परभ वर्ल जाला र्शाया गया है- २५०वि० बलर ति परमाणु विद्युत्करण ज्ञानकोष (अ) १३५ अति परमाणु विद्युत्कण त्रको खाया जाय और वह पत्र यदि चक्राभासके बहुतसे कण भाने लगते हैं वे उस समय इन ज्याके { radius ) अन्तर्गत हो तो उस पर विद्युत्कणोंके चक्रामास-मार्गको स्पर्शज्या पृथ्वीके द्युत्भार गिरेगा और यदि त्रिज्यान्तरके बाहर समान्तर पर रहती है और यह चक्राभास रेगा तो विद्युत्भार बिल्कुल नहीं गिरेगा। इस विक्षेप 'फ' तश्तरीके मध्यसे जाता है। इतने ति उस दूसरे पत्रको हिलाकर यह जाना जा : ज्ञानसे वक्रगतिकी त्रिज्या निकाली जा सकती है। सकता है कि इन कणोंका मार्गचक्राभास है, किन्तु लेनार्डने यह बात दि इसी पत्रको त्रिज्यान्तरके बाहर ले जाकर इसमें प=पिण्ड; ग=पिण्डकी गति; व-विद्युत्भार, -सूत्र द्वारा दर्शायी है। बेधुत्क्षेत्र अधिक शक्तिमान किया जाय अथवा हचुम्बकीय क्षेत्र कम किया जाय तो भी इस ल=पृथ्वीकी लोह चुम्बक शक्ति। इनमें गतिका र बहुतसे विद्य त्कण पा सकते हैं। त्रिज्यात माप 'क' और 'व' इन्हीं दो भागों में है। अतः तकी टीक ठीक गणना धातुके दुसरे टुकड़ेको ये उनकी शक्ति के अन्तर पर हैं। और वह [गे पीछे हटाकर की जा सकती है। जिस स्थान [{ पxग = व (श-श')] सूत्र द्वारा निकाला विद्युत्भारका आना कम होने लगे उस त्रिज्या शक्तिके निदर्शक हैं। अर्थात् 'क' तथा 'व' के । इसमें श व श' दोनों ही विद्युन्मार्ग जरको मानना ठीक होगा। यह अन्तर तथा शक्ति-निदर्शक कहे जा सकते हैं। (श-श') से रेण्ड-विद्युच्छक्ति इत्यादिका सम्बन्ध इस सूत्रमें शक्तिका अन्तर दिखाया जाता है। इस भाँति । इसमें प=पिण्ड ! गति, पिण्ड तथा विद्युत्भारके प्रमाणसे दोनोंकी घे क्षेत्रकी विद्युच्छक्ति व=पिण्डका विद्युत्भार : गणना की जा सकती है। लोहचुम्बककी शक्ति (पृथ्वीकी लोह चुम्बक यह पिण्ड तथा विद्युत्भारके प्रमाणका मूल्य [क्ति=Magnetism ) है। क्षेत्रकी विद्युच्छक्ति (Value ) उस समयका निकाला हुआ है जिस [था पृथ्वीको चुम्बक शक्ति मालूम हो जाने पर समय दबाव कम होता है। किन्तु यदि दबाव रेण्ड तथा विद्युत्भारका प्रमाण सरलतासे अधिक हो तो इनका मूल्य इसकी अपेक्षा कम हो नेकाला जा सकता है। यद्यपि त्रिज्यान्तरकी सकता है। इससे यह विदित होता है कि कम पणना ठीक ठीक नहीं हो सकती तथापि इस दबाबके समय विद्युत्कणका संयोग परमाणुसे योगसे निकले हुए पिण्ड और विद्युत्भारके होता होगा। सादे वातावरणके दबावके समय माणका मूल थामसनके निकाले हुए १० के धन या ऋण परमाणुके अवयवोंकी गति वायुरूप बल्कुल करीब करीब पाती है। द्रव्योमें भिन्न नहीं होती। इसके लिये विद्युत्क्षेत्र इन प्रयोगोंमें यदि कुछ भी विशेषता है तो ही होना आवश्यक है। रेडियमसे निकले हुए हिं यह है कि इनमें विद्युन्मापक विक्षेपके अति- विद्युत्कणोंकी गति इतनी होती है कि उनके रेत और कुछ भी देख नहीं पड़ता। यदि लेनार्ड विषयमै परमाणुके संयोगका भाग देख भी नहीं की रीतिसे प्रयोग किया जावे तो पहले यह देखना पड़ता। चाहिये कि महत्तम विक्षेप कितना होगा और यदि गति प्रत्येक सेकेण्डमै १० सेन्टीमीटर होती है ५ अति परमाणु विद्युत्कणोंकी गति-धनवाहककी गामसनको पद्धतिसे प्रयोग करें तो यह देखना और ऋण-वाहक गति प्रत्येक सेकेण्डमै ३४१०' वाहिये कि शून्य विक्षेपसेविक्षेपविशेष तक सेन्टीमीटर होती है। यह गतिप्रमाण प्रत्यक्ष केस प्रकार की गति है। गणना करके निकाला गया है। इस गतिमें जो ४ लेनार्डके प्रमाणको गणना करनेका प्रयोग- अन्तर दृष्टिगोचर होता है इससे इस काल्पनिक इस प्रयोगमें विद्युत्स्फुलिंगका तेज विद्युत्भारित सिद्धान्तकी पुष्टि होती है कि धन विद्युत्भारके 'क' तश्तरी पर गिरती है। तदनन्तर उसमेंसे साथ द्रव्य परमाणु सदा ही लगे रहते हैं। इनका वेधुत्कण बाहर आकर 'ब' नामक सरंध्र तश्तरी द्रव्य परमाणुके साथ संयोग होने के कारण ही से इ' तश्तरी पर गिरते हैं। यदि ऐसे समयमें परमाणुओंका अवयव विद्युदणु ( Ions) कहते उनके मार्गमें उचित रीतिसे लोह चुम्बक शक्ति हैं। ऋण विद्युत्भार बहुधा स्वतंत्रः ही मिलते छोड़ी जाये तो 'फ' तश्तरी पर उनका विक्षेपण हैं। सम्भव है किसी समय उनके साथ भी द्रव्य होता है और वे गिरने लगते हैं। 'इ' तथा परमाणुओंका भार होता हो, किन्तु ऐसी अवस्था 'फ' दोनों ही भिन्न भिन्न विद्युन्मार्गों द्वारा जुड़े में उन्हें । Corpuscle ) रज ही कहना चाहिये । जिस समय फ तश्तरी पर द्रव्य-परमाणु-रहित विद्युद्भार उसी अति पर
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