पृष्ठ:ज्ञानकोश भाग 1.pdf/१३८

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- अएगाजीदत्तो ज्ञानकोश (अ) १२५ अएणाजीदत्तो गत हो गया। कोंडाजीने यह समाचार गुप्तचरों | वर्ष इसी कार्य में बीते थे। इसी बीचमें शिवा- द्वारा शिवाजीके पास भिजवा दिया। शिवाजीके जीने अण्णाजीको मालवे भेजा था। १६७८ ई० आठ दिन आने तक अराणाजी वहीं रहे। इस में जब शिवाजी स्वयं कर्नाटक गये थे तब इन्हें भांति पन्हाला पर दो बार विजय प्राप्त की गई | राज्य प्रबन्धके लिए छोड़ गये थे। अण्णाजी और सत्रहवीं शताब्दीके अन्त तक वह मराठोके प्रायः राजगढ़में ही रहते थे। जिस समय में वे ही श्राधीन रहा। इसी वर्ष शिवाजीके राज्या गावोंके निरीक्षणके लिए बाहर जाते उस समय भिषेकके समय शिवाजीने अपने अष्ट-प्रधानोको उनके सहायक सब कामोंको करते थे। सब काम बाँट दिया। अण्णाजीको चेऊलसे गाँवोके कर्मचारी भूमिनिरीक्षणमै अक्सर लेकर दामोल तक राजापुर, कुडाल, बाँझ और भूल करते थे जिससे राज्यको विशेष धक्का पहुँ- फोंडा अकोल तक-सारांश समस्त दक्षिण कोकणचता था। इसलिए अराणाजी स्वयं परिश्रम की व्यवस्थाका भार सौंपा। इसके अतिरिक्त कर के गावोंमें घूमते, भूमिनिरीक्षण करते तथा कर-व्यवस्था पहिलेकी भाँति उसीके आधीन रही। कर निश्चित करते थे। इस प्रकार राज्यकी अाम- इलागिरी ताल्लुके की जमीदारी तथा कोल्हापुर दनी बढ़गई; भीतरो व्यवस्था सुधर गई और इलाके के भूधरगढ़के निकट सामानगढ़ भी अण्णा साथ ही साथ अराणाजीका उत्कर्ष भी खूब हुआ । ज को दे दिया गया था। कहा जाता है कि इस कारण कई बड़े तथा योग्य व्यक्तियों और अण्णाजी ही ने सामानगढ़ बनवाया था। दक्षिण अण्णाजीसे अनबन होगई ! कुछ लोगोंने शिवाजी कोकनकी व्यवस्था भएणाजीके ही हाथमें होने के से ज़मीनके लगान और गावोंके झगडोका निप- कारण समुद्रतटकी देख-रेख भी इन्हें ही करनी टारा स्वयं करनेके लिए प्रार्थना की। परिणाम पड़ती थी। यह हुआ सब भूमिके फिरसे निरीक्षणकी आज्ञा इसी कारण योरोपीय व्यापारियोंसे उनका शिवाजीने दी। उसीके अनुसार शिवाजी राज्या. सम्बन्ध सदैव घनिष्ट रहा । वे अण्णाजीको भिषेकके बाद भूमि निरीक्षण प्रारम्भ हुआ। इस अण्णाजी पण्डित सूबेदार ( Viceroy) के नाम बार भी दादाजी को ही कर पद्धति स्वीकृत हुई । से सम्बोधित करते थे। ५ जून १६७४ ई० परन्तु ऋतु परिवर्तनसे थोड़ा बहुत सिकुड़ने वाली को जब शिवाजीका राज्याभिषेक हुआ था तब रस्सीके स्थान पर राजाके हाथसे ५ हाथ ५ मूठ राज्यकी भीतरी व्यवस्था अण्णाजी ही करते थे। लम्बी लाठी लम्बाई नापनेके लिए प्रयुक्त की जाने श्रतएव शिवाजीके शीश पर राजक्षत्र सुशोभित लगी। शिवाजीके श्राजानु बाहु तथा राजा होने करने का सम्मान इन्हीं को प्रदान किया गया था। के कारण कोई भी इस नापके विरुद्ध आवाज न उस अवसर पर उन्हें बादली ( वस्त्र विशेष ). उठा सका। उपजका : वां भाग कर नियत किया पोशाक, कण्ठी, चौकड़ा (बाला) सिरपंच, कलगी, गया था, किन्तु कर अन्नके रूपमें न लेकर नगद कटार, ढाल, तलवार, हाथी, घोड़ा आदि देकर सिक्को में ही लिया जाता था। इस समय जो गौरान्वित किया गया था। अण्णाजीको पालकी कर निश्चित किया गया था वह स्थायी था। ऊसर के व्ययके सहित १०,००० होण ( ३००० रुपया) भूमि पर भी लगाये जाने के कारण लोग उसे नगद वेतन मिलता था। अण्णाजी राज के पत्रो भी खाद देकर उपजाऊ बनानेका यत्न करने लगे। पर जो अपनी मुहर करते थे वह अष्टकोण, बड़ी निर्जन स्थानों पर नये लोग बसाये गये। उन्हें तथा लम्बी थी। उसमें निम्न ४ पंक्तियाँ अंकित | बोनेके लिए बीज, मवेशी और धन दो वर्षकी मुदत थीं। (१) श्रीशिवचरणी (२) निरन्तर दत्त (३) पर देकर ज़मीन उपजाऊ बनानेका प्रयत्न किया सुत अनाजिपंत (४) तत्पर। इन चारोंको मिला गया । दुर्भिक्षम भी धन और मवेशी दिये जानेके कर पढ़नेसे अर्थ निकलता है:-श्रीशिवाजी के कारण स्थायी-कर-पद्धतिके प्रतिकूल कोई न था। चरणोंमें निरन्तरदत्त सुत अनाजिपंत सदा तत्पर । कर नियत करते समय अण्णाजी ने विभिन्न लेख समाप्त होने पर और लिफाफेके जोड़ों पर गावोंको जो श्राज्ञा-पत्र दिये थे उनले ज्ञात होता व्यवहार में लाई जाने वाली मोहर छोटी तथा है कि पहिले कर मुनीम तथा गाँवके अन्य अधि- गोल थी। उसमें निम्न शब्द अंकित थे। (१) कारी पिछले दो वर्षकी उपज पर तथा गाँव के लेख (२) नाव धिरे (३) धते (अर्थात् लेखना वधि बड़े आदमियोकी सम्मतिसेही निश्चित किया गया रेधते ) १६७४ ई० में फिर शिवाजीने भूमिनिरी- था। इस कार्यमें गाँव के मुख्य लोग भी सहायता क्षण प्रारम्भ कर दिया और अराणाजीके ४ या ५ करते थे। इस प्रकार कर नियत किये जाने पर