पृष्ठ:ज्ञानकोश भाग 1.pdf/१३६

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" o , अणु ज्ञानकोश (अ) १२३ अण्णाजीदत्तो बड़ी है और इतने अणु एक घन सेन्टीमीटरमें उस वायुके श्राकारमानका घनफल व्युत्क्रम प्रमाण रहते हैं। अब प्रयोग और गणितसे वायुके ( Inverse Proportion ) में बदलता है। यदि अणुकी जो गति निकाली गई है वह आगे दी। उस वायुका घनफल स्थिर रक्खा जाय तो उसका जाती है। भार तापमानके समप्रमाणमें बदलता है। वायुका नाम उष्णतामान गतिप्रतिसे०(Velocity) एवागडोका सिद्धान्त-यदि बिल्कुल समान श्रा- हाइड्रोजन(उज) • शतांश १८३६०० सेन्टीमीटर कारके धनफलकी भिन्न भिन्न जातियोंकी वायु एक ही उष्णतामान और दबायकी ली जाय तो उन भिन्न हवा १५०, ४६८० पारेकी भाप भिन्न चायुके अणुकी संख्या एक ही होगी। इससे १८५०० बाइल और चार्लसका उपरोक्तका सिद्धान्त सर्वाशमें इसी प्रकार गणितसे यह सिद्ध हुश्रा है कि ठीक नहीं देख पड़ता क्योंकि यदि उष्णतामान अथवा है। ग्रामके वजन के अणुका या अणु-समुच्यका दबावमें विस्तृत प्रमाणमें अन्तर किया जाय तो प्रायः शून्यशतांश उष्णमान पर २ मिलीमीटरके उपरोक्त नियम ठीक नहीं उतरता । वायुके भार, हिसाबसे प्रत्येक सेकेण्डमे वेग होना चाहिये। क्षेत्रफल तथा तापमान एक दूसरे से निश्चित प्रमाणमें रहना चाहिये। यदि इन तीनोंमें अधिक र ग्रामका अणु हमको सूक्ष्मदर्शक यन्त्रसे दिख- प्रमाणमें अन्तर है तो यह प्रमाण नहीं रह सकता लाई देना सम्भव है। इसी प्रकार जिस वस्तुमै प्रति और इस अन्तर होने का कुछ न कुछ कारण सेकेण्डमें दो मिलीमीटरके हिसाबसे बेग होता अवश्य होगा। इस विषयमें व्हान नामक विज्ञान- है वह वस्तु आँखसे देखी जा सकती है। परन्तु वेत्ताने विचार करके दो कारण बतलाये हैं । एक उस वस्तुका वेग कुछ काल तक एकही दिशामें तो अणुओंके आकर्षणका परिमाण है। यदि अव्याहत रूपमें होना चाहिये। अणु बारंबार एक इसका ध्यान रखकर समीकरण किया जाय तो दूसरेसे अथवा वर्तनोके पाोसे टकराते हैं । इस वह बदले हुए क्षेत्रफलादिक पर ठीक घटेगा। कारण वेगकी दिशा बराबर बदलती रहती है। यह ध्यान रखने योग्य बात है कि डाल्टन, इस कारण प्रत्येक अणुको व्यक्तिशः देखना सम्भव चार्लस, वाइल एवागड्रो तथा व्हानडर वालके नहीं है। ऐसा होने पर भी लघु गतियों (Short | उपरोक्त सिद्धान्त तथा विचार पद्धति अणु-सिद्धा. Motion) का फल किसी औसत गति पर होनो | न्तकी बहुत कुछ पुष्टि करती है। चाहिये। और वह गतिहरसेकण्डमें मिलीमीटर अणे-पूना जिलेमें यह एक गाँव है। जुन्नार की अपेक्षा कम होनी चाहिये । आर०वान स्मोलु- के पूर्वकी ओर २५ मील की दूरी पर अणे ही नाम चौस्कीने यह दर्शाया है कि राबर्ट ब्राउन नामके की एक घाटीके नाके पर यह स्थित है। यहाँ बनस्पतिशास्त्र वेत्ताने १८२७ ई० मे अणुकी की जनसंख्या लगभग २००० है। यहाँ प्रति जो हलचल देखीहै वही औसत गति है। ऊपर | वुद्धवारको हाट लगता है। बतलाई हुई गतिको ‘ब्राउनकी गति' कहते हैं। अण्णाजीदत्तो -शिवाजीके पाठ प्रधानों मैसे ब्राउनकी गतिका निरीक्षण करनेसे अणुकी गति | यह भी एक थे। सत्रहवीं शताब्दीके श्रारम्भमें का बहुत कुछ ज्ञान प्राप्त होता है। जब हिन्दुराज्यकी नींव डालनेकी फिरसे कल्पना डाल्टन का सिद्धान्त-नीचे दिये हुए नियमको की जाने लगी थी और जिस समय अनुभवी तथा डाल्टनने निकाला है। यदि किसी पात्र में कार्यकुशल लोगों की कमी भी देख पड़तो थो, ऐसे अलग अलग वायुका मिश्रण किया जाय तो ही समयमै शिवाजीके आधिपत्यमै कुछ एकनिष्ठ, उस पात्रके प्रत्येक वायुके भारका जोड़ उस मिश्रण देशभक्त तथा गुणी एकत्रित होने लगे थे। ऐसे के भारके बराबर होगा। उदाहरण के लिये एक ही मनुष्योंमै अण्णाजीदत्ताप्रभुणीकर भी थे। यह पात्रमै नात्र (Nitrogen) और प्राण (Oxygen) तद्देशस्थ ब्राह्मण थे और १६४७ ई० मे शिवाजी का मिश्रण किया गया हो तो उस मिश्रणका भार से आकर मिले। यह संगमेश्वर ताल्लुकर्म (१५+ ६१) =७६ सेन्टीग्राम होगा क्योंकि नत्रका | पटवारी ( देशकुल कर्णपण) के काम पर नियुक्त भार १५ सेन्टीग्राम और प्रारणका ६१ सेन्टीग्राम थे। इसके न तो निजी जीवनका कोई व्याय होता है। मिलता है, न उसका पूर्व वृत्तान्त ही उपलब्ध है। बाइल और चार्लसका सिद्धान्त--जब किसी वायु जिस समय अफजलखां का सामना करने के लिये का तापमान स्थिर रहता है तो उस वायुका भार शिवाजी १० नवम्बर १६५= ई० को प्रतापगढ़से