w डूबता है। अधिक सड़ा अतिसार ज्ञानकोश (अ) १४६ अतिसार ज्यादा भोजन करना, अतिस्नेह भक्षण, केचुला, अतिसारके निम्नलिखित चार भेद हैं- बवासीर, मलमूत्र इत्यादिका अवरोध तथा कुपित । श्राम, नियम, रक्त और रक्त रहित । उनमेसे वायुके कारण अग्निमंद हो जाती है और मल : आमयुक्त अतिसारमें मल पानी में डूबता है । पतला होकर गिरने लगता है। मलमें दुर्गन्धि रहती है। पेट में दर्द, पेट फूलना, अतिसार होनेके पूर्व हृदय, गुदाद्वार और जी मचलाना आदि इसके लक्षण हैं । अंतड़ियों में बड़ी वेदना होती है। शरीर ढीला हो जाता है। दस्त साफ नहीं होता, पेट फूल सार निराम समझना चाहिये। इसके खिलाफ़ (विरुद्ध) लक्षण हो तो अति- कफ जन्य अति- जाता है और अन्न नहीं पचता। इस प्रकार सार निराम भी हो तो भी उसका मल पानीमै आरम्भमैं यह सब होकर बादमें अतिसार होता है। अतिसारके छः प्रकारों से बातजन्य अति- जिस अतिसारमें मलका रंग पके हुए जामुन सारसे पेट में बहुत दर्द होता है। और दस्त के समान स्वच्छ रहता है या घी, तेल, चरबी, समय फर फर आवाज़ होती है और दस्त थोड़ा दूध, दहीके समान, अथवा काला, नीला, अरुण थोड़ा होता है। मल सूखा, लसदार, और गाशे वर्ण, अथया इन्द्रधनुषके रंगका होता है। वह से युक्त रहता है। गुदाद्वारमै कैचीसे काटने अतिसार असाध्य होता है । की तरह पीड़ा रहती है ( परिकीर्तन )। जले हुए हुआ मल जिस अतिसार में गिरता है वह भी गुड़के समान काला और लाल रंगका मल झाग असाध्य है। युक्त होता है। रोगीका मुख सुखा रहता है। शरीर पर रोये खड़े रहते हैं और चित्त ग्लानि- प्यास, शरीरकी जलन, नाखके सामने अंधेरा, दमा, बड़बड़ाना, हिचकी, पसलियोंमें युक्त रहता है। पित्तजन्य अतिसारमें मल पीला, हरा और दर्द, बेहोशी, चित्त अस्वस्थता, गुदाद्वारका पकना, काला होता है। उससे अति दुर्गन्ध आती है। गुदाद्वारका बन्द न होना सूजन, पेटका दर्द, ज्वर मलके साथ कभी कभी खून भी आता है। रोगी । हिचकी अथवा शरीरका ठंडा होना इत्यादि दभा, प्यास, खाँसी, अरोचक, वमन, बेहोशी, को प्यास अधिक लगती है। बेहोशी, पसीना लक्षणोंसे युक्त अतिसार का रोगी अच्छा और शरीरमें जलन पैदा होती है। पेट गड़ता नहीं होता। है गुदाद्वारमें भी जलन पैदा होती है और वह पक जाता है। दमा पेटका दर्द, प्यास और ज्वर आदि कफज अतिसारमें मल बंधा हुआ, चिकना, | लक्षणोंसे युक्त वृद्ध मनुष्य अतिसारके रोगसे सफेद और कफयुक्त रहता है। उससे अति नहीं बचता । दुर्गन्ध श्राती है। पेट हमेशा गड़ता है, रोगीको । अतिसारके रोगीको मल त्यागसे स्वतन्त्र भी नींद अधिक आती है। अन्न अच्छा नहीं लगता यदि पेशाब और वातासरण होने लगे तथा भूख, दस्तके समय बहुत काँखना पड़ता है, बालस लगे और शरीर हलका हो जाय तो रोगीके आता है, जी मचलाता है, पेट, गुदाद्वार और अच्छा हो जानेको पूर्ण आशा की जा सकती है। जांवे भारी हो जाती हैं। मल त्याग कर आने चिकित्सा अतिसार प्रायः मन्दाग्नि होने पर पर भी उसकी शंका बनी रहती है। आमाशयके विकारसे उत्पन्न होता है। इसलिये त्रिदोषसे होने वाले अतिसारमें सब दोषोंके चाहे वह बात जन्य भी हो तो भी प्रथम लंघन लक्षण रहते हैं। लाभदायक होता है। भयसे चित्तका क्षोभ होने के कारण वायु पित्त यदि अतिसारमें पेट में शूल हो, पेट फूला हो, युक्त होकर मलको पतला करता है। मल बहुत और लार छूटती हो तो वमन करवाना चाहिये। गरम और पतला रहता है। उसके साथ खून पक्व और अपक्क आहारसे मिलकर जब बहुत भी गिरता है जिससे मल रक्ती (गुंज) के समान पुराने विकार अतिसार उत्पन्न करते हैं तब वह लाल रहता है। उपरोक्त वातपित्तात्मज अतिसार अपने आप मतरूपमें बाहर निकलने लगते हैं। के लक्षण इसमें होते हैं। इसलिये उसे वैसे ही निकलने देना ही उसकी शोकसे होने वाले अतिसारके भी ये ही लक्षण दवा । अर्थात् पाचक, इत्यादि दवा न देकर हैं। भय अथवा शोकसे उत्पन्न हुआ अतिसार पथ्य रखनेसे ही काम चलजाता है। कष्ट साध्य समझना चाहिये। आमातिसार पर प्रथम ही स्तंभक औषधिनहीं
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