पृष्ठ:ज्ञानकोश भाग 1.pdf/१९१

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अथर्ववेद -- अथर्ववेद ज्ञानकोश (अ) १७८ चिक शब्द सम्बन्धके आधारसे-सिद्ध होती है। से तत्काल ध्यानमें आने योग्य है । श्रौत विधि- दोनों सूत्रोंमें उन-उन सूत्रोंके दो एक सूत्रका योंकी जो परिभाषा है वह इस सूत्रमें नहीं है। अवतरण लेते समय उनसूत्रोंके प्रतीक दिए हुए होतर, अध्वर्यु और उद्गातर शब्द पारिभाषिक दिखाई देते हैं। यह रीति हमेशाकी ही है। अर्थसे कुल कौशिक सूत्र ग्रंथमें कहीं भी दिखाई कौशिक सूत्रमें तो उस समयके शैलि का ही नहीं देते तथा श्रोताग्नीका उपयोग केवल कचित् अनुकरण किया गया है। उस शैलिके अनुसार तथा गौणत्वसे किया है। जैसे:-२२, १४, ६७, ६, किसी वेदके दूसरी शाखामे से सूक्त अथवा पाठ ७०, ६-१२,७१, १-६, ७७, २३, ८०, १८-२३, ८७, तथा अन्य वेदों की शाखाओं में से सूक्त यापाठदेते ३७-३२; ८८, २०, मट, १५ । अग्नि होत्रका दो समय उनको पूर्णरूपसे विवरण देना आवश्यक समय उल्लेख किया है । ७२, ४३, ८, २५ था। वैतान सूत्रमें भी इसी रीतिका अनुकरण यह ग्रंथ, 'गृह्य सूत्र' शब्दके अर्थकी दृष्टिसे किया है; परंतु इसमें एक विशेष प्रकारसे ध्यानमें देखा जायतो इसे गृह्य सूत्रभी नहीं कह सकते। रखने योग्य अपवाद है। वह इस तरह है। इस तरहके ग्रंथमैं हमेशा आनेवाली महत्वकी जो सूक्त अथवा जो पाठ कौशिक सूत्रके साथ विधि याने गर्भाधान विवाह अंत्येष्टि इत्यादि साथ वैतान सूत्रमे भी आया होगा उन सूक्तों का संस्कार, तथा मधुपर्क, श्राज्य तन्त्र इत्यादि, इस या पाठ का अवतरण देते समय वैतानमें केवल ग्रंथमें आए । परन्तु उन्हें ग्रंथम प्राधान्य नहीं प्रतीकों को ही दिया है । यद्यपि यही अन्य संहितामै दिया है। ब्लूम फिल्डके मतसे ग्रंथके मुख्य भाग दिखाई देता हो अथवा अस्तित्वमें होने वाली | में, गृह्य विषयोंको कुछ न कुछ गौण खरूप देकर किसी भी संहितामें वह दिखाई न देता हो और उन्हे ग्रंथमें इधर उधर खूब भर दिया होगा। यद्यपि वह केवल कौशिक सूत्र में ही दिखाई देता अथर्व के सूक्तोंको कहते समय उनके साथ जो हो तोभी वैतान सूत्रमें इस बातको महत्व नहीं विधि करनी पड़ती हैं उनका यह सूत्रमय वर्णन दिया है। एक दो उदाहरण देनेसे वह अच्छी है। प्राचीन कालसे अव तक सूत्रका पाठ तथा तरह समझमें आयगा। कुछ विधियुक्त आचार एक साथही करनेका (१) तैत्तिरीय संहिता ३.२.४.४ मैं जो पाठ नियम रहा है। इन्हीं प्राचारोंका सुधरा हुआ है वह शुक्ल यजुर्वेदमें श्रौत सूत्रमे, कात्या. २. खरूप सूत्र में दिया है । यद्यपि इन विषयोंका आधे १,२२ तथा को. सू.३. ५. मैं संपूर्ण दिया है; परन्तु सेभी अधिक भाग गृह्य सूत्रोंसे भरा हुआ है, वै. सू. १. २० में इस पाठका 'अहेदैधिषन्य' इस | तोभी यह मान लेनाकि इस ग्रंथका अथर्व सूत्रही तरह केवल प्रतीक ही दिया हुआ है। बीज है, और दूसरे भाग बादमें इकट्ठे किए गए हैं (२) को. सू.६, ११ में एक मन्त्र है दारिलाने बड़ा कठिन है । तथापि यह कैसे भीहो हमें तो यह इसे कल्पना नाम दिया है। याकोबी साहबको मान लेने में कोई आपत्ति नहीं है कि कौशिक सूत्र यह मन्त्र किसीभी संहितामें नहीं दिखाई दिया। 'अथर्व' तथा 'गृह्य' इन दोनोंही स्वतंत्र सूक्तोंका वैतान सूक्त २४७ में इस मन्त्रका विमुञ्चामि मिश्रण है। नीचे किया हुआ विवेचन इन दोनों नामक केवल प्रतीकही दिया है। स्वतंत्र सूत्रोंके मिश्रणकी ओर ध्यान देकर किया आगे उस कौशिक सूत्र पर विचार किया गया है। जावेगा जिस पर वैतान सूत्रके निर्भर होने की कौशिकसूत्र की रचनाका काल निर्णय-इस सूत्रकी कल्पनाकी गई है। रचनाके समय तथा स्थानके विषयका साम्प्रदा- यिक ज्ञान उपलब्ध नहीं है। अथर्व ही के कौशिक सूत्रकी रचना-कौशिक सूत्र विधियों साहित्यमें सापेक्ष कालानुक्रमके सम्बन्धमें दो के विस्तारकी दृष्टिसे कौशिक सूत्र अन्य सूत्रोंकी संमयोंका उल्लेख आया है। प्रथमतः मन्त्रों अपेक्षा भिन्न है। यह सूत्र जिस शाखाका है उस तथा सूक्तोंका काल रहा होगा। आगे यह पूर्ण शाखाके लोगोंके उपयोगके लिए इस सूत्र में विधि- रीतिसे सिद्ध किया गया है कि ग्रन्थकार शौनक योका विस्तार पूर्वक विवेचन है। यह कोई श्रौत शाखाकी संहिताको मानता है और काश्मीर सूत्र नहीं है। यह अथर्ववेदके शौनक शाखाका शाखासे आये हुए अथर्ववेदका भी यह अच्छा श्रौत सूत्र, वैतान सूत्र ( वितान कल्प) है। यह शाता था। इन सूत्रोंमें शौनक आदि अथर्ववेद बात कौशिक सूत्र २.६ तथा वैतान सूत्र १-४ के की चारों शाखाओंके मुख्य आचार दिये है । यदि दर्श पूर्ण मासीय भाग संबन्धके विवेचनकी तुलना केशव तथा अथर्वणीय कहना ठीक हो तो हम कौशिक सूत्र।