पृष्ठ:ज्ञानकोश भाग 1.pdf/१५५

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अति घरमाणु विद्युत्कण ज्ञानकोश (अ) १४२ अति परमाणु विद्युत्कणं ऐसेकी अपेक्षा प्रकाशकी गति कुछ भी निर्धारित विद्युत्कणका प्रतिबिम्ब है और प्रयोगकी घटना रहनेसे मूल पिण्ड जितना बढ़ा हुआ देख पड़ता | इसी दृष्टिसे करनी चाहिये। जो कुछ भी हो पर है उसका प्रमाण अनुक्रमले १५, १.६६, २०, पदार्थ विज्ञानशास्त्रका मुख्य प्रश्न अब यह हो रहा २४२,३१ होता है किन्तु प्रत्यक्ष देखा हुआ १६५, है कि ये धन विद्युत्कण क्या है। बिना यह १३, २०४, २४३, ३८४ होता है। इससे यह निश्चय हुए यह समझमें आ ही नहीं सकता कि स्पष्ट हो जाता है कि प्रयोग तथा सिद्धान्त कितने परमाणु क्या है। तथापि इसके वास्तविक रूप मिलते जुलते हैं। तथा अस्तित्वके विषयमै कुछ कल्पनायें नीचे दी इस प्रकार सिद्धान्त तथा प्रयोगोंका फल हुई हैं। बिल्कुल एक हो गया। चाहे यह सिद्धांत काल्प (१)परमाणुका मध्यभाग साधारण द्रव्यका निक ही हो कि विद्युत्कोका जड़त्व विद्युत्भारके ही बना हुआ है। भेद केवल इतना ही है कि जो कारणही है तथापि उसके विरुद्ध शंका करनेका विद्युत्कण अर्थात् ऋण- विद्युत्कण उसके चारों स्थान नहीं मिलता । यदि कोई यह कहे कि तरफ रहते हैं उनके विद्युत्भारको शून्य करनेके विद्युत्कण द्रव्यमध्य और वे सब विद्युन्मय लिये उनमें कुछ विद्युद्भार रहना आवश्यक है। नहीं है तो यह सिद्ध करनेका भार उसी पर (२) परमाणुका पिण्ड धनविद्युत्कण तथा होगा। आज तकके प्रयोगसे तो उपरोक्त कथन । ऋण-विद्युत्कणसे बना हुआ होगा। यद्यपि ही सिद्ध हुश्रा है। किन्तु परमाणुके विषयका सुदृढ़ बन्धनोसे वे एक दूसरेसे नथे हुए हैं तो भी प्रश्न फिरभी रही जाता है। आज तक भी इसका कुछ न कुछ तो उनकी अन्तर रचना होगी हो। ठीक ठीक समर्थन नहीं हो सका कि परमाणु (३) परमाणुका मध्य धन-विद्युत्के एक ही पूर्णतः इन विद्युत्कणोसे ही बना हुआ है। अभेद्य गोलेका होगा उसका आकार प्रायः गोल द्रव्य सम्बन्धी विद्युत्दृष्टि-उपरोक्त वर्णित भिन्न रहेगा ओर उसमें विद्युत्भारके लिये पर्याप्त धन- भिन्न प्रयोगोंसे यह सारांश निकलता है कि महत्व विद्युत्कण मिले हुए होंगे। ये चक्रगतिसे चारों के गिनेजाने वाले चपल कण केवल विद्युत्भार तरफ घूमते होगें । हैं और उनका मध्य भी द्रव्य या किसी अविद्युत (४) धन तथा ऋणविद्युत्के आपसमै पूर्ण पदार्थका नहीं है। इससे यह महत्वपूर्ण ज्ञान रूपसे मिल जाने पर परमाणु बन गया होगा। प्राप्त होता है कि ऋण-विद्युत् छोटे छोटे भिन्न २ उनको एक दूसरेसे अलग करनेके लिये चाहे अभेद्य तथा प्रद्रव्य भागों में भी रह सकते हैं और कितनी शक्ति लगाई जाय वे कभी भी अलग नहीं इससे विद्युत्प्रवाह, लोहचुम्बक तथा तेजोत्पादक हो सकते । सदा वे इसी प्रकार रहते होंगे, मानो मूल दृश्योंका अर्थ हम लोगोंकी समझमें आने वह एक ही पिण्ड है। लगता है, किन्तु रासायनिक क्रिया द्वारा किरण (५) परमाणु तीव्रतासे एकजीव किया हुआ विसर्जनका भली भाँति स्पष्टीकरण, विद्युद्वहन धन-विद्युत्रूपी एक सूर्य है जो मध्य भागमें स्थिर सम्बन्धी भिन्न भिन्न पदार्थोंमें देख पड़ने वाले | है। उसके चारों तरफ उसके कक्षकी आकर्षण अन्तरका अर्थ इत्यादि पूर्ण रीतिसे समझनेके शक्तिकी सीमामे बहुत ऋणविद्युत्कण फिरते होगें। लिये यह भी जानना आवश्यक है कि जड़ पदार्थ इन कल्पनाओं में से तीसरी कल्पनाके अति- क्या है। विद्युत्कणके अंगमें विद्युजड़त्व होना रिक्त और सब अनिश्चित हैं। सन्देह तो तीसरी सिद्ध हो चुकने पर भी परमाणुके सम्बन्धमें यह कल्पनामै भी है। जब तक धनविद्युत्का अर्थ अभी सिद्ध नहीं किया जा सका है। इसके हमारी समझमें पूर्ण रूपसे नहीं भाता तब तक अतिरिक्त अभी तक केवल ऋणविद्युत्कण ही यह सन्देह बनाही रहेगा। इसके अतिरिक्त इसमें देखनेमें आया है। धन-विद्युत्कण अभी तक और भी बहुत सी निश्चित बातें दिखाई पड़ती हैं। देखने में नहीं आया। इससे यह विदित होता है इस कल्पनाका चाहे मूल्य कुछ भी न हो किन्तु कि द्रव्य परमाणुसे भिन्न उसका कोई खतंत्र इससे अव तक बहुत सा काम हुआ है। यद्यपि अस्तित्व नहीं है। सम्भव है द्रव्य परमाणु स्वयं यह कल्पना अब तक पूर्णताको प्राप्त नहीं है तो ही धन-विद्युत्कणका गोला हो । केवल अनुमान भी उसके खाभाविक मूल्यके कारण उस ओर ही अनुमान इस पर किये गये हैं निश्चय कुछ नहीं विशेष ध्यान देना आवश्यक है । एक विद्वान् कहा जा सकता। लॉरमूरका मत है कि धन- विज्ञानवेत्ताने कुछ काल पूर्व ही एक लेख लिखकर विद्युत्कण दर्पणमें दिखलाई पड़ने वाला ऋण- | इसे और भी सन्देहात्मक बना दिया है । अतः इस