पृष्ठ:ज्ञानकोश भाग 1.pdf/२५०

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"अनागोन्दी ज्ञानकोश (अ) २३१ अनामलई (३) 'मेत्तेय' नामके विषयमै जो थोड़ा सन्देह है एक कथा मिलती है कि यहाँ का एक राजा उसे दूर करदेना आवश्यक है। मेत्तय का अर्थ | पंठरपुरके विठोवाको एक मूर्ति यहाँ उठा लाया "प्रेम बुद्ध नहीं है बल्कि यह एक गोत्रका नाम है। था । भानुदास वही मूर्ति फिर पंठरपुर कदाचित् गौतम की तरह यह भी पैतृक नाम है, वापस ले गये। और इसका अर्थ 'मेत्तय का वंशज होगा। एक दूसरी कथा मिलती है कि यहाँ का राजा मेत्तेय सुत्तनियतका एक दूसरा ऐतिहासिक अपनेको सार्वभौम कहता था। सम्पूर्ण पृथ्वी पुरुष था। उसका और इसका कोई सम्बन्ध नहीं का राज-कर अपने बहीखातोंमें जमा करता था। है । 'मेत्ता' शब्दका अर्थ 'प्रेम' है इसलिये भावी इस प्रकार वह अपना दिल बहलाव किया करता बुद्धको “मेत्तेय" नाम देनेके लिये इस शब्दका था। इस क्रियाके आधार पर 'अनागोंदी जमाखर्च' प्रयोग किया है । ऐसे शब्द श्लेष भारतीय साहित्य तथा 'अनागोंदी कारभार' महावरे बन गये जिस में प्रायः पाये जाते हैं। इसमें यह भी लिखा है | के अर्थ क्रमसे 'बेकारका हिसाब किताब' और कि भावी बुद्ध का नाम "अजित होगा। | 'अन्धाधुन्धी' कारबार हो गया। अनागोन्दी--यह नगर तुगभद्रा नदीके अनाज़रबस-यह एक अत्यन्त प्राचीन उत्तरीय तट पर बसा हुआ है। तुगभद्रा नदीके सिलिशियन नगर है। यह पिरेमस ( जैहून) दक्षिणीय तटपर वसे हुए विजय नगरके यह ठीक नदीके तटसे २० मील की दूरी पर पश्चिममें सामने है। प्राचीन कालके यहाँ अनेक मन्दिर हैं। अलेनके मैदानमें स्थित है। रोमन साम्राज्यकाल लोगोका कथन है कि बालिकी किष्किन्धा नगरी में यह सेसेरियाके नामसे विख्यात था। जब यह यही रही होगी। यह एक छोटासा नगर था जिस भूकम्प द्वारा नष्ट हो गया तो जॅस्टियन बादशाहने के चारों ओर किलेबन्दी की हुई थी। यहाँ पर इसे फिरसे बसाया था। इस कारणसे इसका एक छोटा सा राजा बहुत काल तक राज्य करता नाम भी तब जस्टिनोपोलिस पड़ गया (५२५ई०) । था। बड़े परिश्रमके साथ एक राजाने यहाँ एक लेसर अमेनियाके राजा थोरोस प्रथमने १२वीं बहुत मजबूत किला बनवाया था। इस राजवंश शताब्दीमें इसे अपनी राजाधानी बनाया। तब की उत्पत्तिका ठीक ठीक पता नहीं चलता। इसका नाम 'अनाजवीं होगया। इस नगर के बहुत काल तक वे द्वारसमुद्रके होयशल वलाल प्राकृतिक स्थितिके कारण वायजेन्टाइन सम्राज्य के मण्डलीक थे। फरिश्ता का कथन है कि १३५० तथा मुसलमानों के युद्ध में इस नगरने बहुत कुछ ई० से पहले सात सौ वर्षतक यही राजवंश | भाग लिया था। हाँरुरशीदने यह शहर ७६६ ई० अनागोंदी पर राज्य करता रहा। हरिहर तथा| में बसाया था। सैफउद्दौला हमदानी (१० वीं वुकाराय, दोनों भाई वारंगल के राजाके पास थे। शताब्दी) ने इस नगरको फिर से बसाया। सैकत १३२६ ई० में वारंगलके परास्त होनेपर उन्होंने द्वारा इस नगरकी फिर से मरम्मतकी गई थी अनागोंदीका आश्रय लिया था। इनमेंसे एक दीवान किन्तु धर्म योद्धाओं (Crusades) ने इसको था और दूसरा खजानची। इनके कालमै अना- उजाड़ डाला था । शहरकी दीवारका नीचे गोंदी का काफी महत्व था। १३३४ ई० में देहली का भाग आधुनिक बना हुआ है किन्तु मल्लभूमि के सुलतान मुहम्मद तुगलकका भतीजा बागी रङ्गभूमि इत्यादि अवशेष अब भी प्राचीन समय होकर इसी राज्यके आश्रयमें श्राकर रहा था। के वर्तमान हैं तब सुलतानने अनागोंदी पर चढ़ाई कर दी। इस अनाथ-यह एक प्रसिद्ध महात्मा हो गये नगरको जीतकर उसने इसका तहस नहस कर हैं। यह हिन्दीके उच्च कोटिके विद्वान तथा कवि डाला । तब दोनों भाइयोंने तुगभद्राके दूसरे तट भी थे। इनके दोहे सर्वप्रिय है। विचार माला पर विजयनगर नामक एक नगर बसाया जिससे और सर्वसार उपदेश इनके लिखे हुए मुख्य धीरे धीरे इसका महत्व और भी घटता गया । ग्रंथ हैं। इस स्थान पर रङ्गनाथ स्वामी और लक्ष्मी अना-मलई विश्व-विद्यालय--यह मद्रास देवीके मन्दिर हैं । लक्ष्मी देवीके मन्दिरमै हनुमान प्रान्तके चिदाम्बरम जिलेमें स्थित है। इसकी जी तथा गरुड़की सुन्दर काष्टकी मूर्तियाँ हैं। स्थापना मद्रास प्रान्तके कौंसिलकी धारा १. उत्सबके अवसरों पर इनकी सवारी निकाली १६२६ई. के अनुसार हुई थी। शिक्षाके साथ ही जाती है। अनागोंदीसे पम्पासर केवल दो साथ विद्यार्थियोंके रहनका भी प्रबन्ध इसीके मील की दूरी पर है। हाथमें है। इस विद्यालयका बहुत कुछ श्रेय !