पृष्ठ:ज्ञानकोश भाग 1.pdf/१५६

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अति परमाणु विद्युत्करण ज्ञानकोश (अ)१४३ अति परमाणु विकण कल्पनाको भी अधूरी ही छोड़नी पड़ती है। अधिक होता है। मालूम होता है कि यह क्रिया यद्यपि विद्युत्कणोंकी रचनाका विषय छोड़ भी विद्युच्छक्तिके कारण होती होगी। किन्तु इस दिया जाय तो भी इस दृष्टिसे कुछ गुण धर्मोंका प्रकारकी संसक्ति उन्हीं अणुओंमें होती है जो स्पष्टीकरण करना आवश्यक है कि द्रव्य विद्यु- रासायनिक दृष्टिसे संवृत होते हैं। यह संसक्ति मय है। अन्तरमें स्थित धनविद्युत्कणोकी एक दूसरे पर सेसक्तिस्वरूप Nature of Cohesion- क्रिया और प्रति क्रियाके कारण होती है। अथवा तीसरी कल्पनाके अनुसार यह माना जाता है कि | यों कह सकते हैं कि यह कार्य अविशिष्ट स्नेहा- विद्युत्कण एक नियमित श्राकारमें मिले हुए । कर्षणसे होता है। यदि दो अणु अण्वन्तरके बाहर स्फटिक शाखाके अध्ययनसे यह मालूम होगा कि | के हो और उनके आमनेसामनेके भाग यदि विरुद्ध उनके कौन कौनसे श्राकार होते हैं। विद्युद्धारसे भारी कर दिये जावे तो क्षण भरमें रासायनिक श्राकर्षण-वास्तविक रासायनिक रासायनिक आकर्षणके समान आकर्षणसे संसक्ति आकर्षण दो परमाणुओंमे होता है। इस परमा शक्ति बढ़ेगी और अण्वन्तरकी अपेक्षा अधिक णुमें किसी जातिका एक या एककी अपेक्षा | अन्तर पर इस संसक्ति-शक्ति का परिणाम देख अधिक अनियमित विद्युत्कण होते हैं । किसी पड़ेगा। परमाणुके ध्रुवी-भवनसे साधारण अणु परमाणुमै ऋणवियुकण अधिक होते हैं तो किसी शक्तिका औपक्रमिक अथवा रासायनिक स्नेहाक- में धनविद्युत्कण अधिक होते हैं। यदि ऐसे दो र्षणमें रूपान्तर होता है । इन दोनों तरहको परमाणुओंका सानिध्य हो तो उनकी कमी यो | शक्तियोंका ऊपर दी हुई तीसरी कल्पनासे विद्- अधिकता पूरी हो जाती है और एक ( Neutral) युतके ही आधार पर स्पष्टीकरण कर सकते हैं। तटस्थ अणु तयार होते हैं। किन्तु यह संयोग परमाणुके रचनाके सम्बन्धमें कुछ और विचार- चिरस्थायी नहीं होता क्योंकि जहाँ यह संयोग तीसरी कल्पना पर लोगोका आक्षेप है कि उनके होता है वहीसे छूट जाता है । केबल (Organic) | भागमें अन्यान्य प्रतिकार होने पर भी धन-विद्युत् कार्बनिक रसायनशास्त्रमै रसायनोको चाहे जिक्ष ' पिण्ड एक ही स्थानमें कैसे रह सकता है । भाँति भिन्न भिन्न प्रकारसे पृथक करनेकी पद्धतियां यह आक्षेप केवल धन-सम्बन्धी ही नहीं अरण. प्रचलित हैं। धर्पणके योगसे इन अणुओंका | सम्बन्धी भी हो सकता है। यदि वास्तव में इस विद्युत्सम्भार कम या अधिक होता है। जिसका प्राक्षेपमें कुछ तथ्य है तो यह कहना चाहिये कि वज़न अधिक होता है ऐसे स्थूल परमाणु स्वयं ही विद्युत्कणोंके कुछ और भी भाग हैं, और अभी अस्थिर होते हैं। इस भाँति अस्थिर होने पर तक यही ज्ञान प्राप्त हो सका है कि भिन्न भिन्न फिर स्थिर होनेके लिये वे अपनी भीतरी बनावट विद्युत्कण एक दूसरेका प्रतिकार करते हैं। वे में परिवर्तन करते हैं। यह परिवर्तन होते समय धन-विद्युत्भारसे आकर्षित भी होते हैं। किन्तु आवश्यकतानुसार वे विद्युत्कोको बाहर फेक यह हम लोग नहीं जानते कि एक ही विद्यु- देते हैं। इसी कारणसे किरण विसर्जन ( Radio- कणके विभाग एक दूसरेको दूर ढकेल देते हैं। activity ) का दृश्य दर्शनीय होता है। विद्युत्करणकी कार्य शक्ति-दिखलाने वाली रेखायें अणु शक्ति (Molecular force )-रासायनिक हर प्रकारसे बाहर ही रहनी चाहिये । उनका संसक्तिको छोड़ कर अणु-संसक्तिका भी कुछ अंश भीतर रहना आवश्यक नहीं। और सब विद्- होता है । इस अणु-संसक्तिका जोर ऐसे ही युत् क्रियाओंके लिये विद्युत्कणका अविभक्त परमाणु पर चलता है जिस पर विद्युत्भार | रहना ही अच्छा है । अथवा विद्युदणु नहीं होते। विद्युत्कणके दूसरा मत यह है कि हमलोग जिसे परमाणु सुव्यवस्थित रीतिसे रहते समय परमाणु पर कहते हैं वह केवल धनविद्युत्का ही नहीं, साथ छोटे २ रवे या गड्डे तयार होते हैं। यदि इस ऋण और धन, दोनों ही विद्युत्का कभी दूर न प्रकारके एक दूसरेमें रहने लायक दो रवे एक ' होने वाला पूर्ण मिश्रण है। वे वाह्य-पदार्थोसे स्थान पर आ जाय तो दो परमाणु जुड़ जाते हैं। कभी किसी तरह अकेले व्यवहार ही नहीं करते, यही कारण है कि इस प्रकारकी संलग्नता दृढ़ बल्कि दोनों के मिश्रणके गुण-धर्मानुसार.व्यवहार नहीं होती और साधारण अन्तर पर इस आक- करते हैं। उदाहरण-वास्तवमें जल, वायु तथा र्षणकी कुछ भी शक्ति नहीं होती किन्तु परमाणु उज्ज दो पदार्थों से बना हुआ है, किन्तु जलका ज्यो ज्यो निकट पहुँचते हैं त्यो त्यों यह आकर्षण : वाह्य शक्तिके साथ प्राण अथवा उनमें से किसी !