८४१० ३३३४१० ऊपर के कोष्टक से यह स्पष्ट हो जायगा कि | इन्हीं तीन प्रकारके पदार्थों की तीन प्रकारकी गतियाँ चाहे अलग अलग मार्गों से अणु का व्यास भी स्वरूपानुसार होती हैं। धनपदार्थके अणु निकाला जाय तो भी प्रायः वह एक ही श्राता है; अत्यन्त सूक्ष्म परिमाणमें गतिमान हैं। यह बात अत्यंत सूक्ष्म वस्तु की गणनामें भले ही चाहे कुछ व्यवहारके अनेक अनुभवोंसे सिद्ध की जा सकती अन्तर पड़े। इसी कारणले ऊपरके कोष्टकमें एक है। उदाहरणार्थ यदि किसी धातुपर सोनेका सा व्यास नहीं है। इसके अतिरिक्त अन्तर का मुलम्मा किया जाय तो बहुत दिनौतक वह मुलम्मा एक और भी कारण है। ऊपर के कोष्टक में ऋणु | जैसेका तैसाही रहता है क्योंकि उस मुलम्मेके के व्यास की गणना करने में हरेक अणु को गोल अणु वहाँ से नहीं हटते और न वे सुवर्ण कण उस (Sphere ) माना गया है किन्तु यह निश्चयपूर्वक धातुमें प्रवेश कर पाते हैं । इसी प्रकार यदि किसी नहीं कहा जा सकता कि हरेक बायु (Gas) का हलकी धातुपर सुवर्णका पतला पत्तर चढ़ा दिया अणु विल्कुल गोल ही है। अतः अणु के व्यास जाय तो उस हलकी धातुके कण उस पत्तरके में भिन्न भिन्न पद्धति से गणना करने पर अन्तर ऊपर नहीं ना पाते अथवा उस पत्तरके कण उस धातुके अन्दर प्रविष्ट नहीं होते। इससे यह सिद्ध तापमान और अणुकी गति-आजकलके विज्ञान- होता है कि धनपदार्थके अणु अत्यन्त सूक्ष्म गति वेत्ताओं का मत है कि पदार्थ के अणुमै गति होती | से घूमते हैं। किन्तु जब पदार्थ वायुरूपकी दशा है। यद्यपि ये अणु अत्यन्त वेग से स्वयं घूमते | में होता है तो उसके अणु अति तीव्र गतिसे घूमते हैं तो भी पदार्थ स्थिर ही रहता है। इन अणुओं हैं। और उसकी सुगन्ध चारों ओर फैल जाती है। की गति का कारण उनकी सापेक्षता है। इसका कारण यह है कि इसके कुछ करण वायुके अणु की गति पर प्रयोग करने से बहुत सी | साथ संलग्न हो जाते हैं और वे सर्वत्र फैल जाते हैं। कामकी बातोका पता चलता है और उनकी सहा अब यह देखना चाहिये कि घनपदार्थके यता ही से अणु-गतिका सिद्धान्त बना है । सामा- | अणुओंकी स्थिति कैसी होती है। बहुतसे लोग न्यतः कह सकते हैं कि अणुकी गति तीन प्रकार यह समझेगे कि धनस्थिति में रहने वाले पदार्थोके की है। पदार्थ भी तीन ही प्रकारके होते हैं। अणु भी बिल्कुल स्थिर होते हैं, परन्तु यह विचार (१) धन (२) द्रव (प्रवाही) और गैसीय (वायु)। गलत है। धनपदार्थ के अणु सिकुड़ते और फैलते पड़ता है।