पृष्ठ:ज्ञानकोश भाग 1.pdf/१४

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। अकबर ज्ञानकोश (अ)४ अकबर १५६२ ई० में जोधपुर के उत्तर-पूर्वमें ७६ मीलपर सन् १५७२ ई० के सितंबर महीनेमें अकबरने मेड़ता नामका एक बड़ा शहर अकबरके हाथ ! गुजरातकी चढ़ाईका काम अपने हाथों लिया। लगा। इसी समय अकवरके मालवाग्रान्तके सेना गुजगतमें इस समय बहुत छोटे-छोटे मुसलमान पतिने पश्चिममें चढ़ाई करके वीजागढ़ और राजा राज्य करते थे। वे बीच-बीच में अपने बुरहानपुर पर भी अधिकार कर लिया। इसके राज्यके श्रासपस भी उपद्रव मचाते थे। अभीतक बाद उसने रावलपिंडी जिलेके ईशान्य भागमें रहने जब-जब अकबर लड़ाई पर जाता था, तब तव वाले गख्खर लोगोको तथा कावुलके बलवेको । उसे इस बातका हमेशा डर बना रहता था, कि दवाया । इसी समय एक खेदजनक घटना हुई। कहीं उसके पीछे उसके सरदार विद्रोह न करें। मालवा प्रान्तमें बाजबहादुर नामक सरदारने जो ! परन्तु इस चढ़ाई के समय वह बिलकुल निश्चिन्त विद्रोह मचाया था, उसे दवाने के लिये अकबरने था। इतना ही नहीं. जयपुरके भगवानदास और अपनी दाईके पुत्र प्रादमखाँको भेजा। आदमखाँने मानसिंह दोनों राजपूत सरदार इस लड़ाई में वाजबहादुरको परास्त किया; परन्तु स्वयं उसने ! उसकी ओरसे लड़ रहे थे। गुजगामें जिन्होंने बहुतसे अत्याचार किये। उसने सारी लूट अपने अकबरसे विरोध किया, उनमें भड़ान, बड़ौदा लिये रख ली और साथही साथ बाजबहादुरके और सूरत के राजा मुग्य थे। उन सबको पजन जनानखानेको भी अपने पास रख लिया। जव करके तथा गुजगनके शासन प्रबन्धक लिये ग्रह- अकबरको यह मालूम हुआ तो उसने उसे मदाबादमें अपना सूबेदार नियुक्त करके सन् बरखास्त कर दिया। इसपर श्रादमखाँने यह सम- १५७३ ई० के जून महीनेमें अकयर आगर लौट झकर कि बादशाहका मन्त्री शमसुद्दीन मेरा नाश श्रआया। उसी साल जब अकबरने गुजगतमें विद्रोह करना चाहता है, उसे जानसे मार डाला। यह ! की खबर सुनी तो उसे फिर यहां जाना पड़ा। सुनकर श्रकवरने श्रादमखाँको छतपर से गिरवाकर अकबरके शासनकालके ग्यारहव वर्षके अंतमें उसके प्राण ले लिये । (मई सन् १५६२ ई०) उसके राज्यमें पाय, कावुलकं साथ वायव्य, सन् १५६४ ई० में चुनारका किला जो पूर्वीय मध्य तथा पश्चिमी हिन्दुस्तानका भाग आ चुका प्रान्तोंका प्रवेशद्वार समझा जाता था-आदिलवंश था। पूर्वमें कर्मनाशा नदो उसके गज्यकी सीमा के एक गुलामके कब्जे में था। उसने वह किला थी। उस नदीके दूसरी ओर' यंगाल तथा बिहार. अकबरके हाथमें सौंप दिया। चुनार हाथमें श्रा प्रान्त थे। वहाँ के अफगान गजान नाममात्रको जानेके कारण मुगलोने चौरागढ़ की गनी को अकबरका प्रभुत्व स्वीकार कर लिया था, पर पराजित करके नरसिंहपुर जिला और होशंगावादका उसने अकबरकी कभी कर नहीं दिया। गुजगत कुछ भाग सरलतासे ले लिया। सन् १५६५ ई. को की दूसरी चढ़ाई के बाद अकबरने स्वयं पटने पर गरमीमें अकबरने आगरे का किला बाँधना प्रारंभ चढ़ाई करके उसे हस्तगत किया। तत्पश्चात् किया और ३५ लाख रुपया खर्च करनेके पश्चात् उसकी सेनाने मुंगेर, भागलपुर गौड़, आदि पर आठ वर्षों में वह किला तैयार हुश्रा । इसी वर्ष वर्षा- | अधिकार जमाकर अफगान सरदार दाऊदका ऋतुम जौनपुरमें उज़बेक सरदारोंने विद्रोह खड़ा शरणमें श्राने के लिये बाध्य किया। इस प्रकार सन् किया। अकबरने विद्रोह दबा दिया। इस चढ़ाई ११७५ ई. में करीब-करीब साग बंगाल और में बादशाहके सेनापतियोंने बिहार के रोहतास किले | बिहार प्रांत मुगलों के अधिकार में आ गया। पर अधिकार जमाया तथा बिहारके राजाके अकवरके वशमै न आनेवाला यदि राजपुताने वकीलनेश्राकर बादशाहको नज़राने दिये। श्रक में कोई राजा था, तो वह मेवाड़का गणा- बरके आगेके दो वर्ष विद्रोह वाकर राज्यमें प्रतापसिंह था। अकबरने उसका अधिकांश शांति स्थापित करने में ही बीते। राज्य अधिकृत कर लिया था, फिर भी राणा सन् १५६८ ई० में अकबरने राजपुताने पर | जंगलों में रहकर अपने विश्वासी अनुयायिओंकी चढ़ाई करके चित्तौर हस्तगत किया और उसके सहायतासे अकबरका विरोध करता ही रहा । अगले वर्ष---सन् १५६६ ई० में जयपुरके राजाका ! उसको पराजित करने के लिये सन् १५७६ ई. में रणथम्भोर किला ले लिया। इसी साल उसने अकवरने मानसिंहके मातहत सेना भेजी। पीछे फतेहपुरसिकरी शहर बसाया। सन् १५७२ ई० उसने स्वयं मेवाड़में प्रवेश किया। मानसिंहने तक करीब-करीब सभी राजपूत राजा अकबरके | उस वर्षके दिसम्बर महीनेमें हल्दीघाटीकी लड़ाई आधीन हो गये थे। में प्रतापसिंह को हराया। परन्तु इसके बाद भी