घराना अकराणि ज्ञानकोश (अ)१३ अकलुज ताल्लुका एवं पश्चिममें काठी राज्य है। १८७२ में खानदेशसे अकराणि परगनेको जाने के लिये यहाँकी जनसंख्या लगभग १५ हजार थी। इसमें पांच तंग पहाड़ी मार्ग हैं, उनमें शाहाद्याकी ओर उपजाऊ भूमि लगभग १५ हजार एकड़ है। इस | से जाने पर नयागांव' घाटी पड़ती है, जिससे परगनेमे १७२ गाँव हैं जिनमेसे सत्रह ऊजड़ होकर बैल, घोड़े आदि बड़ी सरलतासे जा सकते हैं। इस परगनेकी सारी जमीन पहाड़ी है और है। शेष घाटियोंमें केवल पैदल जाने योग्य मार्ग हैं, १६०० से लेकर २५०० फिट तककी ऊँचाई पर जिनमें कुछ तो बहुतही बीहड़ हैं। अकराणि परगने है, इसमें कुछ गाँव धनी हैं। यहाँ जमीनकी से अनाज, महुएके फूल, शहद, शहदकी मक्खियों सिंचाईके लिये बहते हुए झरनोंका पानी अधि- | का मोम, लाह, गोंद तथा राल आदि चीज कतासे मिलता है। मकई तथा अन्यान्य अनाजो अधिकतासे बाहर भेजी जाती हैं। की खेती अच्छी होती है। बहुत उँचाई पर स्थित इस परगनेका अधिक इतिहास नहीं पाया प्रदेशोंमें घने जंगल हैं और उनमें ईंधन योग्य जाता। धड़गाँव तकका देश खानदेशके मुसलमान लकड़ियाँ बहुत पायी जाती हैं। इसके अतिरिक्त राजाओं के आधीन था। उसके उत्तर की ओर इन जंगलों में अनेक प्रकारको औषधियां तथा रंग नर्मदा नदी तकका प्रदेश स्थानीय राजाओंके ही तयार करने योग्य वनस्पतियाँ मिलती है । यहाँकी अधिकार था । सन् १७०० ई० के बाद यह प्रदेश सृष्टिका सौन्दर्य भी देखने ही योग्य है। गावोंके धुशवईके राणाओंके अधिकारमें चला गया । श्रासपास अधिकतर आम और महुओंके पेड़ोंकी उनमेंसे राणा गुमानसिंहने अकराणि किला तैयार घनी झोड़ी है। नदी किनारेका प्रदेश हमेशा किया। चार राणाओंके शासन-कालके बाद यह हगभग रहता है और बीच-बीच में खजूर श्रादिके। निवंश हो गया और इस राज्यमें चारों वृक्ष दृष्टिगोचर होते हैं। ओर अराजकता फैल गई। आगे मतवारके राणा इस पहाड़ी प्रदेशमै तुरणमाल सबसे महत्व- भाऊ सिंहने इस परगने पर राज्य स्थापित किया पूर्ण पहाड़ है। पूर्वीय भागमें उसकी ऊँचाई ४०० और रोशमल किला (जो श्रोजकल गिर पड़ा है ) फुट है। इसके अतिरिक्त कोमल, उदद, अष्टम्भ बनवाया। १८१८ ई० तक राज्य करनेके बाद श्रादि पहाड़ | इस प्रदेशके पत्थरोमें चाँदी, ब्रिटिश सरकारने इस घरानेको २८६८ रुपयेकी ताँवा, लोहा श्रादि धातुओके कण दिखाई देते हैं। पेन्शन निश्चित करके सारा देश अपने अधिकारों पानी भरपूर मिलता है । कँए, नदियां और झरनो | कर लिया। यह राज-धराना बड़ा प्रतिष्ठित है में गरमीम भी पानी रहता है, परन्तु किसी-किसी और बडोदाके गायकवाड़ तथा छोटाउयपुरके स्थानका पानी हानिकारक तथा शीतज्वर उत्पन्न राणाओके साथ उसके विवाह-संबन्ध हुए हैं। करने वाला है। यहाँकी जमीन कंकरीली होनेके कारण यहाँ गेहूं, चना श्रादि अनाज उत्पन्न नहीं अकलुज-यह गाँव बंबई प्रान्तमे सोलापुर होते। यह प्रदेश उँचाई पर स्थित है, इस कारण जिले के मध्यमें मालशिरके उत्तरपूर्व ६ मील दूर यहाँकी हवा ठंढी रहती है। यहाँ जाडेमै सर्दीबहुत नीरा नदी के तट पर बसा हुआ है । यहाँ एक पड़ती है और कभी-कभी कूओंका पानी जम जाता बड़ा बाजार लगता है । यहाँकी जनसंख्या लगभग है। बरसातम पानी भी खूब बरसता है। यहांके पाँच हजार है। पहले यहाँ रुईका बड़ा भारी निवासी मेहनती और उद्योगी हैं तथा जनसंख्या व्यापार चलता था, इस कारण यह गाँव बड़ी बरावर बढ़ती जा रही है । इसमें मुख्यतः वारली उन्नति पर था। यहाँ एक किलेका खंडहर है। तथा पारवा जातिके लोग हैं । शायद पारवा जाति यहाँ डाकखाना है और सोमवारको बाजार लगता के लोग राजपूतोंके वंशज हो। इस जातिके लोग है। बीजापुरमै प्लेग होनेके कारण औरङ्गजेबने खेतीके काममैवारली आदि भील जातियोंकी अपेक्षा सन् १६८६ ई० में इस स्थान पर डेरा जमाया अधिक कुशल हैं । ये स्वभावतः भीरु हैं, पर थोड़ा और रोग हट जाने पर यहाँसे डेरा हटा लिया। परिचय हो जाने पर ये बड़े अानन्दसे बातें करने | कैप्टन मूरने सन् १७६२ ई० में यहाँका वणन लग जाते हैं। सब लोग खेती करते हैं और बहुत | करते हुए लिखा है कि यहाँका बाज़ार बहुत बड़ा से लोग गाय भैसीको भीपालते हैं: बकरियाँ मुर्गियाँ है और यहाँ पर एक किला तथा कुछ सुन्दर सथा बत्तक भी पाले जाते हैं। भेड़ और सूअर इमारत और कुँए हैं। सन १८०३ ई० में जब कोई नहीं पालता। ज्वार, बाजरा. और नागली जनरल लेस्ली द्वितीय बाजी राबको पुनः गद्दी यहाँको मुख्य उपज है। पर बैठानेके लिये श्रीरंगपट्टमसे पूनकी ओर जा
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