पृष्ठ:ज्ञानकोश भाग 1.pdf/२२६

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अधर्मसंतति ज्ञानकोश (अ)२०३ अधर्मसंतति सकता, क्योंकि वह 'किसी' का लड़का नहीं | मौकोपर तो वह रकम माँको दिलाने की जिम्मेदारी समझा जाता । नैतिक दृष्ट्रिसे वह न तो परिवार भी धार्मिक संस्थाएँ ले लेती थीं। कमिशनने हीन और सम्बन्ध रहित समझा जाता है क्योंकि सुझाया कि बच्चेकी परिवरिशकी जिम्मेदारी माँ वह अपनी माँ या बहन के साथ विवाह तो करही पर होनी चाहिये, विधवा भी तो ऐसी जिम्मेदारी नहीं सकता। वंशगत न सही वह कोई दूसरा सहन करती ही हैं । इसलिये व्यभिचारको यदि नाम ही धारण कर लेता है। यदि पार्लियामेन्ट गुंजाइश रखी जायगी तो कहना पड़ेगा कि विपत्ति चाहे तो वह उसे औरस और वारिस भी मानले की अपेक्षा दुराचार ही को अधिक महत्व दिया सकती है। जा रही है। १८३४ ई० में भिखमंगोंके कानूनमें भिखमंगोंके कानून ( Beggar's Act ) में संशोधन हुआ। उसके अनुसार बच्चे के माने हुए औरस सन्तानकी रहनेकी जगह बापके रहने वापसे उसकी परवरिश होने का तत्व स्वीकृत की जगहसे निश्चित करते हैं। परन्तु अधर्म संतति किया गया। परन्तु इसकी अवहेलना होने लगी। का स्थान माँ के रहनेके स्थानसे मानते हैं। कानू जनता इस अवहेलनाको अनुचित समझती थी, नन अधर्म सन्ततिके संरक्षणका भार बच्चे की माँ इसलिये १८४४ में अधर्म संतति सम्बन्धी कानूनों पर है। इसी लिये उसको पालने पोसने की की जाँचके लिये एक कमिशन नियुक्त हुआ। जिम्मेदारी माँ की है। परन्तु प्रारम्भ ही से अंग्रेजी कमीशनने रायदी कि बाप ही को बच्चे के भरण कानून तत्वतः यह मानता है कि इस जिम्मेदारीमै | पोषण की व्यवस्था करनी चाहिये । १८४३ ई. में वापका भी हिस्सा होना चाहिये। यह इस लिये अधर्म सन्ततिका कानून पास हुआ। इसके अनु- नहीं माना जाता है कि माँ बच्चेके भरण पोषणके सार बच्चेकी माँको यह हक प्राप्त हुआ कि वह बच्चे लिये कुछ माँगती है या बापको उसके कुकर्मका के बापपर दीवानी अदालतमें खुले आम मुकदमा कुछ दण्ड मिले बल्कि जिस धर्म खातेसे उस बच्चे चला सके और धर्मखाता इसमें हस्तक्षेप न करे। का पालन पोषण होता है उसपर नाजायज बोझ आगे चलकर धर्म खातेको यह अधिकार प्राप्त न पड़े इसीलिये यह तत्वतः कानूनमें संग्रहीत है। हुथा कि वह बच्चेके वापसे उसकी परवरिशका १५७६ का कानून जो कि इङ्गलैण्डमें अधर्म सन्तति खर्च वसूल करसके । विषयक कानूनका आधार माना जाता है वह न्याय इस समय अधर्मसन्ततिको जो हक मिले कर्ताओंको अधिकार देता है कि वे बच्चे जो धर्म- | नहीं हैं उनमें प्रधान यह है कि वह किसीका भी खाते पाले पोसे जायें उनकी माँ वापसे एक हफ्ते | वारिस नहीं हो सकता क्योंकि वह किसीका का खर्च वसूल कर सके। १६६और १७३३ ई. सम्बन्धी (रिस्तेदार ) नहीं होता। किसी भी के इसी विषयके कानूनोंमें ऐसी धार्मिक संस्थानो पूर्वजका बीज उसमें नहीं माना जाता। इस और बच्चेकी माँ को अधिकार दिया गया कि वे बच्चे के लिये ऐसी अधर्मसन्ततिके अतिरिक्त यदि बापको सासनेले पावे और जब तक वाय बच्चेकी | किसी जायदाद का दुसरा कोई हकदार न हो तो परवरिशका खर्च धार्मिक संस्थाको न दे वह कैद जो वह जायदाद जिसके अधिकार कक्षामें पड़ेगी में रखा जाय । १८०६ और १८१० ई० के कानूनों उसको मिलेगी। जिस तरह ऐसा बालक (अधर्म के अनुसार ये बन्धन और भी दृढ़ किये गए। सन्तति ) किसीका वारिस नहीं होता उसी तरह १८३२ ई० में भिखमंगोंके सम्बन्ध जो कानून है | उसका वारिसभी उसीकी और ससंततिके सिवा उसकी पाबन्दी कहाँ तक होती है इसकी जाँचके | कोई नहीं हो सकता। इसलिये यदि ऐसा मनुष्य लिये एक कमीशन नियुक्त हुआ। कमीशनने अपनी (अधर्म जनित ) कोई जायदाद खरीदे और वह रिपोर्ट में अधर्मसन्ततिपर विशेष ध्यान दिया। निस्संतान अथवा बिना बिल (Will ) किए मर १५७६ ई० से तब तकके इस सम्बन्धी कानूनोंपर | जाय तो उस जमीनका वारिस जमीदार होता है । विचार कर कमिशनने निश्चय किया कि अधर्म पहले अधर्म संततिको धर्मसंस्थाओंमें कोई पद या सन्ततिको स्वीकार करनेवाला कानून अदूरदर्शिता | कार्य नहीं मिलता था। परंतु इस समय साधारण से भरा हुआ है। कारण यह है कि वह बहुतसे मनुष्य और अधर्म संततिमै भेद नहीं माना जाता। कुकर्मोंके लिये गुंजाइश रखता है। उदाहरणके स्कॉटलैण्डमेंभी अधर्म संततिके संबंध ऐसेही लिये स्थानीय धर्म संस्थाओं द्वारा एक हफ्तेका कानून है। पहले स्काटलैण्ड में ऐसा मनुष्य (अध- खर्च जो बच्चे के बापसे वसूल किया जाता था वह मसंतति ) नि संतान होता था तो उसे मृत्युपत्र वहुधा बच्चेकी माँको दे दिया जाता था। कई | (Will) बनवानेकामी अख्तियार नहीं था।१८३५ई.