पृष्ठ:ज्ञानकोश भाग 1.pdf/२५२

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अनाहगढ़ ज्ञानकोश (अ) २३३ अनाहित किसानोमें की गई है। आधुनिक जनसंख्यासे अवेस्ता सूक्तमें ज़ोरोास्त तथा उन सब विदित होता है कि इनकी संख्या कमसे घटती जा वोरोके नाम दिये हैं, जिन्होंने अनाहित के प्रोत्यर्थ रही है। इनमें भी दो भाग होगये हैं। श्रेष्ठ ! यज्ञ किया है। अन्तमें इसके रूप और बलका वर्गको देसाई और निकृष्टको 'भथेला' कहते हैं। वर्णन दिया है। (यस्त ५, १२६ व आगे) वह देसाई भथेलोंके साथ रोटी बेटीका व्यवहार नहीं ऊँची, सुन्दर और शक्तिमति कुमारिका है। उसने करते। धनके लोभसे ऐसे सम्बन्ध भी हो जाया कमर में पेटी बाँध रक्खा है। जरीके वस्त्र करते हैं। इन लोगोंमें भी दहेजको रवाज पायो पहिने हुए है। वह कर्णभूषण, कंठी और सुवर्ण जाती है जिससे अनेक असुविधायें होती हैं। मुकुट धारण किये हुए दर्शाई गई है। अना- किन्तु अब धीरे धीरे सब कुप्रथाय दूर होती हित सेमेटिकदेवी -अनन्तके समान हैं। हिरो- जाती है । ( बा० ग० सेन्सस रिपोर्ट) डोटस. का कथन है कि असुर लोगोंसे इरानी अनाहगढ़ः ---पंजाब प्रान्तकी पटियाला राज्या- लोगोंने स्वर्गीय देवताओंके प्रीत्यर्थ यज्ञ करना न्तर्गत यह एक निजामत है । यह उ० अ० २६३३' सीखा है। से ३०३४' और पू० रे० ७४४१० से ७५° ५०, घरोसस कहता है कि अटक्ज़क्सिज़ नूमोन में स्थित है। इसका क्षेत्रफल १८३६ वर्गमील है। ( Artaxerxes Numon) ने ईसाके ३०० या यहां की जनसंख्या करीब चार लाख है। इसमें ४०० वर्ष पूर्व ईरानके लोगोंको सगुण मूर्तिकी ४ कस्बे और ४५४ गाँव हैं । इस निजामतके बीच | उपासना करना सिखाया। बीच में अंग्रेजी भाग भी हैं। १६०३-४ ई० में यहाँ उस समय अनाहित पूजा सारे ईरानमें फैली की कुल आय ७२ लाख रुपया थी, (इ० गॅ) हुई देख पड़ती थी। यह देवी ईरानके बाहर अनाहगढ़-पटियाला राज्यके इसी नामकी आर्मेनियां में भी पूजी जाती है। इरेज ( Ereil) निजामतकी एक तहसील है। यह उ० अ० ३. क्षेत्रमैं इसी अनाहितकी सुवर्ण मूर्ति थी और से ३० ३४' और पू० रे० ७५° ४४ में स्थित है। उसका मन्दिर अपनी असीम सम्पत्ति के लिये क्षेत्रफल इसका ३४६ वर्गमील है। जन संख्या बहुत प्रसिद्ध था। एकलाख है। इस तहसीलम ३ कस्बे और ६ गाँव अर्मेनियाकी लड़कियाँ इस मन्दिरमें जाकर हैं। १६०३-४ ई० में इसको आमदनी १८ लाख शादोके शर्तपर पुरुषोंसे संग करती थीं। धर्म रुपया थी, (है. गॅ०) के नामपर होने वाली यह अनीति मूलतः सेमे- अनाहित-अनाहित मज्द सम्प्रदायकी एक टिक है और प्राचीन असगोत्र विवाह पद्धति मुख्य देवी है। यश्त ( ५ ) और अवेस्तामें का एक स्वरूप है। रोमनों के समयमें इरेजकी इसका बहुत कुछ वर्णन मिलता है। "श्राी- पुरानी परंपराको आश्रय मिलने लगा। अनाहित सुरा अनाहित" श्रेष्ठता, बल और पवित्रतामें के पवित्र साँड़ 'अकिली' सेनामें स्वेच्छासे इधर वही स्थान रखती है जो पर्जन्य और नैस- उधर घूमने लगे और पकड़ कर यज्ञमें बलि र्गिक वसन्तकी अधिष्ठात्रिका है, और वह नक्षत्र दिये जाने लगे। मण्डलमें बोस करती है। वहींसे संसारकी सब इस इरानी देवताकी पाँटस और कपडोशिया नदियाँ निकलती हैं। मन्द अनुयायियों का मत में भी आराधना होती थी। मा ( Ma ) नामक है कि दैवी जल केवल प्रकृतिमें ही उत्पादन शक्ति श्रेष्ठ देवीसे समानत्वके कारण आश्रय पाने की उत्पन्न नहीं करता वरन प्राणीमात्र पर इसका इच्छासे दास स्त्री पुरुषों को बड़ी भीडं एकत्रित प्रभाव पड़ता है। अवेस्ता को तरह अनाहित रहती थी। भी पुरुषके वीर्यको शुद्धि करती है। स्त्रियोंके प्रायः लीडियामें अनाहितके अस्तित्वको अब. गर्भ और दुग्ध को भी पवित्र रखती है। शेष मिलता है। यूनानी लोग वीरोचित स्वभाव (वोहिदाद ७-१६ यस्त ५-५) वरणके समय कन्या के कारण एक ओर तो अथिना देवीसे और और प्रसूतिके समय स्त्रियाँ इसकी आराधना दूसरी ओर इसके समृद्धिदायक गुणों के कारण करती हैं। यस्त (५) ओले (बर्फ) के समान अमोडीटीसे इसको साम्य देते हैं। ईरानमें वह सफेद घोड़े वाले रथ पर बैठकर वह संग्राम खाल्डियन नक्षत्रोपासनाके कारण शुक तारा बन में जाती हैं। ( यस्त ५, २१ १३ और ५१२०)| गई परन्तु पश्चिममें पर्शियन अर्टिमिस या "पशि- वह योद्धाओंको जिताती और युद्धसामग्री भी यन डायना” कहते हैं। इसको वैल प्रिय हैं, देती है। केवल इसी धारणासे आर्मेनिया, कपड़ोशिया