पृष्ठ:ज्ञानकोश भाग 1.pdf/१४५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

- अति परमाणु विद्युत्करण ज्ञानकोश (अ) १३२ अति परमाणु विद्युत्कणं डा० जानसन स्टोनी ने विद्युतभारवाही | का तो कोई प्रश्न ही नहीं रह जाता क्यों कि ऋण परमाणुको विद्युत्कणवाही परमाणु' की नाम ध्रु बसे एक पदार्थ अत्यन्त बेगसे निकलता रहता संज्ञा दी है और विद्युत्कणको 'द्रव्य रहित है और उस समय तक यह अदृश्य रहता है जब विद्युत्भार ' माना है। ये ही नाम अब भी चाल तक यह किसी भाँति रोका नहीं जाता, अर्थात् हैं। ये विद्युत्कण परमाणुगोसे विल्कुल सटे । इसी की गतिमें रुकावट डालने पर यह देख हुए रहते हैं। अतः विद्युविश्लेषण के समय पड़ने लगता है। इसमें सन्देह नहीं कि यह विभिन्न विद्युन्मार्गसे टकराने के कारण नष्ट हो प्रदेश कृष्णकिरणों द्वारा व्याप्त होनेसे कृष्ण ही जाते हैं। विद्युत्भार के कारण ही परमाणु विद्यु. होता है। किन्तु उसकी सीमा प्रकाशयुक्त होती मार्गकी ओर अग्रसर होते है अथवा यों भी कह है क्यों कि उस जगह इन किरणोको रुकावट सकते हैं कि विधुत्भार परमाणु के साथ जाता है। होती है। अन्य दशामें इनकी गति बिल्कुल विद्युविश्लेषण के समय विद्युन्मार्ग के कारण सीधी होती है और आपसमें यह एक दूसरेसे विद्युत्भारका नाश हो जाता है और केवल द्रव्य बिल्कुल नहीं टकराते। यह सिद्ध करना बिल्कुल परमाणु ही रह जाता है। यह भार एक परमाणु कठिन नहीं है कि इन कृष्णकिरणों में भी शक्ति है। एक गुना दो पर दुगना इसी भाँति बढ़ता जोता यदि इन किरणोंको केन्द्रीभूत करके उसके समीप है। इससे यह विदित होता है परमाणुके साथ | लातीनमका टुकड़ा रक्खा जाय तो वह खूब गरम इसका सम्बन्ध निश्चित् ही होता है। अतः इस हो जावेगा। अतः यह स्पष्ट है कि इन कृष्ण- परमाणुके विद्युन्मानको विद्युत्परमाणु कहने में किरणोंमें भी शक्ति अवश्य है। बात रहित प्रदेश कोई भी आपत्ति नहीं रह जाती ज्यों ज्यो बढ़ाया जायगा त्यो त्यो प्लातिनम भी (२) अति परमाणु विद्युत्कोंकी कल्पना--(अ) कम गर्म हुश्रा करेगा। पूर्ण वात रहित अवकाश वातरहित नलीके भीतरका दृश्य-यदि विद्युत् के समय यद्यपि कोई दृश्य प्रकाश नहीं निकलता मण्डलमें एक वात-रहित नली छोड़ दी जाय । तौ भी एक प्रकारकी अत्यन्त शक्तिशाली किरण और एक मामूली छोड़ी जाय तो विद्युत्प्रवाह उस | निकलने लगती है। उसे क्ष-किरण कहते हैं। खुली जगहसे न जाकर उस बातरहित नलीसे | प्रक्षिप्त पदार्थ यदि एकाएक रोक लिया जाय तो जाना ही पसन्द करेगें। जब बात रहित नलीसे | उसमेंसे क्ष-किरणका विसर्जन होने लगता है। विद्युत्प्रवाह गुजरता है तो उस नलीमें चमकता यह गुण चरविद्युत्भारमें ही होता है और वह हुआ प्रकाश दिखाई देता है। ज्यों ज्यों उस बात भी तभी होता है जब उसकी और प्रकाशकी गति रहित प्रदेशका विस्तार बढ़ाया जाय वैसे ही वैसे ! समान ही हो। इस चमकते हुए प्रकाश रङ्गमें भी भेद होता जाता है। इन ऋण-ध्र व किरणोकी भेदन शक्ति विल- अन्तमें उस नलीके सिरे पर एक पूरा पट्टा दिखाई ! क्षण होती है। यह एक धातुकी चद्दरको छेद देता है। यदि दात रहित प्रदेश बहुत अधिक कर निकल जाते हैं और बादी वायुके संघर्षसे बढ़ाया जाय तो उस पूरे पट्टेके बदले विभिन्न | तेजमय हो जाते हैं। यह दृश्य देख कर कुछ की टुकड़े टुकड़े देख पड़ेगें, और ऋण ( Negative) धारणा यह कि ये विद्युत्भारयुक्त पदार्थ पर- ध्रुवके समीप एक काला भाग देख पड़ेगा। इसके माणु हैं लेकिन पदार्थके परमाणु बिना किसी पूर्व कि यह काला भाग नलीसे व्याप्त हो ऋणध्रुव श्राघातके एक इञ्चका सहस्त्र भाग भी चल नहीं से दूसरा ही तेज युक्त भाग निकल पड़ता है। सकते। किन्तु यह क्रिया होते समय यदि बातरहित भाग कुछ काल तक लोगोंकी यह कल्पना थी कि बढ़ाते जाया करें तो अन्तमें तेज युक्त मांग नष्ट ऋण-ध्रुव किरणे गतियुक्त हैं और इनकी गति हो जाते हैं, और नलीमें एक अदृश्य प्रवाह शुरू | तथा साधारण अणुओंकी गति समान ही है। हो जाता है। ऐसी अवस्थामै विद्युन्मण्डलकी अन्तर केवल इतनाही है कि उनका मार्ग सादे वायु जगह बढ़ानी पड़तो हैं नहीं तो यह प्रवाह बात पदार्थोके मार्गसे अधिक विस्तृत है। उसी भाँति रहित नलीसे न जाकर खाली जगहसे जाने लगता वे चलते भी समान रेखान्तरों में हैं और उनकी है। अस्तु ! इस भाँति जो अदृश्य प्रवाह प्रारम्भ गति उष्णतांशु विक्षेपणकी भाँति अनियमित भी होता है उसीको ऋण-ध्रुव किरण कहते हैं। नहीं होती। इसका कारण यह है कि उनको (आ) ऋणध व किरण-वात रहित नलीमें खुला मार्ग बहुत विस्तृत मिलता है। क्रूक नामक अदृश्य प्रवाह शुरू होने पर प्रकाश या दृश्यभाग विज्ञानवेत्ताका मत है कि पदार्थको जैसे तीन