। अथर्ववेद ज्ञानकोश (अ) १६६ अथर्ववेद उपयोग करें और स्वयं अपने विषयमें उदासीन गद्यमंत्र भी मिलते हैं। उदाहरण के लिये इसके रह जायँ । 'राजकर्म संबंधी मंत्र प्रयोगोंमें कुछ १६वे काण्डके पूर्वाद्धमें उदक-स्तुति तथा भिन्नभिन्न मंत्र राजाके लिये प्रयुक्त न किये जाकर उसके पुरो-शांति विधियोंके सूक्त इसी तरहके हैं। १८वाँ कांडभी हितके लिये प्रयुक्त होते नज़र आते हैं। यद्यपि गद्यमय है। इसमें श्रौद्धदैहिक और श्राद्धोके विषयमें ब्राह्मणी साहित्यमें अभिचार मंत्रोके विरुद्ध कड़ी मन्त्र हैं। ऋग्वेदके १० वे मण्डलमें वर्णित उत्तर- समालोचनाएँ की गयी हैं फिरभी मनुस्मृतिमें क्रियासम्बन्धी सूक्त शब्दशः यहाँ मिलते हैं। यदि (११, ३३ ) स्पष्ट लिखा है कि विशेष मौके पर कुछ अन्तर है तो यही कि इनमें कुछ और बढ़ा ब्राह्मण अथर्ववेदका उपयोग बिना किसी हिच- दिया गया है। यह बतलाया जा चुका किचाहटके करें। ब्राह्मणों की शक्ति-वाचा" जिह्वामें अथर्ववेद का २० वाँ बहुत बादमें उक्त वेद के साथ है। इसका प्रयोग शत्रुको नाश करनेमें वह जोड़ा गया है और उसमें अधिकतर सूक्त ऋग्वेद कर सकता है- से लिये गए हैं। इस कांड में सोमयज्ञका उल्लेख श्रुतिरथांगिरसीः कुर्यादित्यविचारयन् । । नवीन भाग केवल 'कुन्ताप सूक्तों' का है। वाक्शास्त्र वैब्राह्मणस्य तेन हन्यादरीन् विजः॥ ( अथर्व २०, १२७-१३६ ) यज्ञकर्मों में ये सूक्त इसलिये अथर्ववेद में भी ब्राह्मणोंके हितकी उपासना मन्त्र माने गए हैं और इनका विषय रक्षा करनेके लिये अभिचार और मन्त्रोंका बड़ा ऋग्वेदकी दान-स्तुतिसे मिलता है। इन सूक्त भारी संग्रह दिखायी देता है। ऐसे सूक्तोंमें बड़ी कुछ अंशोमें राजाओंकी दान-वीरताकी प्रशंसा है। ज़ोरदार भाषामें हृदय पर यह अंकित करने की इनमें कुछ भाग वुझौवल और उनके उत्तरका है कोशिशकी गयो है कि ब्राह्मणकी जाति और और कुछ भाग अश्लील है। उसकी धन-दौलतको कोई भी नुकसान न पहुँ. ब्रात्यस्तोम-१५ वाँ कांड गद्यात्मक है । चाये। जो ब्रह्मख और ब्रह्मजीविका पर हाथ इसकी रचना भिन्न भिन्न विधियों के प्रयोग करनेके उठाता है उसके लिये भयंकर शाप दिये गए हैं। ! सम्बन्धमें है। इसमें व्रात्य लोगो (चातुर्वण्यमें इसके अलावा यशमै ब्राह्मणोंको दी जानेवाली घुसे हुए अन्य लोग) की रहस्यपूर्ण प्रशंसा है। दक्षिणाका बहुत गूढ़ अर्थ किया गया है और गूढ़ त्रिवर्ण (ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य) में किसीको लेते भाषा ही में उसपर बार बार जोर दिया गया है। समय जो संस्कार होता है उसमें प्रयुक्त होनेवाले ब्राह्मणको कष्ट देनेके बराबर दूसरा कोई पाप ये दुर्बोध और रहस्यपूर्ण सूक्त हैं। प्रात्यस्तोम नहीं है और मुक्त हाथोंसे उनको दक्षिणा देनेके | प्रथमतः एक साधारण विधि था। आगे चलकर बराबर कोई पुण्य भी नहीं है-इन दो कल्पनाओं इसका समावेश यज्ञ संस्था में किया गया है। को अनेक सूको में बराबर भिन्न भिन्न रीतिसे स्पष्ट इसका विस्तृत वर्णन आगे मिलेगा। किया है। इनमें कुछ सूक्त अच्छे हैं जो अन्तर्ज्ञान अध्यात्म----इस कांडके विषय गहन और तत्व- प्रज्ञा, भक्ति और पारमार्थिक ज्ञान प्राप्त करनेकी शानसे सम्बन्ध रखनेवाले हैं। इस कांडको प्रार्थनाएँ मात्र हैं। इतना अवश्य है कि निर्विवाद अथर्ववेद सुक्तोंके अंतिम वर्ग में रख सकते हैं । इस कोशिको ब्राह्मणी-सूक्त अथर्ववेद-संहिताका सबसे अन्तिम वर्गमे तत्वज्ञान और जगदुत्पत्तिसे सम्बन्ध बादका भाग है। रखनेवाले सूक्त हैं अतः अथर्ववेदका यह सबसे यज्ञ-कर्मसे सम्बन्ध रखनेवाले सूक्त और मन्त्र बादका भाग है। मन्त्रविद्या और तत्वविद्या अथर्ववेद-संहिताके अर्वाचीन भागोंमें से ही हैं। परस्पर एकदम भिन्न हैं। परन्तु विचारणीय इन सूक्तो और मन्त्रोंका समावेश इस वेदो बात यह है कि अथर्ववेद संहितामें केवल अभिः इसलिये किया गया कि अन्य तीन वेदोकी तरह चार, भैषज्य और पुष्टि के विषयमें ही मन्त्र नहीं इस वेदका भी सम्बन्ध यज्ञोसे बना रहे और हैं बल्कि तत्वज्ञानसे सम्बन्ध रखनेवाले सूक्त भी लोगोंकी धारणा हो जाय कि यह भी. एक हैं। इन तत्वविद्या सम्बन्धी सूक्तोंको जरा ध्यान 'वेद' ही है। इस वेदके दो 'श्रापी' सूक्त और से देखने पर पता लगेगा कि अभिचार मन्त्रोंकी कुछ दूसरे सूक्त ऋग्वेदमें लिखित यज्ञसम्बन्धी नाई ये भी व्यवहारोपयोगी हैं। इनमें सत्य की सूक्तोंको तरह हैं। जब तक यह न बतलाया जिज्ञासा अथवा अन्वेषण अथवा संसारकी गहन जाय कि यज्ञसंस्था' के इतिहासमें अथर्ववेदका गुत्थियोंको सुलझानेकी उत्सुकता दिखाई नहीं स्थान क्या है, तब तक इस विषय पर अधिक देती। इनमें तत्वज्ञान-प्रदशक जो अंश है यह लिखना उचित न होगा। इस वेद, यजुर्वेदकी तरह उक्त तत्वज्ञानके सम्बन्ध प्रचलित और प्रसिद्ध २२
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