पृष्ठ:ज्ञानकोश भाग 1.pdf/१७६

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अथर्ववेद ज्ञानकोश (अ) १६३ अथर्ववेद जहाँ अप्सराएँ गई हैं उस जगह अश्वत्थ फूटी पर बहुत सुन्दर ऋचाएँ मिलती हैं। अथर्च (पोपल) न्यग्रोध (बड़) श्रादि बड़े बड़े वृक्ष संहिताके ४थे कांडके १५वे सूक्तमें 'पर्जन्यसूक्त' हैं; मोरभी हैं। उनके चले जानेसे अब तुम्हारा : बहुतही सरस है । उसमेसे दो अचाएँ देते हैं- चित्त शांत हुआ ॥४॥ समुत्पतन्तु प्रदिशो नभस्वतीः मोरकी तरह नाचनेवाले इस अप्सराके पति समभ्राणि वातजूता नियन्तु । गंधर्व का वृषण (अण्ड) दवाकर उसके इन्द्रिय महऋषभस्य नदतो नभस्वतो को छेद दूंगा ॥७॥ वाना प्रापः पृथिवीं तर्पयन्तु ॥१॥ कोई कुत्तेका, कोई बन्दरका या कोई बालक अभि क्रन्द स्तनयादयोदधिं का तो कोई शरीर पर केश बढ़ाकर, कोई सुन्दर भूमिपर्जन्य पयसा समद्धिः । रूप धारण कर ये गंधर्व अप्सराओको नङ्ग कर त्वया सृष्टं बहुलमैतु वर्षमा- रहे हैं। मंत्रकेबलसे उनका नाश करता हूँ॥१२॥ शारैषी कृशगुरेत्वस्तम् ॥ ६॥ हे गंधर्वगण, श्राप पति और अप्सराएँ आप अथर्च. ४.१५. की पत्तियाँ हैं। आप अमर है इसलिये श्राप हम चारों दिशाओंसे हवाके बल्लपर पानी बरसाने मनुष्यों ( मयंजनों ) से दूर रहिये, हम लोगोंमे ! वाले मेघ इकट्टा हो । मस्त सांड़की तरह गर्जना मत मिलिये ॥१२॥ करनेवाले मेघ पृथ्वीपर भरपूर जल घरसावें ॥१॥ आरोग्य मंत्र और ताबीज-अथर्ववेद सूक्तोंका हे पर्जन्य ! खूब गरज, समुद्रको खौला दे, पहला वर्ग यदि रोग निवारण करनेवाले मंत्रोंके | अच्छा पानी बरसा कर पृथ्वीको नहला (भिंगो) प्रयोगोंका है तो दूसरा वर्ग आयु और श्रारोग्य दे। मूसलाधार पानी बरसने दे । सूर्यको ढंककर ( स्वास्थ्य) की कामनाके लिये कहे जानेवाले पानी गिरा ॥६॥ प्रार्थना मंत्रीका है। इन दोनोमें विशेष अन्तर सुख और समृद्धि तथा संकट निवारणके नहीं है । ये प्रार्थना-मंत्र खासकर चौल (मूंडन ) लिये जो पौष्टिक मन्त्र है उनमें काव्य का बहुत उपनयन (जनेऊ) आदि संस्कारोंके समय कहने | थोड़ा स्वाद रहता है। के लिये हैं। इनमें हर एकमें दीर्घायुष्य तथा प्रायश्चित्त मन्त्र-संकट दूर करनेके लिये जो रोगोंसे मुक्ति पानेकी प्रार्थनाएँ मात्र हैं। अथर्व , मंत्र हैं उन्हींमें 'मृगार सूक्त” नामक 'शांतिपाट' वेदके १७वे कांडमें ३० ऋचाओंका जो एकही । हैं। अथर्व ४-२३ से २६ तक सात सात ऋचाओं सूक्क है वह इसी तरहका है। जिस तरह रोग- के सात सूक्त हैं। वे कमसे ( १ ) अग्नि. (२) इन्द्र निवारक मंत्रों द्वारा मांत्रिक वैद्य रोग नाशक औष- (३) वायु और सवितर् (४) अन्तरिक्ष और धियोंका आह्वान (बुलाते ) करते हैं उसी प्रकार धरित्री (पृथ्वी); (५) मरुद्गण (६) भव आयु और आरोग्य (स्वास्थ्य ) के निमित्त कहे और शर्व और (७) मित्र और वरुण है। इन्हीं जानेवाले मंत्र उसी मतलबसे पहने जानेवाले मंत्रों सात देवताओंको संबोधित करके वे कहे गए ( ताबीजों) को सम्बोधित कर कहे जाते हैं। हरएक ऋचाके अंतमें अंहसा ( संकट ) से मुक्ति पौष्टिकमंत्र–उपरोक्त प्रार्थना-मंत्रोंकी तरह बहुत पानेकी टेक है। से पौष्टिक मंत्रभी मिलते हैं। खेतिहर और व्यव 'अंहस्' का अर्थ 'संकट' है; पर दूसरा अर्थ सायो ऐसे मन्त्र कह कर अपने कार्यों में यश-प्राप्ति ! 'पाप' भी है। इस कारण उपरोक्त शांतिपाठ अथर्व- की इच्छा करते हैं। पौष्टिक मन्त्रों में मकान बाँधने, | वेदके प्रायश्चित सूक्तोंमें सम्मिलित किये जा सकते वीज बोने, धान्य पैदा होने, कीडोके मारनेके हैं। पाप निवारण करनेवाले मन्त्र प्रायश्चित्त सम्बन्ध प्रार्थनाण, श्रागसे बचने, पानी बरसाने, मन्त्रोसे विशेष भिन्न नहीं हैं। क्योंकि प्राचीन गाय भैस आदि पालतू पशुओकी वृद्धि करने, मतके अनुसार केवल धर्मबाह्य अथवा नीतिबाह्य चोर और हिंसक पशुओंसे बचनेके मन्त्र; अपने आचरणोंके लिये प्रायश्चित्त विधान नहीं है बल्कि व्यवसायमें लाभ और भ्रमणमें सुख प्राप्त होनेके अधूरे यश, जानबूझ कर अथवा अनजाने अपराध, लिये अभ्यर्थना; द्यूतमें सफलता पाने और साँपका हृदय में उठनेवाले पापी विचार, कर्ज न देना, विष उतारनेके मन्त्र-श्रादि श्रादि विषयोंके मन्त्र शास्त्र विरोधी विवाह आदि पापोंकी शांतिके दिखायी देते हैं। इस विषयकी बहुत थोड़ी निमित्त भी प्रायश्चितका विधान है। इसी तरह ऋचाएँ काव्यके अन्तर्गत आ सकती हैं। हाँ, साधारण अपराध और पातकोंके क्षालन के लिये, कभी कभी किसी साधारण लम्वे सूक्तमें टूटी शारीरिक और मानसिक दुर्वलताके लिये, बुरे 1