पृष्ठ:ज्ञानकोश भाग 1.pdf/१७८

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अथर्ववेद ज्ञानकोश (अ)१६५ अथर्ववेद वशमें करना चाहता था तो वह उसकी मिट्टीकी यदि कोई स्त्री किसी पुरुषको अपने प्रेमके प्रतिमा ( मूर्ति) तयार करता था । धनुषी वशमें करना चाहती थी तो वह भी ऐसे ही प्रयोग अम्बाडी को डोरी लगाता था। काली लकड़ीके करती थी। वह भी अपने सम्मुख इच्छित पुरुषकी बाणमें एक कांटा और उल्लू पक्षीके परको खाँस- प्रतिभा रखकर उसपर बाण चलाती थी मुँहसे कर उक्त प्रतिमाके हृदय स्थान पर आरपार छेद अथर्ववेदके छठे काण्डके १३० और १३१चे सूक्तको करता था। उद्देश यही था कि कामदेव अपनी आ. पढ़ती थी। उस सूक्तकी ऋचाएँ यहाँ देते हैं- क्षित प्रेमिकाके हृदयमें प्रेमीके प्रति अनुगग उत्पन्न उन्मादयत मरुत उदन्तरिक्ष मादय । अग्न करदे इस तरह का प्रयोग करते समय वह प्रेमी उन्मादया त्वमसौ मामनु शोचतु ॥ ४ ॥ प्रयोगकर्ता निम्नलिखित मन्त्र मुंहसे कहता था। अथर्च ६, १३० उत्तुदस्त्वोत् तुदतु मा धृथाः शयने स्वे । नि शीर्षतो नि पत्तत प्राध्योनि तिरामि ते । इधु: कामस्य या भीमा तया विध्यामित्वा हृदि ॥१॥ देवाः प्रहिणुत रमरमसौ मामनु शोचतु ॥ १ ॥ आधीपर्णा कामशल्यामिषु संकल्पकुल्मलाम् । यद् धावसि त्रियोजनं पञ्चयोजनमाश्विनम् । ता सुसन्नतां कृत्वा कामो विध्यतु त्वा हृदि ॥ २॥ ततस्त्वं पुनरायसि पुत्राणां नो असः पिता ॥ ३ ॥ या प्लीहानं शोषयति कामस्येषुः सुसन्नता । अव० ६. १३१. प्राचीनपक्षा व्योषा तया विध्यामि त्वा हृदि ॥३॥ हे मरुत् ! ऐसा करी जिससे यह (पुरुष) शुचा विद्धा व्योषया शुष्कास्याभि सर्प मा। पागल हो जाय। हे अन्तरिक्ष! इसे उन्मत्त मृदुर्निमन्युः केवली प्रियवादिन्यनुव्रता ॥४॥ बनाओ। हे अग्नि तुम इसे इतना उत्तेजित करो आजामि त्वाजन्या परि मोतुरथो पितुः। कि इसे मेरी याद आते ही यह शोकाकुल यथा मम क्रतावसो मम चित्तमुपायसि ॥ ५॥ हो जाय ॥४॥ व्यस्य मित्रावरुणौ हृदश्चित्तान्यस्यतम् । सिरसे लेकर पैर तक मैं तेरे शरीरमें काम- अथैनामक्रतु' कृत्वा ममैव कृणुतं वशे ॥ ६॥ पीड़ा उत्पन्न करती हूं। हे देवताओं! इसको अथर्व० ३.२५ इतना काम-विह्वल कीजिये कि ये मेरा स्मरण कर उत्तुद (कामदेव) तुझे व्यथित करे । तू शोकयुक्त हो जाय ॥१॥ शय्या पर सुखसे न सो सकेगी। कामदेवका बाण तू तीन या पाँच थोजन घोड़ेकी तरह दौड़ तीक्ष्ण है; उसीसे मैं तेरा हृदय विद्ध (छेदन) कर भाग गया है, तू वापस आवेगो और हम करता हूँ ॥१॥ दोनोंको जो पुत्र होगा उसका तू पिता होगा ॥३॥ जिसको मानसिक पीड़ाके पङ्ख लगे हुए हैं, सपनी मन्त्र-बहुत हानिकारक, उग्न तथा द्वेष काम ही जिसका कांटा है, संकल्प (निश्चय ) से पूर्ण वे मन्त्र हैं जिनके द्वारा कोई स्त्री अपने ही जिसकी नोक है, ऐसा बाण तयार कर, । मार्ग (रास्ते ) से सौतको या दूसरी ऐसी ही (हे कामिनो) कामदेव तेरे हृदयको विदारित | औरतोको निकाल देनेमे प्रयोग करती हैं। ऐसे (छिन्न ) करे ॥२॥ मन्त्रोंका एक उदाहरण निम्नलिखित है- जो सुसजित बाण प्लीहाको शोषण कर लेता भगमस्या वर्च श्रादिष्यधि वृक्षादिव नजम् । है और जिसके पंख जलाते हुए निकल जाते हैं महावुध्न इव पक्तो ज्योक पितृवास्ताम् ॥१॥ ऐसे बाणसे मैं तेरा हृदय बिद्ध ( बेधना ) एषा ते राजन् कन्या बिधूनि धूयतां यम । करता हूँ॥३॥ सा मौतुर्वध्यतां गृहेथो भ्रातुरथो पितुः॥२॥ दाहक और दुःखदायक ( बाणसे ) बि ! एषा ते कुलपा राजन तामु ते परि दद्मसि । होकर तू व्याकुल हो और मेरे पास था। तू ज्योक् पितृष्वासाता मा शीर्णः समोप्यात् ॥ ३॥ मीठी बोली बोलनेवाली, मेरा कहा माननेवाली, असितस्य ते ब्रह्मणा कश्यपस्य गयस्य च । मेरे अनुकूल, क्रोधसे रहित हो जा॥४॥ अन्तः कोशमिव जामयोपि नह्यामि ते भगम् ॥४॥ तुझे, तेरे मोतो पिताके सामनेसे, कोड़े लगा- अधर्व०१.१४. कर मैं यह पानेको वाध्य करता हूँ। ऐसा करने फूले हुए पेड़के फूल जिस तरह तोड़ लिये से तू मेरे कथनानुसार चलेगी और मैं जो चाहूँगा ! जाते हैं इसी तरह मैं उसके भाग्य और तेजको सो मुझे करने देगी ॥५॥ (हरण कर) स्वयं धारण करती हूँ। जो पर्वत हे मित्रावरुण ! इसका हृदय चञ्चल करो; । पृथ्वीमें दूर तक घुसा हुआ है उसकी तरह वह इसको किंकर्तव्य विमूढ़ बनाकर मेरे सुपुर्दकरो॥६॥ बहुत समय तक अपने मायकेमें रहे ॥ १॥ । -