पृष्ठ:ज्ञानकोश भाग 1.pdf/२४५

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अनन्तपुर गाँव तालाब बनवाया ज्ञानकोश (अ) २२२ अनन्त कँदी अनन्तपुर गाँव-जिले, विभागऔर ताल्लुकेका । गाइड सेसंसरिपोर्ट ] मुख्य स्थान । यह उ०अ०१४०११ और पू० रे० अनन्तपुर -मैसूर राज्यके शिमोगा जिलेके ७७°३७ में स्थित है। सदर्न मरहठा रेलवेके गुंटकल । ताल्लुकेका एक गाँव है। यह उ० अ० १४०५ और बंगलोर शाखापर यह स्टेशन है। यहाँकी जन- पू० रे ७५°१३ में स्थित है। लोक संख्या यहाँको संख्या ११२१ में ११५२ थी। विजयनगरके चार सौ है, पहल इसका नामअन्धासुरथा और यह राजाके दीवान चिकरणा उड़ियारने यह गाँव ! एक महत्वकी जगह थी। अन्धासुर नामक राजाने १३६४ ई० में बसाया था, और उसको अपनी ! इसे बसाया था। आगे आठवीं शताब्दीमें हुचा पत्नी "अनन्ता" के नामसे विख्यात किया। इसी राज्यके संस्थापक जिनदत्तने अन्धासुरको जीता। चिकण्णाने उसी समय अनन्तपुरमें एक बड़ा | ग्यारहवीं शताब्दीमै अन्धासुर चालुक्योंके राज्य तालाब बनवाया। इस तालाबमें पंदामेरू नदी | में शामिल था। १०४२ ई० में १२०० ब्राह्मणोंको आकर मिलती है। विजय नगरके राजासे हनुमप्पा : इस गाँवका अग्रहार बनाया गया । १८७६ ई. तक नायडूके हंडे घरानेको इस विभागकी सनद | यह राजधानी थी. सत्रहवीं शताब्दी केलदी सोलहवों शताब्दीमें मिली। इस घराने के पास! राजा वैकंटप्पा नाइकने शिवाचार मठ स्थापित यह प्रदेश दो शताब्दी तक था। १७५७ ई० में किया, चंपकसर नामक गुत्तोके संस्थानिक मुराररावने इस गाँवपर घेरा ओर गाँवका नाम आनन्दपुर रक्खा। आजकल डाला; परन्तु ५००००) मिलनेपर उसने यह घेरा उसका रूपान्तर अनन्तपुर हुआ । हैदर और टीपू उठा लिया। १७७५ ई० में हैदरने गुत्तो और के समय में इस गाँवपर अनेक बार चढ़ाइयाँ हुई बल्लोरी जीतकर इन भागों में से ६६०००) वसूल थीं। (इं० ग०५) किया, वहाँ के पालेगारको यह रकम न दे सकने अनन्त फंदी-नगर प्रान्तमै संगमनेर नामक के कारण हैदरने उसे कैद किया और उसका प्रदेश एक बड़ा गाँव है । वहींका यह निवासो था, यह अपने राज्यमें मिला लिया। इसके बाद वह वंश बाजसनो ब्राह्मण था और इसका गोत्र कोडिण्य कभी सिर न उठा सका। १७८ ई. में वयोवृद्ध था, इसके पिताका नाम कवानीबाब, माँ का नाम पालेगारका देहान्त हो गया, इसके बाद टीपूने राजूवाई ( राऊबाई महाराष्ट्र )। कविचरित्र; संत- शीघ्र ही इस घरानेके कुल मनुष्योंको फाँसीकी | कविकाव्य सूचीकार "गउवाई" लिखती हैं, यह आज्ञा सुनायी, जिससे फिर वे दुःख न पहुँचा. कदाचित् मुद्रक दोष होगा इसका (उपनाम) सके और उनको गाँवके बाहर फाँसीपर लटकाया। धोलप था। संगमनेरमें एक मलीक फंदी नामक गया। उस पालेगारका तीसरा पुत्र श्रीरङ्ग- ' विलक्षण फकीर था उससे इसका बहुत स्नेह होने पट्टणमें था। उसने भागकर कालहस्तिके राजा । के कारण लोगोंने उसका फंदी उपपद इसके नाम का आश्रय लिया : १७६४ ई० में वह अनन्तपुर ! के साथ जोड़ा और तबसे इसका यह नाम पड़ा। को लौट आया; परन्तु वह शीघ्र ही निजामको इसका जन्म शक १६६६ के रक्ताक्षि नामक शरणमें आया। निजामने उसको सिहनामपुर | संवत्सरमें हुआ था और मरनेके समय उसकी गाँव इनाममें दिया। १८०१ ई० में उसकी मृत्यु अवस्था ७ वर्ष की थी। उस समय शालिवाहन होने के बाद मुख्य शाखाका अन्त हो गया। शक १७४१ था। अनन्त फंदी पहले तमाशे करता १८६६ ई० में यहाँ म्युनिसीपैलिटी स्थापित फिरता था और अपनी बनाई हुई लावनी हुई, १६०३-४ ई० में आय १७५००) और व्यय गोकर लड़केको नचाता था। एक समय १६०००) था। अनन्तपुरके चारों ओर बगीचे अहिल्याबाई होलकर संगमनेरमै ठहरी थो । उसको हैं, इस कारण वहाँ की हवा स्वास्थ्य के विचार इसका पता लगा और उसका बुलाकर कहा कि से खराब है। युरोपियन लोग अच्छी जगह : जो कृत्य आप करते हैं वह ब्राह्मणके लिए उचित बसे हैं । यहाँ लगभग २०-२६ इंच वर्षा होती है। नहीं हैं, तबसे इसने तमाशा करना छोड़कर यहाँ एक डाकबङ्गला, एक कालेज, तीन हाईस्कूल, कीर्तन करना प्रारम्भ किया। अनन्त फंदीके सरकारी ट्रेनिंगस्कूल तथा और भी स्कूल हैं। होलकर राज्यमें जानेपर बाईने तमाशेके बदले एक जिनिंगका कारखाना है, अनाज लोहे और कीर्तन करनेका उपदेश दिया था। इसके बाद फुटकर मालका व्यापार होता है। मुख्य पुलिस. | लोकाग्रहसे एक अवसरपर अनन्त फंदीके एक कचहरी, मेजिस्ट्रेट कोर्ट और दूसरी श्रेणीके । बार फिर तमाशा आरम्भ करनेपर एकाएक काराग्रह इत्यादि हैं, [इं० गॅ५ अर्नोल्ड ई. संगमनेरमें अहिल्याबाई की सवारी आई, और