। अकबर ज्ञानकोश (अ). अकबर उसकी भाषा सीधी-सादी थी। अपने लेखों जिनमें हरएकमें श्रकवरका नाम पाया जाता है। में वह सबके प्रति प्रेम और आदर व्यक्त करता इन लोगोके अलावा एक और विद्वान उल्लेख था। 'अकबर-नामा' ग्रंथ उसीका लिखा हुआ योग्य है। इनका नाम था बदायूनी । यह संगीत, है। इसके तीन भाग हैं। अन्तिम भागको ! ज्योतिष और इतिहासका प्रेमी था। संस्कृतका 'श्राइने अकबरी' कहते है। इसमें अकबरकी अध्ययन कर इसने महाभारत और रामायणका शासन व्यवस्थाका वर्णन है। तत्कालीन परि-फारसीमें अनुवाद किया। इसने 'मुन्तखाबुत्त- स्थितिका अध्ययन करनेमें इस ग्रंथसे अच्छी वारीख' नामका एक ग्रंथ लिखा है जिसमें अकबर सहायता मिलती है। श्राइने अकवरीका अंग्रेजी के शासनकालका पूरा इतिहास है। चूंकि यह अनुवाद भी प्रकाशित हो गया है। । कट्टर मुसलमान था, इसलिये अकबरका प्रीति- राजा मानसिंह अकवरका एक सेनापति था। भाजन न हो सका। बादशाहने उसे मिर्जा' की उपाधि दी थी । इसतरह दिखायी देगा कि अकबर के दरबारमें 'मिर्जा' का अर्थ होता है राजकुमार'। इसी बहुतसे विद्वान एकत्रित थे। केवल नौ रत्नही मानसिंहके कारण अकबरने बहुतसे रणक्षेत्रों में नहीं, हजारों रत्न दरबारकी शोभा बढ़ाते थे । विजय प्राप्त की थी। गुजरातकी चढ़ाईमें। धींगाधींगीके समयमै गुणी और पराक्रमी लोग अकबरको मानसिंहने घोर संकटसे बचाया था। सामने ला सकते थे। कवर के समयमें बाहरसे चित्तौरगढ़को दखल करने में भी मानसिंहका | बहुतसे मुसलमान भारतवर्षमें आये। दरबारमें बहुत बड़ा हाथ था। एक दिन भी ऐसा व्यतीत नहीं होता था जिसमें राजा टोडरमलके सुपुर्द जमावन्दीका काम | किसी गुणीका श्रादर न हुश्रा हो। केवल भारत- था। परन्तु कई जगहोके बलवाइयोंको दबानेका वर्षही के नहीं, समस्त संसारके गुणी लोग उस भारः उन्हीं पर श्रा पड़ा । अकबरने कानून ! समय दरबारमै आकर अपने गुणोंके कारण बनाकर सब हिसाब-किताब फारसीमें रखवाए। उचित श्रादर पाते थे। इन लोगोंकी अच्छी फारसी दरवारी भाषा हुई और हिन्दुओंको खातिर होती थी और इनके उत्तम विचारोंकी मजबूरन उसका अध्ययन करना पड़ा। जो हिंदु कद्र की जाती थी। इसका नतीजा यह हुश्रा कि फारसीका अच्छा विद्वान होता था उसे फौरन मुगलसाम्राज्यकी कीर्ति और यश चारों ओर राजकी नौकरी मिल जाती थी। राजा टोडरमल ; फैलने लगा। ने जमाबंदीमें बहुनसे सुधार किये। जमाबंदी अकबरने लीलावती, जातक, हरिवंश श्रादि और सैनिक व्यवस्थामै उस समय उसकी जोड़का ' ग्रंथोंके फारसीमें अनुवाद कराये। अकबरके दूसरा श्रादमी नहीं था। समयके अनेक इतिहास फारसीमें मिलते हैं। अकबर के दरवारका दूसरा प्रसिद्ध मनुष्य अपनी बादशाहतको कायम रखनेके इरादेसे बीरबल था । यह गरीब ब्राह्मण था, परंतु इसकी अकबरने जो कार्य किये उनमें नवीन धमकी हाजिर जवाबीसे खुश होकर अकबरने इसे अपने स्थापना एक खास बात थी। धार्मिक विषयों में पोस रख लिया। राजपूत राजाओंके दरबारोंमें वह अकबर उदार और जय ढीला था। मुसलमानों गजप्रतिनिधिका काम करता था। वह राजपूतोको का कट्टरपन उसमें न था। 'नवरोज'का त्योहार मुगलोंके साथ सुलह करने में सहायता देता था और मुसलमानी त्योहार न होते हुए भी अकबर उसमें शाही खानदानके साथ व्याह-शादी तय करनेकी शामिल होता था। दरबारमै भिन्न-भिन्न पोशाक जिम्मेदारी भी उसी पर थी। इसकी बोलचाल । परिधान कर वह सप्त-ग्रहों की पूजा करता था। बहुनही सीधी पर नर्थयुक्त हुआ करती थी। हिन्दू उसी प्रकार अपनी राजपूत-रानियोंके साथ बैठ- धर्मकी बहुतसी उत्तम-उत्तम तत्वज्ञानकी बातोका । कर वह यज्ञ होम आदि भी किया करता था। उसने बादशाहके हृदयमें थीज बो दिया था, इसी आरंभमै अवश्यमेव उसका बर्ताव एक कट्टर लिये बहुतसे मुसलमान सरदार उससे अकारण मुसलमानके जैसा था। द्वेष रखते थे। अकबर द्वारा इस्लाम धर्मकी अवलेहना होते भारतप्रसिद्ध गायक तानसेन भी अकबरके | देख उलेमा दुखी होते थे। दरबारमै उनकी दरयारका एक रत्न था। पहले पहल उसका गाना प्रतिष्ठा थी। महत्वपूर्ण प्रश्नोंका निर्णय बगैर इन सुनतेही बादशाहने उसे दो लाख रुपया इनाम | लोगोको सम्मतिके नहीं होता था.। बैरामखाँको दिया। इसकी बनाई हुई बहुतसी कविताएँ हैं | हटाकर शासन व्यवस्था अकबरने अपने हाथों में ली M
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