पृष्ठ:ज्ञानकोश भाग 1.pdf/२३६

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अनननास . ज्ञानकोश (अ) २१३ अनन्त अकुर निकलने लगते हैं। इससे पैदावार अच्छी ! ( Necklace ) गलेमें पहनते हैं। खासिया पहाड़ी होती है। इस सम्बन्धमै निकोलस साहबके । के अमनासके धागेसे तय्यारकी हुई थैलीको बतलाये हुये खेतीके तरीके नीचे दिये जाते हैं:- बाँलिच नामक एक गृहस्थने १८३६ ई० में छः छः फुटकी दूरी पर पंक्तियां खींचनी चाहिये, खरीदी थी। इससे स्पष्ट है कि यहाँ के लोग और प्रत्येक पंक्तिमें कमसे कम तीन फीटके अन्तर धागाका उपयोग पहले भी जानते थे । सन् १८८७ पर पौधे लगाने चाहिये। इस प्रकार एक एकड़ ई० में ( East Indian Association ) ईस्ट जमीनमें २५०० पौधे लग सकते हैं। पहली फसल : इण्डियन असोशियेशनके सन्मुख वेन्टन साहय आतेही पौधेके लगभग चार अंकुर छोड़कर शेष ने आसामके व्यापारके सम्बन्धमें भाषण देते हुए काट डालने चाहिये। इससे दूसरी फसलमें कहा था कि सिलहट में अनननास. उसके पत्तोंके १००१० फल उत्पन्न होगें। पौधे कॅटीले होनेके धागे तथा उससे मद्यार्कका व्यापार किया जा कारण बीचमें काम करनेके लिये आवश्यक स्थान ! सकता है। हाल ही में सर० जे० बकिन्धमने पंक्तिके मध्यमें रखना चाहिये। इसके अतिरिक्त, ! आसामी धागेको लंदनके (Impirial Institute) दो पक्तियों में अधिक अन्तरके रखनेसे पुराने पौधे | इम्पीरियल इन्स्टीट्यूट में परीक्षार्थ भेजा था। वह उखाड़कर नए पौधे दोनों पक्तियों के बीचमें लगाये। धागा परीक्षामें अति उत्तम ठहरा। इसके एक टन से २५ पौण्ड जा सकते हैं। इसतरह एकही जगह पर कई का मूल्य हो सकता है। फसले उत्पन्न हो सकती हैं। अन्य देशोंकी अपेक्षा यहाँ तो अनननाससे भाँति वेस्टइण्डीज़में खेतीके पाठ या नौ मास बाद माँ तिके लाभकी ओर ध्यान ही नहीं दिया जाता फल तय्यार हो जाते हैं। फिरंगर का मत है कि इसका यदि पूर्ण उपयोग किया जावे तो अत्यन्त भारतके दक्षिण भागमें अगस्तमें इसकी खेती लाभ हो सकता है। इसका औषधिरूपमें श्रमक करनी चाहिये। फरवरी और मार्चमें पोधोंमें उपयोग होसका है। इससे मक और सिरका भी तय्यार होता। फूल आ जाते हैं। जूलाई तथा अगस्तमें फल पकना प्रारम्भ होजाता है, तथा सितम्बर अक्तूबर औषधिगुणधर्म-अनननासके पत्ते का रस पेट में वे बढ़ कर पूर्ण तय्यार हो जाते हैं। कभी कभी की कृमियोंके नाशके लिये बड़ा लाभदायक है। जब फूल श्रानेमें देरी हो जाती है तो जाड़े फल चीनी के साथ ताजे पत्तोंका रस पिलानेसे हिचकी | दन्तविकारोंमें फलका सेवन करना चाहिये । तय्यार होते हैं। भलीभाँति पकनेके लिये उष्णता की आवश्यकता होनेके कारण जाड़ेमें यह अच्छे बन्द हो जाती है। कुछका मत है कि अनननासके नहीं पक पाते, अतः स्वाद में भी ये खट्टे तथा रससे गर्भपात हो जाता है। कच्चे अनननासका अप्रिय लगते हैं। बुडरोका कथन है कि उत्तम सेवन करनेसे स्तम्भित ऋतु-स्राव ठीक समय प्रकारके पौधोकी खेती जनवरीसे मार्चतक बम्बई । पर होने लगता है। इसके सफेद भागके रसको प्रान्तमें करनी चाहिये श्रोर अंकुर फूटने तक है। पके फलका रस सेवन करनेसे पीलियामें चीनी मिलाकर पीनेसे पेटकी कीड़ी गिर जाती बराबर पानी देते रहना चाहिये। फलपूरा परिपक्व होनेके पूर्व ही उसे तेज, लाभ होता है । अनननासके पत्ते के धागोंसे उत्तम चाकूसे काटना चाहिये। यदि कहीं दूर फल तथा मजबूत कपड़ा बनाया जासकता है। सिंघा- भेजना हो तो प्रत्येक फलको घास अथवा कागज़ पुरके लिफोर्निया इत्यादि स्थानोंसे अनननासका में लपेटना चाहिये। दो अथवा तीनसे अधिक मुरब्बा बाहर भेजा जाता है। इसी प्रकार यह फलोंको एकमें नहीं बाँधना चाहिये। फल दबने व्यापार भारतके मालाबार इत्यादि प्रान्तोंसे बड़े अथवा अधिक पकनेसे सड़नेका उर रहता है। सफलता पूर्वक किया जा सकता है। एक फल सड़नेसे सब फल खराब हो जाते हैं।। अनन्त-(१) परमेश्वरका एक नाम। (२) एक धागा तय्यार करना-पत्तोंसे उत्तम धागा निक कदुपुत्र । (३) कभी कभी यह शब्द शेषनागके लिये लता है। फिलीपाइन द्वीपमें एक (Pina) पाइना भी व्यवहारमें लाते हैं । (४) अनन्त चतुर्दशीको नामक कपड़ा इससे तय्यार करते हैं जो मलमल पूजा करके हाथमें बाँधा जानेवाला २४ गाँउका के समान होता है। उत्तर बङ्गालके रङ्गापुर जिले एक डोरा । इसी प्रकार यह स्त्रियों के बायें हाथमें के चमार जूते सीनेके लिये इसीसे धागा तय्यार भो वाँधा जाता करते हैं। इसलिये धागेको वहाँ अधिक माँग अनन्तव्रत-यह एक मुख्य भारतीय व्रत है। रहती है। गोवाकी ओर लोग धागेके कराटे प्रति वर्ष भाद्रसुदी चतुर्दशीको इस व्रतका पालन ।