पृष्ठ:ज्ञानकोश भाग 1.pdf/१३९

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अधरणाजीदत्तो ज्ञानकोश (अ)१२६ अण्णाजीदत्तो अण्णाजी को उसकी सूचना दी जाती थी। तब उसे नालायक साबित करनेके लिये सोयराबाईको अरणांजी स्वयं जाकर जाँच करते थे और यदि धरणाजी बहुत उपयुक्त जान पड़ा। अतः उसने निश्चित कर राजा तथा प्रजाकी दृष्टि से हानि भी इसका पूरा पूरा स्वागत किया। शिवाजीके कारक न होता तो अपनी स्वीकृति दे देतेथे। ऐसा : कर्नाटककी ओर प्रस्थान करने पर इस गुप्त करते समय अरणाजी व्यक्तित्वके हितकी ओर षड्यन्त्रने खूब जोर पकड़ा और अन्त सम्भाजी ध्यान न रख सके । फलतः उन्हें बहुतो का द्वष- को स्त्रीके साथ रायगढ़ छोड़कर जाना ही पड़ा। भाजन बनना पड़ा । मोरोपन्तपिंगले पेशवाके शिवाजी ने लौटकर जब यह सब सुना तो सम्भा सम्मुख समस्त राज्यके लिये उत्तरदायी थे, जीको बुलानेका प्रयत्न करने लगे। इस प्रतिदिन और कई बार उन्होंने अण्णाजीके विरुद्ध निर्णय बढ़ते हुए गृह कलहको दूर करने तथा हिन्दु- किया था। बहुधा शिवाजी भी उसे ही मान्य : राज्यकी नींव भलीभाँति जमानेकी चिन्तामै जब रखते। इस कारण अण्णाजी मोरोपन्तसे द्वेष शिवाजी मग्न हो रहे थे तो उसी समय उनका करने लगे. और इन दोनोंमें मनोमालिन्य हो स्वास्थ्य बिगड़ गया। शिवाजीका मरणकाल जान गया। शिवाजीके अभिषेक के समय मोरोपन्तके : कर सम्भाजी की ओरसे भी गुप्त योजनाएँ की विरोध करने के कारण अराणाजीको स्पष्ट रूपसे । जाने लगी । इस समय मोरोपन्त पिंगले बदला लेनेका अवसर हाथ लगा । अण्णा इत्यादि अनुभवी तथा योग्य पुरुषोंको शिवाजीने जीको राज्य की भीतरी-व्यवस्थामे हस्तक्षेप | बुला भेजा । बालाजी भी इस समय वहीं पर था करना पड़ता था, जिससे कुछ लोगोंकी हानि इस समय ये लोग हिन्दुराज्य की आने वाली होती थी। इसका परिणाम यह हुया कि जितना अधोगतिको सोच सोचकर इतने व्यग्र हो रहे थे ही अण्णाजी धाक जमानेका प्रयत्न करते थे उतने कि ये क्षुद्रवुद्धि तथा सौतिया डाह से प्रेरित ही छोटे छोटे अधिकारी तथा प्रजा गण उनके सोयराबाई तथा स्वलाभदत्त-वित्त अण्णाजोकी विरुद्ध होते जाते थे। स्वार्थ परायणताको भलीभाँति न समझ सके । हिन्दुओंमै उत्तराधिकारी का प्रश्न ही सब अतः उन स्वामिभक्त प्रधान मण्डली तथा मंत्रियों अनर्थों की जड़ रहा है और इसीसे अनेक भयंकर के लिये इन दोनोके विरुद्ध आवाज़ उठाना असा । कलहोंका बीजारोपण होता रहता है। इसमें म्भव था । इधर अराणाजी इस बातका पूरा सन्देह नहीं कि जब समय उत्तम रहता है और प्रयत्न करता रहो कि सम्भाजीको शिवाजीकी उन्नति के पथपर अग्रसर होते रहते हैं उस समय बढ़ती हुई अस्वस्थताका पता न लगे। उसने यह प्रश्न दबा रह जाता है किन्तु तनिक भी यहाँ तक व्यवस्था कर रक्खी थी कि शिवाजीकी ढील पड़ी कि यह प्रश्न फिरसे उठ आता है। मृत्युका भी संवाद उस समय तक सम्भाजीको सर्वगुणसम्पन्ना तथा नम्र सई बाईकी न मिलने पावे जब तक वह उसी अवस्थामें कद मृत्युके पश्चात् राजारामके जन्मके कारण न कर लिया जाय । शिवाजीकी मृत्युके १८ दिन जो गृह कलह उत्पन्न हुआ था वह जीजाबाईके पश्चात् २१ अप्रैल सन् १६८० ई० को अराणाजी ने कठोर शासनमें पूर्णरूपसे दब चुका था, सब अधिकार अपने हाथमे लेकर नौ दस वर्षके किन्तु शिवाजीके राज्याभिषेक तथा सम्भाजीके बालक राजारामका मंचका रोहण' कराया और युवराज बनाने के समय इसका फिरसे प्रादुर्भाव मोरोपन्तसे सन्धि करके सम्माजी को कैद करने हुआ ! जीजाबाईकी मृत्यु के पश्चात् तो शिवाजीके लिये रायगढ़से वह रवाना हुआ। अण्णाजोक घरानेमें पूरी उच्छृङ्खलता फैल गई। अण्णाजी । इस उद्धताचरणसे मोरोपन्तका अपने भविष्य स्वभावतः उच्चाभिलाषी तथा बुद्धिमान् था, किन्तु ! जीवनकी भी शंका होने लगी और भीतर ही न तो वह वीर ही था न युद्ध कार्यमै कुशल ही। भीतर दोनों में मनोमालिन्य और भी बढ़ गया। इस कारण सदा षड्यन्त्र रचनेका प्रयत्न किया बालाजीके इनकार करने पर उसके पुत्रसे पत्र करता था। शिवाजीके सदा साथ रहने के कारण लिखवा कर जनार्दन पन्त और हम्बीर रावको तथा रायगढ़में भी बहुत रह चुकनेसे इन भी वह भेज चुका था । यदि वास्तव में देखा जाय सब बातों से यह पूर्ण परिचित था। सोयराबाई तो हम्बीरराव का राज्यमें जो पद तथा प्रभाव का पक्ष उस समय बलवान होनेके कारण उसने । था उस पर ध्यान रखते हुए अराणाजीको बिना उसीका पक्ष लिया और उस पर अपना प्रभुत्व उसकी सम्ततिके काई कार्य करना उचित न था। जमा दिया। संभाजीके विरुद्ध षड्यन्त्र रच कर : किन्तु अरुणाजी का यह भी निश्चय था कि हम्बीर