पृष्ठ:ज्ञानकोश भाग 1.pdf/१९०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

अथर्ववेद ज्ञानकोश (अ)१७७ अथर्ववेद वै० ३. २०, कौ० ६.२३, वै०७.२०: कौ० ६.२० वर्णन व देकर उन संस्कारोंके शुरू तथा आखीरी वै० १२, ७, कौ० ५७.५, वै० ३४. १२; कौ० कौका उल्लेख दिया हुआ है। उदाहरणार्थः-बै. १६.७, वै० ४३.७, कौ० ४.१ । सू. १. १६ तथा कौ. सू. ३.४। वै. सू.११.१४ दोनों सूत्रोंमें उपरोक्त साम्य दिखाई देता है। और कौ. सू. २४.२६-३१ । वै.सू. २४.३ और इससे यह कल्पना करना कि कौशिक सूत्र में से वे कौ. सू.७.१४. १४०. १७। वै. सू.२४.७ तथा साम्य भाग उतार कर वैतान सूत्र में लिख दिये गये कौ. सू.६.११-१३ । हैं उचित नहीं होगा। यह कहना बड़ा कठिन है यद्यपि उक्तप्रमाण किसी अंश तक ठीक है तो कि कितना भाग कौशिक सूत्रसे लेकर वैतान सूत्रमें भी पूर्ण निश्चित रूपसे सव स्थानोंके लिये यह कह रक्खा गया है । वैतान सूत्र तथा गोपथ बाह्मणके देना कि वैतान सूत्रमै सव स्थानोंपर कौशिक सूत्र कुछ भाग एकदम मिलते जुलते हैं; परन्तु इतने ही ! से ही उद्धरण किया गया है ठीक नहीं मालूम से यह अनुमान नहीं किया जा सकता कि गोपथ | होता। याकोवी साहब भी इसको पूर्णरूपसे ब्राह्मण वैतान सूत्रके पहले रचा गया है । अथवा नहीं मानते । यह भी सम्भवनीय है कि अथर्व नहीं। उदा० वै.सूत्र. २. १५, गो. ब्रा. १.५.२१ । वै.सू. वेदानुयायियोंमें जो धर्मविधि या संस्कार प्रचार ३.१०, गो. ब्रा. २.१,२। में थे वे कौशिक सूत्र तथा वैतान सूत्र ग्रन्थों में तथापि वैतान तथा कौशिक सूत्रमें दिए हुए स्वतन्त्ररूपसे दिए हों; लेखन पद्धतिमें ही भेद एक ही विषयके संबधके विवेचन को देखा जाय के कारण तथा लेखन शैलीमें भेद होनेसे कौशिक तो यह दिखाई देता है कि, कौशिक सूत्रमें जिस सूत्रमें सस्कारोंका पूर्ण वर्णन पाया है तथा वैतान किसी विषयका विवेचन है वह बिल्कुल पूर्ण है ! में केवल उनकी रूपरेखा ही दी हुई हो, इससे परन्तु वैतानमें उसी बातका या उनकी मालिकाके अधिक कुछ नहीं कहा जासकता। वैतानमें विषय में किया हुआ विवेचन संक्षिप्त है। किसो | संस्कारोंके सम्बन्धमे जो अधूरी जानकारी दी गई किसी विषय का विवरण संक्षिप्त तथा तांत्रिक है वह यदि पूरी करनी हो तो कौशिक सूत्रोंकी रूपसे दिया हुआ है । यह बात इतनी स्पष्टतासे सहायतासे वह कार्य होने लायक है, यह वैतान दिखाई देती है कि छोटेसे वैतान सूत्रमै दिए हुए सूत्रमें कहीं भी नहीं कहा है । यद्यपि ऐसा ही हो विषयों का ऐसा होने का कारण कुछ ध्यानमें नहीं तो भी यह समर्थन एकदम निरर्थक है; इस कारण आता । वैतानमें बीच बीचमें ऋषियों के नाम दिए हम लोग वैतान सूत्र ५, १० का समर्थन मान्य हैं। उदाहरणार्थः-कौशिक, युवन कौशिक, भागली, करें। गार्वे साहबने ५. १० का अनुवाद करनेमें माठर, शौनक । परंतु कौशिक सूत्र में भी इनके अपनी असमर्थता स्वीकार किया है। इसका कारण नाम दिए हैं और इसकी एक विस्तृत सूची दी यह जान पड़ता है कि, "त्रित्यादित्रिराथर्वणीमिः' है; कौशिक सूत्रमें ऋषियोंके और दिखने वाले शब्दको गासाहेब गलतीसे सूत्र दर्शक समझ नाम आगे दिए हैं:-गार्ग्य, पार्थश्रवस् कांकायन, गए हैं। परिभाषा सूत्र कौशिक : १६ के आधार परिवभ्रव, जाति कायन, कौरूपथि, इषुफालि तथा से वै. सू. ५. १० का उत्तम प्रकार से स्पष्टिकरण हो जाता है। वैतान सूत्र ५. १० में शान्त्युदक कौशिक सूत्रके ७ वे तथा वे अध्यायमें बनानेके उपयोगमें लाई जानेवाली पवित्र वस्तुओं परिभाषिक सूत्र हैं; पहले ६ अध्यायोंमें दर्शपूर्ण की ( विशेषतः ये चीजे वनस्पति ही हैं ) सूची भासविधिका वर्णन है, परन्तु यह सिद्ध किया जा दी है। वैतान सूत्रमें इन्हें प्राथर्वण पुकारा है और सकता है कि ये अध्याय पीछेसे लिखे गए हैं। इसके बाद जो दूसरी सूची दी है उसे प्राङ्गिरस परिभाषा सूत्र वैतानमें लागू नहीं होते। पुकारा है । कौशिक सूत्रमै यह दूसरी सूची नहीं तथापि वैतान सूत्रके १०. २. ३ में कौशिक सूत्रके दी है। कौशिक सूत्रमें पहली सूची पूर्णे दी है, --१२ तथा ८-१३ उपयोग किया है। इस कारण वैतान सूत्र में यह सूची त्रोटकरूपसे दी वैतान सूत्र कौशिक सूत्रपर निर्भर है यह है; और कौशिकमें दूसरी सूची नहीं दी है इस दर्शानेके लिए ऊपर प्रमाण दिया गया । उससे कारण वैतानमै दूसरी सूची सम्पूर्ण दी हुई दिखाई भी अधिक समर्थनीय आधार दिखाया जा सकता| देती है। और केवल इसीएक बातसे यह कहा है। कौशिक सूत्रमें विस्तारसे वर्णन किए हुए जासकता है कि वैतान सूत्र कौशिक सूत्रपर स्पष्ट विधियों अथवा संस्कारोंका उल्लेख वैतान सूत्रमें रूपसे निर्भर है; तथा वह कौशिक सूत्रके पश्चात् दिखाई देता है; परन्तु वैतान सूनमें इनका सम्पूर्ण रचा गया। यही बात और एक प्रकारसे-पारिभा- 1 देवदर्श।