पृष्ठ:ज्ञानकोश भाग 1.pdf/१३५

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अण ज्ञानकोष अ)१२२ हैं। इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि घनपदार्थके ! सम्भव नहीं। इस भाँति बदलनेवालीजो अणुओंकी अणु भी सूक्ष्म प्रमाणमें गतिमान हैं। प्रत्येक अवस्था होती है उस अवस्थाको प्रवाही अवस्था' अणुके चंचल होनेसे अापसमें ये टकराते हैं। कह सकते हैं। यदि कोई अणु अधिक प्रमाणमें श्रापसकी टक्कर और आकषर्ण-शक्ति द्वारा ये श्रारणु आन्दोलित होने लगता है तो वह अपनी मध्य- अपनी पूर्वस्थिति में थोड़े ही समयमें पहुँच जाते : स्थिति ( Centre) छोड़कर दूसरी ओर चला हैं। उष्णतासे पदार्थ फैलते हैं और उसके जायगा। वहाँ पर दूसरे अणु-संघके कारण वह अभाव में सिकुड़ते हैं। इससे यह कहा जा सकता अणु नये श्राकर्षण-बंधसे बँध जावेगा, किन्तु यदि है कि कोई भी पदार्थ ज्योज्यों ठण्डाकिया जायगा उस पदार्थके पृष्ठ भागके समीप किसी श्रेणुको उसके अणु को गति भी स्तब्ध होती जायगी और अधिक गति प्राप्त हुई और वह गति उस पदार्थमें अत्यन्त शीत पदार्थके अणुकी गति स्तब्ध होगी। से बाहर निकलनेकी ओर ही झुकी रही तो वह और उस समय तापमान २७३ श (सेन्टीग्रेड) पदार्थ अपने चारों तरफके अगु-बन्धसे निकल होता है। इससे कम तापमान होनेसे स्तब्धता कर उस पदार्थके बाहर चला जावेगा। इसी असम्भव है। इस उष्णतामानको मूल्य शून्यांश भाँति यदि बहुतसे अणु बाहर जाने की क्रिया (Absolute zero) कहते हैं। होती रहे तो उस पदार्थके अणु कम होते जायेंगे। अब हमें यह देखना चाहिये कि धनपदार्थ इस तरह पदार्थमें से अणुओंके बाहर निकलनेकी जब ऊष्ण रहते हैं तब उनके जो विशेष गुणधर्म क्रियाको 'वाष्पीभवन' (Evaporation) कहते हैं । दिखाई देते हैं उनका अशु-सिद्धान्त-द्वारा किस ॐ जब सामान्य उष्णता और दबाव(Normal भाँति निर्णय किया जा सकता है। ऐसा मान 'Temperature and pressure ) होता है तब लीजिये कि दो पदार्थ २७३ सेंटीग्रेड तापमान : पदार्थके वायुका घनत्व ( Densits) उस पदार्थ पर है अर्थात् उनके अणु बिल्कुल स्तब्ध हैं। इन के धनस्थिति में रहने के घनत्वका एक सहस्त्रांश दोनो पदार्थों को एक दूसरे पर घिसना शुरू किया होता है। इससे गणितकी सहायतासे यह सिद्ध जाय। तब इनकी सतहके अणुमै गति प्राप्त हो किया जा सकता है कि जड़पदार्थकी धनस्थितिमें जायगी और घिसनेसे उष्णताका प्रादुर्भाव होगा। रहने के समय उसके प्राणुओमें जितना अन्तर श्रारम्भमें यह उष्णता पदार्थकी सतहपर रहेगी, · रहता है उसका दस गुना वायुरूपस्थितिमें होने परन्तु सतहके अणुश्रीमें गति प्राप्त होते ही उन से हो जाता है। अणुके पासके थरको भी गति प्राप्त होगी। इस अब यह बतलाया जायगा कि वायु (Gas) भांति जब समीपके अणु गतिमान होगे तव समस्त के अणु सम्बन्धमें विज्ञानवेत्ताओने अबतक कौन पदार्थमैं धीरे धीरे उष्णतो फैल जायगी। इस कौनसे प्रयोगसिद्ध अथवा गणितसिद्ध झान भांतिके तापप्रसरणको ताप चालकता (Condre- प्राप्त किये हैं। हवामै अणुका श्रौसत व्यास प्रायः निश्चित् उष्णतामानपर उनकी गतिकालय निशा २६ सेन्टीमीटर रहता है। यदि ये अणु बिल्कुल स्थान भी चाहिये। ज्यों ज्यों तापमान बढ़ाया | चौकोर हो तो उनके दो अणुओंमें के अन्तरकी जायगा त्यो त्यो उनके आन्दोलनके लिये अधिक औसत लगभग सेन्टीमीटर होती है। जब स्थानकी भी आवश्यकता होगी। नित्य व्यवहार में देखने से यह स्पष्ट है कि उष्णतासे पदार्थका सामान्य उष्णतामान और दवाब होता है तब एक प्रसरण होता है। इसके विपरीत यह भी देखा परिमाणके धनमै अर्थात् एक सेन्टीमीटर लम्बे जाता है कि दयाव ( Pressure) इत्यादिका उप- चौड़े और ऊँचे धनमें करीव २७५४१०१ श्रा योग करके पदार्थको सिकोड़नेसे भी उष्णतामान होते हैं। २७५ x १०१ अर्थात् २७५ के आगे १७ बढ़ता है। शून्य है। यह संख्या परार्धकी अपेक्षा दो स्थल जिस प्रमाणमें पदार्थका उष्णतामान बढ़ाया ॐ सामान्य उष्णतामान और भार(दबाव) = Normal जायगा उसी प्रमाणमें अणु-आन्दोलनके लिये Temperature and Pressure | शून्य शतांश अधिक स्थान भी होना चाहिये। यदि किसी उष्णतामान ही सामान्य उष्णतामान है। और जब वायु- पदार्थको हद दर्जेसे भी अधिक गरम किया जाय भार-मापक ( Barometer ) नलीमें पारेकी ऊँचाई तो उस पदार्थके अणु इतनी शीघ्र गतिसे हिलने | ७६ मिलीमीटर होती है तब सामान्य भार (Normal लगेगें कि फिर उनका अपनी पूर्व स्थितिमें आना ! pressure) होता है।