पृष्ठ:ज्ञानकोश भाग 1.pdf/२१

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अकबर ज्ञानकोश (अ (अ) ११ अकबरपुर वर्ष चलाया। हिन्दुओंकी धार्मिक भावनाका | बुद्धि किसी भी विषय पर खतंत्र रूपसे विचार आदर करनेके लिये उसने गोमांस खाना बंद करा | करने योग्य थी; किन्तु वह हठी न था। दिया। वह अपनी सालगिरहके दिन हिन्दुओंके आरम्भमें इस्लाम सम्प्रदाय पर उसकी दृढ़ समान तुला-दान करने लगा। दूसरी ओर वह निष्ठा थी; परन्तु जैसे-जैसे उसका ज्ञान बढ़ने लगा, पारसियों की तरह सूर्यको उपासना करता था. | उसके मनमें सब धर्मों के प्रति समानता उत्पन्न और नवीन अग्नि तैयार करके उसकी पूजा होती गई। साथ ही पवित्रता तथा नीतिके साथ करता था। लोगोंको चमत्कार दिखाना उसे बहुत व्यवहार करनेवाले विभिन्न धर्मों के हजारों लोगों पसंद था । रोग अच्छा करने के लिये वह रोगियोंको की सत्संगति होनेके कारण उसे प्रतीत होने लगा अपने चरणोका तीर्थ देता था। बच्चा होनेके कि धर्म तथा नीतिमें परस्पर कुछ भी संम्बन्ध लिये अनेक स्त्रियां उसकी मन्नतेमानती थीं । उसका नहीं है। सच पूछा जाय तो अकबरने धर्मके दर्शन करने के लिये बहुतसे लोग नित्य सबेरे सम्बंधमें कुछ भी नहीं किया । हाँ, उसने पूर्व आया करते थे। धर्मकी बहुत सी बातें उड़ा दीं। इस्लाम धर्मको उसका मुख्य उद्देश्य सब जातिके लोगोंको | अच्छा न समझकर उसके नाश करनेको उसने एकही शासनके नीचे लाना था। राज्यमें एकता प्रयत्न किया; परन्तु नवीन धर्म संस्थापन करनेका स्थापित करने के लिये मुसलमानी धर्म उसे अच्छा काम उससे सध न सका। उसके नवीन धर्मको नहीं मालूम हुआ। अबुलफजलकी यह कल्पना किसीने भी हृदयसे स्वीकार नहीं किया था। इस कि राजा ईश्वरका अंश है.---अकबरने मान ली। लिये वह उसके साथ ही साथ समाप्त हो गया। अकबर स्वयं इस नये धर्मकी दीक्षा दिया करता| उसने खयं यह देखकर, कि धर्मके कारण राज्य था। जो कोई दीक्षा लेनेके लिये आता था उसे के कामोंमें बाधा पड़ती है, उसका प्रचार कम अकबर एक चिह्न या स्मारक दिया करता था। कर दिया। उसमें 'अल्लाहो अकबर' लिखा रहता था। श्रक. ( लेनपूल तथा सरदेसाईके 'मुसलमानी रियासत' बर शब्दके दो अर्थ (अकबरका अर्थ बड़ा तथा ग्रंथके आधार पर।) अकबर बादशाहका नाम ) होनेके कारण उपरोक्त अकबरपुर-तहसील । संयुक्तप्रांत । कानपुर वाक्यमें दो अर्थ 'ईदर महान है' तथा 'अकबर जिलेकी एक तहसील । उत्तर अक्षां० २६१५' से ही ईश्वर है' हो सकते हैं। २६३३ तक और पूर्व देशां. ७६ ५७ से ११' तथापि उसने इस नवीन धर्मके सम्बन्धमे के बीच स्थित है। क्षेत्रफल २४५ वर्गमील है। ज्यादती नहीं की। दूसरे शब्दों में हम कह सकते जनसंख्या लगभग एक लाख आठ हजार है। इस हैं कि उसने इस धर्मको माननेके लिये लोगोंको तहसीलमें 85 गाँव और खास अकवरपुर विवश नहीं किया। उसका मुख्य उद्देश्य यही लगभग पाँच हजार जनसंख्याका एक गाँव है। था कि राज्यका उत्कर्ष हो। स्वयं स्थापित धर्मके सन् १६०३-४ में कुल आमदनी २५१००० रुपये अभिमानकी विवेकबुद्धि को नष्ट करनेवाली प्रबल थी। इस तहसीलकी जमीनमें खारापन आ जाने वायुने उसके शरीरमें प्रवेश नहीं कियाथा। इसके के कारण बहुतसी जमीन खेतीके कामकी नहीं अतिरिक्त यह भी नहीं दिखाई देता, कि अकबरने रह गई है। इस तहसीलको गंगानदीकी लोअर अपना धर्म चलानेके लिये सच्चे धर्म-संस्थापकके कैनालकी एक शाखा से पानी मिलता है। समान कठिन उद्योग किया हो। यह बात कहने अकबरपुर तहसील । संयुक्तप्रांत । फैजाबाद में अतिशयोक्ति न होगी, कि अकबर सच्ची धर्म- ज़िलेकी एक तहसील । उत्तर अक्षा० २६१५' से स्थापना करने योग्य था ही नहीं। वह राजनीतिज्ञ २६३५ तक पूर्व देशां० २१३ से २५४' तक। था और इसी लिये कि संसारके व्यवहार अच्छी क्षेत्रफल ५३७ वर्गमील । जनसंख्या लगभग तीन तरह चले, उसने ये सब प्रयल किये । उसके लाख पैंतालीस हजार। इसमै अकबरपुर, मजारा धार्मिक परिवर्तन कितनेही योग्य क्यों न हो, पर तथा सुरहुरपुर तीन परगने हैं। इसमें तीन बड़े यदि उनसे राज्यके काममें किसी प्रकारकी वाधा गाँव तथा ५४ छोटे गाँव हैं । पड़नेकी संभावना होती थी तो वह उन्हें स्वीकार कुल आमदनी ५२४००० । मालगुजारी नहीं करता था। धर्मके सम्बंध उसने किसी ४५१००० तथा करकी श्राय ७३०००। इसमें बहुत- पर अत्याचार नहीं किये । उसका विश्वास था, कि सी जमीन दल-दल और ऊसर है। इस ताल्लुके प्रत्येक धर्मम कुछ न कुछ तथ्य अवश्य है । उसकी ! का मुख्य स्थान अकबरपुर है। - -