पृष्ठ:ज्ञानकोश भाग 1.pdf/२०

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अकवर ज्ञानकोश (अ)१० थी । उलेमा इसके विरुद्ध थे। वे लोग चाहते थे ! माओंमें मतभेद हो उनका निर्णय बादशाह करे। कि अकवर उन्हींके आदेशानुसार चले। परन्तु ! उलेमा बादशाहक नौकर थे। इसलिये उन्हें अकबर धार्मिक विषयोंमें उदासीन था। वह लाचार होकर इस हुक्मको मानना पड़ा। इतना दूसरेके अधीन रहकर काम करना पसंद नहीं ' होने पर धार्मिक अधिकार धीरे-धीरे बादशाह के करता था। इसी लिये उलेमाओंसे उसकी कभी । हाथोंमें आगये और उलेमाओंकी पराजय हुई। बनती न थी। यही कारण था कि प्रजा भी उले- | अकबरने उलेमाओके सभापति और प्रधान विचार- माओंको अच्छी नज़रोंसे नहीं देखती थी। इनका पतिको नौकरीसे हटा दिया। अब तक इस्लाम भूटा धमण्ड, अधूरी विद्या और सरकारी नौकरी धर्ममें उलेमाओंका स्थान महत्वपूर्ण था। पैगंबर पानेके लिये उनके घृणित प्रयत्न श्रादिके कारण मुहम्मदके फर्मानोंका कड़ाई के साथ पालन कर वे जनता उनकी खिल्ली उड़ाने लगी और कई बार जुलमी बादशाहोंको बहुत कुछ काबूमें रख सकते थे। इनकी शिकायतें बादशाह तक पहुँचीं। “सबके इस तरह उलेमाश्रीको अधिकार-च्युत कर साथ समानताका व्यवहार' वाला अकबरका चुकने पर अबुलफज़लने घोषित किया कि "अकबर सिद्धांत उन्हें पसन्द न था। परन्तु ऐसे मौकों बारहवाँ इमाम है। संसारकी भलाई के लिये पर अबुलफजल वादशाहको मदद दिया करता | ईश्वरने ही इस अवतारको धारण किया है।" था। अबुलफजलकी इच्छा हुई कि संसारके समस्त इस घोपणासे सबको ताज्जुब हुआ। अकबर की धौके प्रधान तत्त्वौकी छानबीन की जाय । यह धारणा दृढ़ होने लगी कि तारतम्य बुद्धि उसने अकबरको अपने विचारोसे सहमत किया। और सामान्य नीतिके सत्वाकी चलनीसे जो बाने यह कह चुके हैं कि अबुलफजल स्वयं गाढ़ा विद्वान छन जायें वे तो सच है और बाकी सब झूठ हैं। था। उलेमा घमंडी और श्रात्म-प्रशंसक थे। इस्लाम धर्ममें उसकी श्रद्धा ढीली होने लगी और उनमें कोई भी प्रकांड पंडित न था। जो बाते चे वह दूसरे धर्मों की जानकारी हासिल करने लगा। न समझते उन्हें ये छिपा रखते। अबुलफजल अामाका 'जन्मांतर. और उसका मूल प्रकृतिम झूठे शानका विरोधी था। इसलिये अबुलफजल लय होना उसे युक्तिसंगत जान पड़ा । सूर्य ने सोचा कि बादशाहके सामने खुले दरबार में इन और अग्निको परमात्माका अंश माननेमें उसे उलेमाओंसे तर्क-वितर्क किया जाय ताकि उनके हिचकिचाहट न मालूम हुई। ईमाई धर्मकी श्रीर अधूरे शानका पता सबको लग जाय । 'श्रवकरको | भी वह कुछ भुत्का । उसकी जानकारी हासिल यह विचार पसंद आया और उसने हुक्म दिया | करनेके लिये उसने गांश्रास कुछ पारियोको कि सब प्रश्नोंका विचार खुले दरवारमै मेरे सामने अपने यहाँ बुलाया और उनसे बाइबिलको जान- हो। १५७६ में अकबरने फतहपुर सीकरी में एक कारी हासिल की। उसने घोषणा की कि राज्यमें मंदिर बनवाया जिसे वह 'इबादतखाना' कहता; जिसकी इच्छा हो वह ईसाई धर्म का अध्ययन करे था। यहीं वह सब धर्मोंके जानकार लोगोंको श्रोर खुलेयाम उसका पालन करें। परन्तु स्वयं एकत्रित करता था और यहीं बहस-मुबाहसा हुअा उसने ईसाई धर्मकी दीक्षा ग्रहण न की । करता था। हर बृहस्पतिवारको बहुधा ऐसे वाद सब धर्मोंके अच्छे-अच्छे नत्वाका संग्रह कर विवाद हुआ करते थे। इनमें जिस विद्वानका . अकबरने एक नया धर्म स्थापित किया। उसने भाषण विशेष महत्वपूर्ण होता था उसे बादशाह उसका नाम 'दीन इलाही' रखा और यह स्वयं की ओर से इनाम मिलता था। इन वाद-विवादों उस धर्मका पैगम्बर बना। मृट्रिका चमत्कार का यह असर हुआ कि अकबर सुन्नी पंथको छोड़ देखकर. मृणिकता परमेश्वरका जो ज्ञान प्राप्त हो कर शिया-पंथका कायल हो गया। उलेमा सुन्नी- सकता है...उसीके श्राधार पर यह धर्म बना और पंथके अनुयायी होनेकी वजहसे वे शिया-पंथियों : इसमें सब प्रसिद्ध धर्माकं अच्छे-अच्छे नत्वाका को नाना प्रकारके कर दिया करते थे। अकबर समावेश किया गया। इस प्रकार अकबरने यह सोचने लगा कि इन उलेमाओंको परास्त कर इस्लाम धर्म छोड़ दिया। उसने दरबार के मुसल- इनका अधिकार खयं अपने हाथोंमें लेना चाहिये | मानी त्योहार धन्द करा दिये। उसने अनेक और स्वयं धर्मगुरुका पद सुशोभित करना चाहिये। मसजिद तुड़वा कर वहाँ घोड़ोंके अस्तबल बनवाये यही विचार उसने सभाके सम्मुख उपस्थित किए। और जाति-भेद तथा धर्म भेद तोड़नेका प्रयत्न अकबर जानताथा कि उलेमाश्रोमें मतभेद है। इस- | किया। उसकी इच्छा थी कि लोग उसे ईश्वरीय लिये उसने निर्णय किया कि जिन प्रश्नों पर उले- । अंश समझकर उसका भजन करें। उमने सौर