पृष्ठ:ज्ञानकोश भाग 1.pdf/१४४

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अतरसुवाँउपविभाग ज्ञानकोश (अ) १३१ अति परमाणु विद्युत्करण यनिक क्रियानोके आगे इनकी श्रव बिलकुल पूछ है। यहाँ के लोग लोहेका काम करते हैं। यहाँ होती ही नहीं। रासायनिक रीतिसे किसी भी के लोग छूरियाँ बनानेके लिये प्रसिद्ध हैं । (बग.) पदार्थका सुगन्धित सत ( Essence ) अलग अतारी-यह गाँव (३०२६ उत्तर अक्षांश निकाला जा सकता है। इन्हींका प्रयोग श्रव दिन ७२१ पूर्व देशान्तर ) पंजाब प्रान्तमै मुलतान दिन बढ़ता जा रहा है। गन्धी लोग भी अब जिले में कबीर वाला तहसील में है। सिकन्दरने भिन्न भिन्न सुगन्धित द्रव्य बनानेमें पुरानी रोतियों जब भारत पर आक्रमण किया था उसकी तीसरी को छोड़ कर इन्हीं सतोंका प्रयोग करने लगे हैं, जीत इसी स्थान पर हुई थी। कनिंगहमका मत और इन्हीं अकौं और सतोकी मांग भी दिन दिन है की यही ब्राह्मणावाद होगा। यह गाँव किसी बढ़ती जा रही है। जर्मनीले हेको ( Heiko) महत्वका नहीं है। ऐसा प्रतीत होता है कि नामका अर्क ( Essence ) आता है। उसे सादे पहले यह किला अभेद्य रहा होगा। यह किला तिल्ली या नारियल के तेलोमें मिला कर सुगन्धित ७५० वर्ग फीट का है तथा ३५ फीट ऊँचा है। बना लेते हैं । रङ्गहीन मट्टोके तेलका (White oil) इसके दोनों ओर प्राचीन शहरके खंडहर हैं । आज कल इन्हीं सुगन्धित द्रव्योंको मिला कर किसीको भी इन खंडहरोका इतिहास मालूम नहीं बहुत प्रयोग हो रहा है। इसमें खर्चा कम और है। इसके समीपका गांव बिलकुल अाधुनिक आसानी बहुत होती है। अतः इसका व्यापार : है। (इं० ग.) करने वाले बहुत लाभ उठा सकते हैं। जो भेद अतिकाय-यह रावणके धान्य मालिनी नामक कृत्रिम नील तथा स्वाभाविक नीलमें होता है वहीं स्त्रीसे उत्पन्न हुए पुत्रका नाम है। यह अत्यन्त भेद इन कृत्रिम रासायनिक विदेशी इत्रों, सतों स्थूल शरीरका था। इसलिये इसका यह नाम तथा अर्को और स्वाभाविक रीतिसे तय्यार किये पड़ा था। इसने ब्रह्मदेवकी आराधना की थी। हुए तेल तथा इत्रमें है। जो स्थायी तथा लाभ- ब्रह्मदेवने प्रसन्न होकर इसे, अस्त्र, कवच, दिव्य कारी सुगन्ध इन स्वाभाविक फूलोंके इत्र तथा रथ दिया था। उसे यह बरदान भी मिला था तेलमें होती है वह इन कृत्रिम सुगन्धियों में नहीं कि वह देवता या राक्षसों द्वारा न मारा जा होती है। इसका मुख्य कारण यह है कि अभी तक सकेगा। इस कारण इन्द्रको पराजित किया भी रसायनशास्त्रवेत्ताओंको फूलोंके पूर्ण सूक्ष्म तथा वरुणको जीत कर बाँध लिया। रावणको पदार्थोंका पता नहीं लग सका है, इस कारण इससे बहुत मदद मिली थी। कुम्भकर्णकी मृत्यु उनकी क्रिया पूर्तिको नहीं पहुंची है। (वाङ्मय के बाद यह युद्ध करनेके लिये रामचन्द्रजीके सूचि 'प्राध' और श्राम देखिये)। सामने आया। लक्ष्मणजीने इसे घोर युद्ध करके अतरसुवाँउपविभाग-इसके उत्तर में देहगाँव | मार डाला। (वा० स० युद्ध स०७१) का ताल्लुका, पूर्व तथा दक्षिण में खेड़ा ताल्लुकेका अति परमाणु विद्युत्करण- (१) निरवयव कुछ भाग तथा पश्चिममें भी देह गाँवका उपः । विद्युत्मलमान अथवा विद्युत् परमाणुकी कल्पना- विभाग है। इसके बहुतसे विभाग तथा गाँव मॅक्सवेल ( Maxwell ) ने विद्युत् विश्लेषण ब्रिटिशराज्य सोमान्तर्गत है। ( Electrolysis) की सहायतासे पता लगाया यह प्रदेश पहाड़ी तथा जङ्गली होनेके कारण था कि पदार्थके प्रत्येक परमाणु पर विद्युत्भार बड़ा रमणीक है। १८७६-८० में वर्षाका मान लग- एक सा होता है, किन्तु आगे चलकर १८८३ ई० भग २५-६० इंच था। वात्रक, मागम, धम्मी, | में उसे इस विषयमें स्वयं ही सन्देह होने लगा वाराणसी तथा मोहर नदियाँ इस प्रदेशमें से और इसके विरुद्ध विधान करने लगा। किन्तु होकर बहती हैं। इसके पीछे की ओरकी भूमि उसके बाद होने वाले विज्ञानवेत्ताओंने पूर्णतया रेतीली है, तथा किसी किसी स्थानमें काली मिट्टी परीक्षा करके उपरोक्त कथन सत्य सिद्ध कर दिखाई देती है। यहाँ पर अधिकतर कोल जाति दिखाया । के लोग रहते हैं। १९११ ई० में यहाँ की जन- संख्या लगभग २०२२२ थी। परमाणुका पूरा विद्युत्भार विद्युत् मूलमानही ( Unit) हैं। इसके आधार पूर्ण हो सकते अतरसुवाँ गाँव-यह बड़ौदाके अतर-सुवां सव- है किन्तु भिन्नात्मक ( fractional ) होना सम्भव डिविजन' का मुख्य स्थान है (व० इ० )। इसकी नहीं। आज कल जो स्थिर-विद्युत् मूलमान जनसंख्या तीन हज़ार है । यहाँ पर एक डाकखाना, ( Unit) व्यवहारमें आते हैं, उनकी अपेक्षा ये गुजराती पाठशाला तथा एक टूटा हुआ किला | बहुत सूक्ष्म हैं।