पृष्ठ:ज्ञानकोश भाग 1.pdf/१७०

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1 अथर्ववेद ज्ञानकोश (अ) १५७ अथर्ववेद पता लगता है कि संहिता बनाने वालोंका विशेष हो जायगा कि अथर्ववेद संहिताका समय ऋग्वेद ध्यान बाह्य रचना और ऋचाओंकी संख्या पर संहिताके समयके बाद श्राता है। उससमय आर्य था। किन्तु भीतरी विषयकी रचनामें भी उन लोग बढ़ते बढ़ते गंगा नदीके पास पहुँच गए थे। लोगोंने लापरवाही नहीं की है। एकही विषयके बंगाल के दलदल में रहनेवाला शेर ऋग्वेदमें नहीं दो. तीन चार या इससे भी अधिक सूक्त अधिकतर मिलता। किंतु अथर्ववेदमें उसका वर्णन पाया एकही स्थानमें मिलेंगे। कांडके आरंभमें किसी जाता है। वह हिंसक पशुओंमें सबसे बली और विशिष्ट सूक्तको पहला स्थान देनेका कारण उस भय उत्पन्न करनेवाला है तथा राज्यभिषेकके समय सक्तमें वर्णित विषयहो सकता है। उदाहरणके राजाके पराक्रमको व्यक्त करनेके लिये उसका लिये, दूसरे, चौथे पांचवे और सातवें कांडोंके चर्म राजाके पैरके नीचे फैलाया जाता है और श्रारंभमै 'ब्रह्मविद्या संबंधी सूक्त दिए गए हैं। ये राजा उस पर अपने पैर रखता है। अथर्ववेदके अवश्यही हेतुपूर्वक दिए गए हैं 1 तेरहसे लेकर समय ब्राह्मण क्षत्रिय, वैश्य और शुद्र चार वर्ण अठारहवे कांडमें हर एकमे एकएक स्वतंत्र विषय थे। केवल यही नहीं बल्कि ब्राह्मणोंको ऊंचा स्थान का निर्देश है। चौदहवे कांडमें केवल 'विवाह' ! दिया गया है और वे 'भूदेव कहे गए हैं। ऋग्वेद संबंधी वचन हैं। अठारहवेमें तो केवल 'अंत्य- की अभिचार-ऋचाओके विषयोको देखनेसे स्पष्ट विधि' के संबंध ऋचाएँ हैं ! इससे हमारा उप- ! होता है कि वे बहुत प्राचीन थी और सर्वसाधा- रोक्त कथन स्पष्ट हो जायगा । अथर्व वेदके सूक्तों : रणमें प्रचलित थी। परंतु अथर्ववेद संहितामें की भाषा प्रधानतः ऋग्वेद संहिताके जैसीहो है। उन्हें ब्राह्मणी पुट दिया गया है । और और पेशोंके फिरभी अथर्व वेदमें कुछ बातें निस्संदेह ऋग्वेद- लोगोंको जिस तरह उनके अभिचार मंत्र, मोहन- कालके पश्चात् की हैं। इसकी भाषामें जनसाधा- मंत्र श्रादिके उत्पाद कौका पता नहीं रहता पर मंत्र रणकी भाषाके शब्द और प्रयोग ऋग्वेदकी अपेक्षा ' साधारणतः लोगों में प्रचलित रहते हैं उसी तरह अधिक दिखायी देते हैं। इसके अलावा यहभी । अथर्ववेदके समयभी थे किन्तु इसी वेदके संहिता मालूम होता है कि इस वेदमें ऋग्वेदकी तरह ! कालमें वे साधारण जनताको पहुँचके बाहर जा वृत्तोंकी और बारीकी से ध्यान नहीं दिया गया है। चुके थे । वाचक पद् पद पर देखेंगे कि यह संग्रह यह कह चुके हैं कि पंदरवाँ पूरा और सोलहवें ब्राह्मणों द्वारा हुआ है और बहुतसे सूक्त ब्राह्मणों का अधिकांश भाग गद्यात्मक है। इसके अलावा द्वाराही रचे हुए हैं। विशेषणों और उपमाओंके और और कांडोंमेभी बीच बीच में गद्य भाग आया प्रयोगोंमें अथर्ववेदके सूक्तोंका संग्रह करनेवालों है। कई स्थानों पर यह निर्णय करना कठिन हो और लेखकोंमें यही 'ब्राह्मणी दृष्टि साफ दिखायी जाता है कि अमुक भाग पद्य है या गद्य । कहीं कहीं देती है। उदाहरण यों है। क्षेत्र (खेत) कृमि यहभी दिखाई देता है कि असली वृत्त निर्दोष है ( कीड़ों) के विरुद्ध जो मंत्र है उसमें कहा गया है किन्तु वह प्रक्षेप अथवा विक्षेपके कारण भंग कि जिस तरह ब्राह्मण संस्कार द्वारा बिना शुद्ध हो गया है। किर हुए अन्नको छू नहीं सकता उसी प्रकार क्षेत्र कहीं कहीं भाषा और वृत्तोको देखनेसे साफ कमिभी क्षेत्र ( खेत ) के अन्नको न छुए । अथर्ववेद मालूम हो जाता है कि ये भाग बहुत प्राचीन नहीं ! सूक्तोंके एक भागमें लिखा है कि ब्राह्मणों को भोजन हैं। फिरभी यहाँ केवल भाषा और वृत्तके आधार | कराना चाहिये, यज्ञोंमें उन्हें दक्षिणा देनी चाहिये। पर सूक्तोंका समय निर्णय नहीं किया जा सकता। ये ब्राह्मणोंके लाभकी बातें हैं । अतः इसमें संदेह इसी वजह से संहिताका भी समय निर्णय नहीं हो नहीं कि इस भागकी रचना ब्राह्मणों द्वाराही हुई सकता है। ऋग्वेद सूक्त और अथर्ववेद मंत्रों में | है। जिस प्रकार पुराने अभिचार मंत्रोको ब्राह्मणी जो अंतर है वह अथर्ववेदकी भाषाकी विभिन्नता स्वरूप प्राप्त होना पश्चात् कालका निदर्शक है और वृत्तोंकी स्वतंत्रता है। उसी प्रकार अथर्ववेदमें वैदिक देवताओंकी कृति- अथर्व-वेदसंहिताका समय-अब कुछ ऐसे प्रमाण योका वर्णनभी यही स्पष्ट करता है कि यह संहिता प्राप्त हुए हैं जिनके बल पर यह निश्विाद रूपसे 'ऋग्वेद संहिताके बाद तयार हुई । ऋग्वेद के अग्नि सिद्ध होता है कि अथर्ववेद संहिता का काल इन्द्र श्रादि देवता इस वेदमें भी हैं परंतु उनकी ऋग्वेद संहिताके कालके पश्चात् है । पहला प्रमाण विशेषता जैसीकी तैसी बनी हुई है । ऋग्वेदो वे हैं ऋग्वेद और अथर्ववेदका भौगोलिक ज्ञान तथा प्रकृतिके मूल-स्वरूप माने गए हैं और यही उनका उनकी संस्कृति । इन दो बातोंके मिलानसे स्पष्ट महत्व था, पर इस वेद (अथर्व) में वह महत्त्व - ! 1