पृष्ठ:ज्ञानकोश भाग 1.pdf/१७९

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अथर्ववेद ज्ञानकोश (अ) १६६ अथर्ववेद हे यमराज! यह तेरी स्त्री हो और तुझे ! बनस्पतियाँ ताबीज (यंत्र ), बभूत इत्यादिका वश हो ( अर्थात् मर जाय)। यह अपने उपयोग किया गया है। ऐसे उग्र मन्त्र और इनका मायके में ही सड़ती रहे ॥२॥ प्रतिकार (सामना) करनेवाले शोमक मन्त्र उनकी हे राजा ! यह तेरे कुलका पालन करनेवाली ! भिन्न भिन्न भाषाओं द्वारा पहचाने जाते हैं। अथर्व स्त्री है, मैं इसे तुझे दे देती हूँ। यह बालोके वेदके ५ वे कांडके सूक्त में अभिशाप मन्त्रीका प्रति- पक जाने तक (बूढ़ी होने तक) चिरकाल अपने कार करनेवाली कुछ ऋचाएं आगे देते हैं- मायके में ही रहे ॥३॥ सुपर्णस्त्वान्वविन्दत् सूकरस्त्वाखनन्नसा । असित, कश्यप, और गय मन्त्रों द्वारा जिस दीप्सोषधे त्वं दिप्सन्तमव कृत्याकृतं जहि ॥ १॥ तरह बहनें अपना अंतःशोक सहन करती हैं उसी अब जहि यातुधानानव कृत्याकृतं जहि । अथो तरह मैं भी तेरे भाग्यको बाँध देती हूँ (तुझे भाग्य- ! यो अस्मान् दिप्सति तमु त्वं जह्योषधे ॥२॥ हीन करती हूँ)॥४॥ रिश्यस्येव परिशासं परिकृत्य परित्वचः ॥ अभिचार मन्त्र-किसी स्त्रीको वाँझ बना देने कृत्यां कृत्याकृते देवा निष्कमिव प्रति मुञ्चत ॥३॥ वाले या किसी पुरुषका पुरुषत्व हरण करनेवाले पुनः कृत्यां कृत्याकृते हस्तगृह्य परा णय । मन्त्र अत्यन्त नीचताके द्योतक हैं। इनकी भाषा समक्षमस्मा अाधेहि यथा कृत्याकृतं हनत् ॥ ४॥ भी संदिग्ध नहीं है, उनसे दुष्टता स्पष्ट झलकती कृत्याः सन्तु कृत्याकृते शपथः शपथीयते । है। इस प्रकार के काम-मन्त्र 'आंगिरस' अर्थात् सुखो रथ इव वर्ततां कृत्या कृत्याकृतं पुनः ॥ ५ ॥ अभिचार मन्त्र-वर्गमें रखे जा सकते हैं। यदि स्त्री यदि या पुमान् कृन्यांचकार पाप्मने । पहले कह चुके हैं कि असुर, अभिचारी और तामु तस्मै नयामस्यश्वमिवाश्वाभिधान्या ॥ ६ ॥ और अमित्र (शत्रु ) पर प्रयुक्त किये जानेवाले पुत्र इव पितरं गच्छ स्वज इवाभिष्ठितो दश । अभिशाप और अपसारसा मन्त्र आंगिरस' श्रेणीमें बन्धमिवावकामी गच्छ कृत्ये कृत्याकृतं पुनः ॥१०॥ हैं। कुछ रोग निवारक मन्त्र भी इसो श्रेणोमें आ अथर्व० ५.१४. सकते हैं। सोलहवें कांडका उत्तराद्ध भी इसोमें गरुड़ने तेरा पता लगाया है, शूकर (सूअर) सम्मिलित किया जा सकता है। क्योंकि उसमें ने अपनी सोंगसे खोदकर तुझे बाहर निकाला है, दुःस्वप्नों पर मारक अभिचार मन्त्र हैं। जिनमें है औषधि ! तू दुष्टोको कष्ट दे और जादू-टोना कहा गया है कि इस दुःस्वप्नों को उत्पन्न करनेवाले करनेवाले को मार डाल ॥१॥ भूत शत्रुको छाती पर चढ़ बैठे हैं। ऊपर उल्लि- यातुधानो ( राक्षसों) को मार डाल, टोना खित अपसारण मन्त्रोंमै राक्षस, भूत अथवा दुष्ट करनेवालेको साफ कर डाल, हे औषधि ! हमें जो अभिचारी स्त्रीपुरुषोंमें विशेष भेद नहीं माना गया कष्ट पहुँचाता है उसका नाश कर ॥२॥ है। अग्नि असुरोका नाश करनेवाला समझा सफेद हिरनकी त्वचासे निकाले हुए टुकड़ेकी गया है। इसीलिये ऐसे लोगोंके विरुद्ध उसकी तरह हे देवताको ! जादू करनेवालोके शरीर पर सहायता मांगी गयी है। इन स्थानोंमैं बहुतसे उन्हींके जादूका प्रभाव पड़ने दो ॥ ३ ॥ अज्ञात असुरोके नाम दिखायी देते हैं। उस समय पुनः उनका टोना पकड़ कर उन्हींकी ओर की साधारण जनतामें जो कल्पनाएँ रूढ़ि थी वापस कर दो और इस प्रकार उनके सामने रखो उनकी जितनी अधिकता इन सूत्रोंमें दिखाई देती कि वे उसे देखकर मर जायें ॥ ४ ॥ है उतनी और कहीं नहीं। सब लोगोंमें एक बहुत टोनेवालेका प्रयोग उसीपर हो, उसका श्राप ही प्रचलित कल्पना यह भी थी कि रोग तथा उसीके नाशका कारण हो और उसका टोना पहिये विपत्तियोंके उत्पादक केवल भूत-पिशाच आदि ही की तरह घूमकर उसीके ऊपर नहीं हैं किन्तु दुष्ट अभिचारी लोग भी वैसा कर ! पड़े ॥ ५ ॥ सकते हैं। ये दुराचारी लोग जिन श्रभिचार जिस किसीने, चाहे वह स्त्री हो या पुरुष, मन्त्रोंके बलसे दुष्ट कर्म करते थे उनमेंसे बहुतसे दुष्ट बुद्धिसे प्रेरित होकर जादू किया हो, उसपर, सुक्तोंमें किसी न किसी व्यक्तिकी कल्पनाकी गयी लगामके द्वारा घोड़ा जिस तरह पीछे हटाया है और उसके विरुद्ध शमन (शांत) करनेवाली जाता है उसी तरह वह जादू पीछे लौटाया जायगा॥६॥ बेटा जिस तरह वापके पास जाता है वैसे ही तू भी जा। धोखेसे दबा हुआ साँप जैसे काटता - कर गिर अथर्व ७. ३५. +- .