पृष्ठ:ज्ञानकोश भाग 1.pdf/२५४

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अनीबेसेन्ट ज्ञानकोश (अ) २३५ अनीस भारत राजनैतिक क्षेत्रमें अधिकसे अधिक जो | जन्म सम्बत् १८५८ में हुआ था और इसकी सम्मान किसी भी व्यक्तिको प्राप्त हो सकता है वह मृत्यु सम्बत् १९३० में हुई। इन्हें प्राप्त हुश्रा । कांग्रेसके सभापतित्व तकके पद अनीसको शिक्षा लखनऊमें हुई थी। इनको को इन्होंने विभूषित किया। इनको राजनैतिक क्षेत्र उस्ताद थे मौलवी हैदर अली । कविता आप में कार्यकरनेसे विशेष प्रेम था, और इसी कारण ! की पैत्रिक सम्पत्ति थी। इनमें कविता बीज रूप से थियाँसोफिकल कन्वेन्शन ( Theosophical ; से बर्तमान थी। अनुकूल वातावरण अथवा Convention ) चार साल तक कांग्रेसके साथ वही बीज अंकुरित हो धीरे धीरे खूब पल्ल. ही साथ होता रहा ( १९१६-१७-१८,-१६)। वित हो उठा। पहले तो इनके पिताने इन्हें इस १६२० ई० से राजनैतिक क्षेत्रसे इनका मान मार्गसे हटा देनेकी पूर्ण चेष्टा की। परन्तु जब कुछ घट सा गया था क्योंकि महात्मा गांधी बढ़ी हुईनदीकी भाँति इनकी प्रवृत्तिवाधित गति द्वारा चलाये हुए असहयोग आन्दोलनसे यह पूर्ण | से बढ़ती रही तो अन्त में उन्होंने इनके कविताक्रम रूपसे सहमत नहीं थी और न इसमें पूर्ण रूपसे । मार्गमें परिवर्तन करके छोड़ दिया। इनसे इन्होंने भाग ही लिया । किन्तु इससे यह नहीं उन्होंने एक दिन कहा, 'धेटा, आशिकाना गजलों कहा जा सकता कि इनके देश-प्रेम अथवा सेवा को तो सलाम करो और अपनी प्रतिभाको उस भावमें तनिक भी त्रुटि आगई थी। नैशनल कन्वे- मार्गमें लेजाओ जो दीन और दुनियाँ दोनों न्शन और होमरूल आन्दोलनका कुल श्रेय इन्हीं हासिल करावें ।” उसी दिनसे यह 'मरसिया' को है। इन्होंने लिवरल फेडरेशन ( Liberal लिखने लगे। इनके ये मरसिये बड़े प्रभावो- Federation) की भी अनेक सभाओं में भाग लिया त्पादक हैं। अनीसने लगभग दस हजार मर. किन्तु 'होम रूल' ही इनका मुख्य ध्येय रहा। सिये कहे होगें। रुबाइयों और सलामोकी निष्पक्षता ही इनका प्रधान गुण था। यदि यह संख्या तो बहुत हैं। सं० १६१६ में इन्हे. लख- सरकार द्वारा देशपर अत्याचार अथवा अनुचित नऊ छोड़ना पड़ा। सं० १९२८ में ये हैदराबाद व्यवहार देखकर भभक उठती थी तो जनताको पहुँचे। वहाँ इनकी बड़ी कदर हुई। त्रुटियों पर भी सदा ध्यान रखती थीं और उसके इनका रंगरूप भी प्रभाव-शाली था। पढ़ने विरूद्ध कहने में नहीं चूकती थीं। का ढंग बड़ा. ही आकर्षक था। - इनका यह सन् १९२८ ई० में जब भारतमें सर साइमनके | कायदा था कि एक बड़े शीशेके सम्मुख बैठकर प्रधानत्व में से स्टेचुरी कमोशन ( Statutory | मरसिया पढ़नेका अभ्यास किया करते थे। Commission) ने पदार्पण किया तो इस ८१ वर्ष अनीस चरित्रवान, सन्तोषी तथा मितभाषी थे। की एकवार फिरसे नवीन स्फूर्तिका सञ्चार वृद्धा जब बोलते तो ऐसे मोहक और अँचे हुए शब्द कि में होगया और भारतीय दलों में सम्मिलित होकर कानों में अमृत वर्षा करते थे। सचमुच उर्दू, इसके बहिष्कार के लिये अनेक प्रतिभापूर्ण भोजखी | कविताम अनीसके मरसिये एकही महत्वपूर्ण स्थान भाषण दिये । भारतमें थियोसोफिकल सोसाइटी रखते हैं। उनमेंसे कवि-प्रतिभाकी किरणे चारों की जन्मदाता यही थीं। अपने सतत परिश्रम, | और फूट निकली हैं। हिन्दीमें एक घनाक्षरी अदम्य उत्साह, 'असीम प्रतिभा तथा योग्यताके छन्द इनके नामसे प्रसिद्ध है जिससे हात होता. कारण भारतके २८वीं शताब्दीके इतिहास में है कि ये हिन्दीमें भी कविता करते थे। इनको इनका नाम विशेष उल्लेखनीय हो रहा है। भारत घनाक्षरी निम्न लिखित है। से इनको विशेष प्रेम था और भारतकी पवित्र घनाक्षरी। भूमिमें ही ८६ वर्षको अवस्थामें २०वों सितम्बर सुनो हो विटप हम पुहुप तिहारे अहैं, १४३३ ई० को इन्होंने प्राण छोड़े। इनकी मृत्युका राखिही हमैं तो शोभा रावरी बड़ा बैंगे। शोक देशके कोने कोने में मनाया गया, और इनको सजिहौ हरषि के तो विलग न मानै कछु, वह सम्मान दिया गया जो बहुत कम भारत जहाँ जहाँ जैहैं तहाँ दूनो जस गावेंगे । वासियोको भी प्राप्त होता है। सुरन चढ़ेंगे नर सिरन बढ़ेगे फेरि, अनीस-उर्दूके प्रतिभाशाली कविः मीर सुकवि 'अनीस हाथ हाथन विकागे । बबर अलीका यह उपनाम था और इसी नामसे देश में रहेंगे परदेश में रहेंगे काहू, प्रसिद्ध भी थे। इनके पिताका नाम मुस्तहसन भेष में रहेंगे तक राउरे कहावैगे। खलीक था। यह लखनऊके निवासी थे। इनका यद्यपि अनीस आजीवन- लखनऊ में हो रहे !