- अति परमाणु विद्युत्कण ज्ञानकोश (अ) १३८ अति परमाणु विद्युत्करण हुआ यह भी जाना जा सकता है कि कितने जल वजनका मूल्य होनेसे,व अर्थात् विद्यत्भार निकाला की कितनी बूंदें हुई। उसी प्रकार यह भी पता जासकता है। इस प्रयोग द्वारा प्राप्त विद्युत्भारका लगाया जासकता है कि उनके गाढ़ीकरण काम मूल्य ( ३१४१०१०) था । गतिमापन की पानेवाले मध्य बिन्दु' अर्थात् विद्युत्कण कितने हैं। सहायतासे थामसन द्वारा निकाला हुआ भूल्य एक घन सेन्टीमीटर में इस प्रकार की ३००००/३.४४१०.१० था। बुदे गिनी गई हैं। और जितनी बूंदे होती हैं आकार-ये इधर उधर घूमने वाले द्रव्य कण उतने ही मध्य बिन्दु होते हैं जिनसे मध्यविन्दुओं और यह सिद्धान्त मान कर चलें कि उन पर की संख्या गिनी गई। भी कुछ विद्युत्भार है तो इस कणकी द्रव्य तथा इस प्रयोगके कारण जव मध्यविन्दुओं की विद्युत् दोनों की ही रचना सिद्ध होती है। मतलब संख्या विदित हो जाती है तो उसका प्रमाण सूत्र दोनों कारणों पर निर्भर होनी चाहिये । इस प्रकार यह कि उसको जितनी जड़ता प्राप्त होवह भी इन्हीं से निकाला जासकता है कि केवल पिण्ड कामूल्य की दोहरी कल्पनाके कारण गति का होना कठिन और उस पिण्डके विद्युत्भार कामूल्य कितना होगा। होनेलगा। किन्तु उसके बदलेमें यह कल्पनाकी जाय स्थिर विद्यु समानके प्रमाणसे गणना की जाय कि ये घूमने वाले करण विद्युत्कणके अतिरिक्त और तो विद्युत्भार (३४१०१० ) होता है, और यदि कुछ नहीं है. उन्हीं पर विद्युत्भार है और वे ही विधु चुम्बकीय मूलमानके प्रमाणसे गणना की परमाणुओंके घटक है किन्तु उन्हें किसी व्यके जाय तो १०२ ० होता है। पिण्ड का जो मूल्य इस मध्यविन्दु ( Material Nucleus) की आवश्य- भांति प्रावेगा वही वनविद्युत्वाहक अथवा विधु - कता नहीं है तो यह कल्पना प्रगतिके मार्गमें बाधक दणुका होगा और वह परमाणुके वास्तविक पिण्ड नहीं होगी। परमाणुओं के जो गुण धर्म हैं वे का मूल्य प्रदर्शित करेगा। किन्तु यदि इस मूल्य सब इन धन अथवा ऋण विद्युत्कणोंके समुदायसे की अपेक्षा अधिक मूल्य निकले तो यह कहना हुए होंगे और उनमें से हरएक एक दूसरेसे अलग पड़ेगा कि एकसे अधिक परमाणु एक ही स्थान किया जा सकता है और उसका अस्तित्व स्वतन्त्र है पर एकत्रित हुए हैं। ऋणविध द्वाहक अथवा ! यदि इस कल्पित सिद्धान्तके अनुरोधसे इन कणों के पिण्डकी गणना हो सकती है तो उनके श्राकार विद्युत्कणके । विद्युद्भार और पिण्डके प्रमाण का की भी गणना होनी चाहिये । यदि कुछ विद्युद्गुण मूल्य १० है और उनके पिण्डका मूल्य १०२७ और कुछ द्रव्य गुण दोनोंका हिसाब निकाला जाय ग्राम है यह सबसे हलके उज्ज ( Hydrogen ) तो हम लोगोंको किसी का भी पता न लगेगा और के परमाणु का ... वाँ भाग है। इस भाँति प्रयोग इसलिये यही मानकर चलना पड़ेगा कि ये कण से यह सिद्ध है कि परमाणुसे भी छोटे पिण्डों का केवल विद्युत्कण है। यदि दूसरे कल्पित सिद्धान्त अस्तित्व है। इसके सिद्ध होनेके योगसे विज्ञानशास्त्र का अवलम्बन किया जाय तो पिण्ड और विद्युत के इस विभाग; एक नये युगका प्रारम्भ होगया। भारके प्रमाणसे इन कणोंका आकार भी निकाला (१) अतिपरमाणु विद्युत्कणका विद्युत्भार-एच० जा सकेगा क्योंकि इनका पिण्ड ( हाइड्रोजन) ए. विलसन नामक विज्ञानवेत्ताने त्रिशंकूके प्रयोग उज्ज परमाणुके पिण्ड ..वाँ हिस्सा होता है। से इस विद्य त्भार का मूल्य निकाला । वह प्रयोग | यदि उसका विद्युत्भार स्थिर विद्युन्मूल मानके इस तरह है कि हवामें से नीचे गिरते समय द्रवित- अनुसार गिना जाय तो १०.१० होता है। यह बात भाप के विन्दु को त्रिशंकू की भांति बीचोबीच | ऊपर बतलाही जा चुकी है। अब विद्युत्कणका जितना लटका रखने के लिये जितनी विद्युत्शक्ति की जड़त्व है उतनाही जड़त्व यदि इस विद्युत्भारका आवश्यकता पड़ेगी उसको निकाला । फिर उस | भी होता हो तो उस विद्युत्भारका श्रोकार १०-११ विन्दु का वजन ओर विद्यु च्छक्ति का समीकरण सेन्टीमीटर त्रिज्या वाले वृत्तके बराबर ही होना किया गया और उसका मूल्य निकाला । यदि 'य' चाहिये, और ऐसी दशामें हमलोगोंके कल्पित उस विन्दु का वजन हो और 'ई' विद्युत्क्षेत्र की विद्युत्कण का भी आकार यही होना चाहिये । अब शक्ति और 'प' उस विन्दुके मध्यमें रहनेवाले इस श्राकार की ओर देखनेसे यह मालूम होने मध्यविन्दु का भार हो तो उनका समीकरण य = लगता है कि ऋणध्र व किरणोंकी भेदक शक्ति इxव, क्रिया जावेगा। इस समीकरणमें 'इ' यथार्थ है क्योंकि स्वयं द्रव्य परमाणु ही इन विद्यु- अर्थात् विद्य क्षेत्र का मूल्य, और 'म' उसविन्दुके त्कणोंके बने हुए हैं। इसलिये यह आवश्यक है "-" --
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