पृष्ठ:ज्ञानकोश भाग 1.pdf/१९६

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अथर्ववेद ज्ञानकोष (अ) १८३ अथववेद अथर्ववेदके शाखा सम्बन्धी पुराणके अन्तिम हस्तलिखित प्रतियाँ ठीक प्रकारसे पढ़ी नहीं जाती किन्तु अति अधिक व्यवस्थित वर्ण तथा अन्तिम 'बादके लेखकोने जान बूझकर इन शाखाओके नाम भागमै रामकृष्ण तथा गणपति आदिका वर्णन और टेढ़ेमेढ़े रक्खे और अन्तमें इनमै नये नये भाग भी (४) अथर्ववेदके साहित्यमें स्थान स्थान पर प्रसंग मिलाये हैं। इस बातको ब्लूमफील्ड मानता वश आए हुए उल्लेख अथर्ववेदके शाखाओंका (१) पैपलाद् अथवा पैप्पलादक, पैप्पलादी, बहुत बार विचार हो चुका है। पिप्पल्लाद, पैप्पल, पिप्पला पैप्पलायन । इन सब देखियेः बेवर इंडिश स्टूडिएन १.१.२, २६६; | शाखाओंके नाम श्राचार्य पिप्पलादीके नामसे बने हैं। ३, २७७.२ ७८; १३, ४३४-४३५; श्रोमिना पोरटेन्टा । (२) तौद अथवा तौदायनके ही बदले हुए पृष्ठ ४१२-४१३, इंडिश लिटेरचर गोशिष्टे पृष्ठ १७० नाम तौत, तौत्तायन, तौत्तायनीय, आदि हैं। मैक्स मुल्लर 'प्राचीन संस्कृत वाङ्गय ' पृष्ट ३७१' (३) मौद पैप्पलादं गुरूं कुर्यात् श्रीराष्ट्रारोग्य गोपथ ब्राह्मणको राजेन्द्रलाल मित्र की प्रस्तावना, | वर्धनम् । तथाशौनकिना चाऽपिदेवमंत्रविपश्चितम् । पृष्ठ ६, शब्द कल्पद्रम; वेद, रॉथ, काश्मीरी अथ- | पुरोधाजलदो यस्य मौदोवास्यात्कथचन । श्रब्दात्- ववेद पृष्ठ २४; अ० ओ० सो०गि का पू० ११ पृष्ठ दशभ्यो मासेभ्यो राष्ट्र भ्रशंसगच्छति । इस प्रकार ३७७-३७८; सायमन, बैद्रागरूर केन्टिनिस डेरवे. अथर्व परिशिष्ठ २४ में लिखा है. इस शाखा डिशेन शूलेन पृष्ठ ३१ । का पैप्पलादायन तौदायन, जलदायन के समान उपरोक्त रॉथके ग्रंथोमें उसने शाखा विषयकी मौदायन' भी नाम है। साम्प्रदायिक कल्पनाओका बहुतही व्यवस्थित (४) शौनकीय अथवा शौनकिन् । वैतानसूत्र रीतिसे तथा चिकित्सक बुद्धिसे परीक्षण किया ४३, २५ में लिखा है कि जो चेटकी विद्या जानना ह । उसने सिद्धान्त निकाला है कि शाखाओंके इन चाहता है, वह शौनक यज्ञ करे। पाणिनीने शौनक नौ नामों में से पांच सच्चे तथा विश्वासनीय होनेके गणके साथ साथ देवदशनीया, पद जोड़ दिया है। कारण माने जाँय और बाकीके चार अविश्वास (५) महा भाष्यमें जजलीनामक प्राचार्यके नाम नीय होने के कारण छोड़ दिये जाँय । ब्लूमफील्ड से जाजल शाखा दी है, अथर्व परिशिष्ट ४८ में इस के मतानुसार अथर्ववेदके साहित्यों में उसकी के बदलेमें 'जावल' आया । रॉथका मत है कि शाखाओंके सम्बन्ध स्थान स्थान पर आये हुए | कौशिकसूत्र ६, १०, १७, २७; वैतान सू. १,३:२२,१; उल्लेखोंकेही ऊपर विश्वास करने के कारण इन २८, १२; में आया हुआ भागली श्राचार्य इस विषयोंको साम्प्रदायिक कल्पनाओंकी त्रुटियाँ ठीक शाखा का स्थापक होगा। परन्तु इलूमफील्ड का हो सकी हैं। साथही यह बात ध्यान में आयेगी कि ! कहना है कि इसे इस मत की पुष्टि करनेके लिये अथर्ववेदी लोग स्वयं किन किन विभिन्न शाखाओं ! कोई प्रमाण नहीं मिला। को मानते थे। जिस प्रकार अथर्ववेद के पाँच कल्पों (६) जलद का जलदायन रूप भी आता है। के सम्बन्धके साहित्योंमें वर्णित परस्पर विरुद्ध रा. शंकर पांडुरङ्गके कथनानुसार कौशिक सूत्र वर्णन एकत्र करनेसे एक दृढ़ सिद्धान्त निकलता है जिस शाखाओं का है उन्हीं में से जलद भी एक है। (देखिये १० ओ० सो० का० पु. ११ पृष्ठ ३७६ ) (७) ब्रह्मवद । चरणव्युहके अतिरिक्त और उसी प्रकार यहाँभी परस्पर विरुद्ध वर्णनोंसे तत्व किसी अथर्वण ग्रंथमें यह बात नहीं मिलती कि यह की बात निकालना सम्भव है, इस विषयके ऊपर एक शाखा का नाम है, गौण, ग्रंथों में इसी नामके दिये हुए मूल आधारों से चौथा अर्थात् प्रत्यक्ष ब्रह्मपल, ब्रह्मबल, ब्रह्मदावबल, ब्रह्मपलाश, तथा अथर्वणवेद सबसे महत्वका है । इसके सम्बन्धमें इससे भी अधिक अपभ्रष्ट रूप आते हैं। संशय होनेके लिये कोई स्थान नहीं हैं। ( 2 ) देवदर्श अथवा देवदर्शिन के दिवदर्श, ब्लूमफोल्डको छोटे चरण व्यूहकी चार हस्त देवर्षि, वेदर्श आदि अनेक बदले हुए रूप आते हैं। लिखित प्रतियाँ मिली हैं। उसमें इस विषयके (६) चारणवैद्य विद्या केश के कौशिकसूत्र उल्लेख दिए हुए हैं-तत्रब्रह्मवेदस्य नवभेदा ६, ३७ में मिलता है। भवन्ति तद्यथा। पैप्पलादाः तौदाः मौदाः शौन ब्लूमफील्डके मतानुसार यह बात माननेके कीया जाज़ला जलदा ब्रह्मवदा देवदर्शाः चारण लिये कोई भी बाधा नहीं देखपड़ती कि यहाँतक वैद्याश्च । इस कारण उसके मतानुसार अथर्व दियेहुए अथर्ववेद की साम्प्रदायिक शाखानों का वेदकी शाखाओंके यही नाम हैं। तत्सम्बन्धी | वर्णन निश्चित स्वरूप का है 1 अनेक शाखाश्रोमेसे वर्णनोंमें अनेक त्रुटियाँ होनेके यही कारण हैं कि शाखाओंके यही नाम क्यों पसन्द किये गये और -