पृष्ठ:ज्ञानकोश भाग 1.pdf/१८८

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जाना चाहिये। अथर्ववेद ज्ञानकोष (अ) १७५ अथर्ववेद है। अन्तमें कौशकीयोका मत दिया हुआ है, पर एकत्रित कर के दिये हुए हैं। इसके सूत्र ग्रंथ और कौशकीय प्रथानुसार वह सदा ग्राह्य माना में भी गृह्यसूत्र के पूर्व ही श्रोत सूत्र अाया है। बिना श्रौतसूत्रका पूर्ण रूपसे झान हुए गृह्यसूत्र उपरोक्त पाँच श्रुतसूत्रो ( ५ कल्प ) में से ठीक ठीक समझमें श्रानेमें बड़ी कठिनाई होती है पांगिरस अथवा अभिचार कल्प अथर्ववेद का ही क्योंकि गृह्यसूत्र श्रौतसूत्र के आधार पर ही लिखे परिशिष्ट है। उनमें अभिचार अथवा जादू टोना गये हैं और ऐसा विदित होता है कि लेखकने ही अधिक दिया हुआ है। कौशिक सूत्रके छठवें यह पहले ही समझ लिया कि गृह्यसूत्र पढ़नेवाले अध्यायके स्पष्टिकरणके लिये अभिचार कल्प श्रौतसूत्रका ज्ञान पूर्णरूपसे प्राप्त करके ही इसे का थोड़ा बहुत उपयोग किया जा सकता है । पढ़ेगे। नक्षत्र कल्प अथवा शान्ति कल्प अथर्ववेद के जिस भाँति गृहसूत्र श्रौतसूत्र पर निर्भर है परिशिष्ट ही हैं। यह उनके नामसे ही पता लग 'उसी भाँति कौशिकसूत्र बतानसूत्र पर निर्भर नहीं जाता है। (ब्रह्मवेद परिशिष्ट नक्षत्र कल्याभि- : हैं। हाँ. किसी अंश तक कौशिकसूत्र पर वैतान धानम् )। किसी एक स्थान पर दक्षत्रकल्पको सूत्र अवश्य निर्भर कह सकते हैं। जहाँ पर इन पहला परिशिष्ट कहा है। इतना ही नहीं जहाँ दोनो सूत्रोंमें भेद हैं तथा जहाँ पर गृह्य तथा श्रोत पर परिशिष्ट का जिक्र आया है वहाँ इसका नाम . सूत्रमें भेद देख पड़ता है वहाँ पर उपरोक्त कथन प्रथम दिया हुआ है। स्पष्ट हो जाता है। इसी कारण वैतान सूत्रके कौशिक तथा वैतान सूत्राका पारस्परिक सम्बन्ध-इन विषयमें यह कहा जा सकता है कि बैतानसूत्र सूचोंमे संदकारोंका उल्लेख है। अन्य वेद-शाखाओं केवल शनैः शनैः गम्भीर गतिसे प्रौढ़ताको प्राप्त के जिन सूत्रोंमें संस्कार दिये हुए हैं, उन स्त्री करने वाली श्रौतसंस्कारकी विधियों द्वारा ही तथा उपरोक्त कौशिक-वैतान सूत्रोमें अथर्वसंहिता नहीं बन गया है । बल्कि उनका निर्माण स्वतंत्र रूप के समान अनेक बातोंमें भिन्नता है। विद्य' से किया गया है। जिस समय अथर्व वेदानुया- अथवा अयी विधा अन्य तीन वेदोंको कहा है। मित्रोंको अन्य वैदिक-पुरोहितों के साथ वादा- इस कथन के आधार पर तो अथर्ववेद के सूत्र वेद विवाद करना पड़ता था उस समय उन्हें अपने संज्ञाक पान होने में भी सन्देह किया जा सकता. संस्कार तथा विधिको वेदान्तर्गत करनेके लिये है। श्रौत संस्कार में तो यहाँ तक व्यक्त हो चुका। इसकी आवश्यकता प्रतीत हुई होगी। तभी है कि अथर्व वेदान्तर्गत सूक्तोंका उपयोग करने इसका सूत्रपात हुआ होगा। अथर्ववेदमें दिये के लिये अथर्ववेदान्तर्गत सूत्र उपयुक्त नहीं है। हुए संस्कारोंको वैतान सूत्रके आधार पर भी ब्राह्मणों मै गोपथ, ब्राह्मण तथा श्रोत सूत्रोंमें वैतान बिल्कुल नहीं कह सकते, क्योंकि उसमें अन्य ग्रंथों सूत्र बहुत बाद के रचे हुए ग्रन्थ हैं। अथर्ववेदमें से अनेक अवतरण उतार लिये गये हैं। कौशिक गोपथ ब्राह्मण है। अन्य वेदोंके चरणों में साहित्य सूत्रमैं न मिलनेवाला भाग भी बहुत कम है । यजुः लिखनेकी जो पद्धतियाँ थी, उन्हींका अनुकरण संहितामै दी हुई अनेक ऋचाएँ तथा पाठ वैतान गोपथ तथा वैतानमें देख पड़ता है। मन्त्र, तन्त्र, सूत्र में मिलते हैं। संस्कारोंका वर्णन करते समय भूत प्रेत झाड़ना इत्यादि, इल क्रियाओंके करने कात्यायनके श्रौतसूत्रका अनुकरण किया जाना भी वाले मनुष्योंकी जीवन चर्या, तथा ऐसे हो अनेक इसमें स्पट देख पड़ता है। वैतान सूत्र १.१८ विषय जो अन्य वेदोंमें प्राप्य नहीं थे, उन सबका ( देवताहविर्दक्षिणायजुर्वेदात् ) से यह आप ही उल्लेख अथर्व वेदानुयायिनोंने संसार के सम्मुख स्पष्ट हो जाता है। इसी आधार पर यह भी कर दिया था। इसी कारण ही से अथर्व ग्रंथमें अनुमान किया जाता है कि वैतान तथा कात्यायन अथर्ववेद के सबसे महत्वपूर्ण तथा उच्चतम कौशिक का भी परस्पर सम्बन्ध होगा, क्योंकि जो भाष्य खूनको पहला स्थान दिया गया है। कात्यायन पर लिख गया है उसमें वैतानसूत्र अथ- गृह्यसूत्र श्रौत सूत्रों पर निर्भर है। गृह्यसूत्रमें वण अथवा अथर्वस्त्र के नामसे वैतान सूत्रसे श्रौत सूत्रका उल्लेख अनेक स्थानों में स्पष्ट रूपसे अनेक अवतरण लिये गये हैं। श्राया है। किन्तु जिन विधियोंका एक बार भी कौशिक सूत्रके परस्पर सम्बन्ध में कौशिक सूत्रको श्रौत सूत्र में वर्णन आ चुका है उनका वर्णन गृह्य- एक स्वतन्त्र संहिता मानकर ही कुछ कहा जा सूत्रमै पुनः नहीं देख पड़ता। सकता है। यह पहले ही से मान लिया गया है आपस्तम्बमें धर्म विषयक सूत्र एक ही स्थान कि कौशिक सूत्रके संस्कार तथा अथर्ववेदके मन्त्रों वैतान तथा