पृष्ठ:ज्ञानकोश भाग 1.pdf/१४७

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अति परमाणु विद्युत्कण ज्ञानकोश (अं)१३४ अति परमाण विद्युत्कण होती है। ऐसे धातुपत्रोंको भेदकर भी ये चले जाते है । यातो वे उपरोक्त-कल्पित अति-परमाणु विद्यु- हैं जो हमलोगोंको छिद्ररहित देख पड़ते हैं। इससे स्करण होंगे अथवा वे किसी भिन्नही प्रकारके यह सिद्ध होता है कि उनका आकार बहुत ही विद्युत्परमाणु होंगे । छोटा होगा। (३) उफ्नील लोहित किरणोंके योगसे होने वाला विद्यु. (२) ऋण-ब्रुव किरणोंकी गति तथा विद्युत् रासा- स्राव-यदि किसी ऋण-विद्युत्पूर्ण भाग पर उप. यनिक सममूल-जव अतिपरिमाणु विद्युत्कणों नील लौहित किरणे चाहे वे किसी प्रकाश स्थान के गतिको ओर ध्यान देते हैं तो यह कल्पना कि से आई हुई हों-गिराई जाएँ तो उस भागमें से ऋण-भ्र व किरणें परमाणुगोसे बनी होगी, | विद्युद्भार धीरे २ लुप्त होने लगता है यदि उस बिल्कुल ही छोड़ देनी पड़ती है। क्योंकि उनकी भागके जितने समीप लोह चुम्बक लाया जाय तो गति प्रति सेकण्ड १० हजार मील अथवा कमसे लोह चुम्बककी शक्ति रेखाये ( lines of force ) कम प्रकाश की गति का दशांश तो होती हैं। यदि | जिस दिशासे जाती हो उस परिमाणसे उनमें यह सेन्टीमीटरग्राम-पद्धतिसे निकाली जावे तो वह अन्तर होता है। यह स्त्राव कणोंके स्वतः बाहर १० होती है और विद्युत्रासायनिक सममूल १०७ निकल जानेसे ही होता है। ऋण ध्रुव किरणों में होता है। इसके प्रमाणके लिये उजवायु ( Hyd-| जिस प्रकार विद्युत्कण स्वयं ही घूमते रहते हैं, roger) माना गया है । निर्वात्नली का वायु कोई उसी प्रकार उपनील लोहित प्रकाशके कारण वे भी हो अथवा विद्युत्मार्ग किसीभी प्रकार का हो इस भागसे स्वयंही जाने लगते हैं। यह दृश्य उसमें अन्तर नहीं पड़ेगा ऋण-भ्रु व-किरणों की देखनेके लिये यह आवश्यक नहीं है कि प्रदेश गति दो विद्युन्मार्गीकी संम्भाव्य-शक्तिके अन्तर निर्वात ही हो; पर निर्वात प्रदेशमें यह दृश्य तथा नलीके निर्वातता पर ही अवलम्बित अधिक अच्छी तरह दिखाई पड़ता वस्तुतः रहती है। ऋण-5 व किरणें जिन कोंसे बनी हुई है, अणुमे बिना चञ्चलता ( गति ) प्रारम्भ हुए यह उनकी गति चाहे कितनी ही विलक्षण हो तोभी के समकालिक आन्दोलनोंके योगसे ही इस नाव सम्भव नहीं है। उपनील लोहित किरणों शक्ति उनकी साधारण ही रहेगी और उनका आन्दोलन (चंचलता) का प्रादुर्भाव होता है। सम्पूर्ण पिण्ड बहुत कम होगा । किन्तु उनका कुलं अणुमे आन्दोलन प्रारम्भ होने पर उनका ऋण विद्युत्भार विलक्षण तथा बहुत अधिक होता है। विद्यद्भार उनसे अधिक शिथिल होता है और वे क्यों कि १५ मायक्रोफॅरेड ( micro-farad ) की वहाँ से दूर होने लगते हैं। इसके अतिरिक्त ग्राहकता १ सेकेण्डमै ५ वोल्टतक वे बढ़ाते हैं। किरणोंके संयोगसे कुछ अंशमें धन-विद्युत भी अथवा जिस तापमापक की तापग्रहण-शक्ति उत्पन्न होने लगती है। ४ मि० अ० जलुके बराबर है, उसकी उष्णता दो | उत्पत्तिके योगसे जो परिणाम होता है केवल वही इस धन-विद्युतको अंशोंमें बढ़ाते हैं। किन्तु इनका पिण्ड इतना छोटा धातुके उष्णताप मान पर अवलम्बित रहता है । होता किमि० ग्रा० एकत्रित करने में १०० वर्ष जे. जे. थोम्सन नामक विज्ञानवेत्ताने इस लग जावेगें । उनकी गति बन्दूकसे छूटी हुई गोली | सावको गणना के लिये कई प्रयोग किये उन प्रयोगो की गतिसे लाखगुनासे भी अधिक है । यदि इन से पता लगा है कि लोह-चुम्बकके संसर्गसे धातु किरणों का द्रव्यमै समावेश किया जाय तो द्रव्यों के पात्रमें छोड़ने पर इन कणोके घुमनेका जो भी इनकी गति सबसे अधिक है। अब यदि यह मार्ग है वह चक्रामास ( Cycloid ) है । और कहाजाय कि इन ऋण-ध्रव किरणोंके कणपरमाणु है तो कमसे कम यह भी मान लेना पड़ता है कि चक्राभासका प्रमाण ( सूत्र ) ( पपिण्ड उनके ऊपर का विद्यत्भार बहुत अधिक है । किन्तु और व-विद्युत्भार ) हैं। अर्थात् उस कणके इन गतिमान कणों का विद्युत्भार तथा विश्लेषणमे | पिण्ड तथा उस पर रहने वाले विद्युत्भार दोनोंके मिले हुए परमाणुओं का विद्युत्भार समान ही भागाकारके अनुसार ही उस चक्राभासका आकार है। यदि यह मान लिया जाय कि ये परमाणु हैं होता है। चक्राभासके अदृश्य होनेके कारण तो उनका पिण्ड भी विश्लेषणमें मिले हुए परमाणु उन्हें प्रत्यक्ष देखना अत्यन्त दुर्लभ है। केवल पिण्ड की अपेक्षा सहस्रांशमै छोटा होना चाहिये। उसकी कल्पना भरकी जा सकतो है। मान ऐसा निश्चित होजानेपर ऋणध्रुवसे निकलने वाले लीजिये कि किसी धातुके पत्रसे यह कण निकल कणोंकी कल्पना दो ही भिन्न प्रकारोंसे की जासकती | रहे हैं और यदि उस पत्रके निकट किसी दुसरे