पृष्ठ:ज्ञानकोश भाग 1.pdf/२५५

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अनीस ज्ञानकोश (अ) २३६ अनुभव पर अपनी. बोलचालकी भाषा दिल्ली ही की. मनुष्य जातिमें इसका प्रयोग होना कोई आश्चर्य रखते थे। इसका इन्हे गर्व था। इन्होंने बालक की बात नहीं। गान्धर्व विवाहके अतिरिक्त अन्य स्त्री पुरुष, योद्धा, कायर, प्रेमी तथा सेवक श्रादि विवाहपद्धतिमें इसका प्रयोग नहीं होतात भारत सभीक मनोभावोंको व्यक्त करनेमें कमाल किया वर्षमें इसका उदाहरण यदाकदा ही प्राप्त होता है। इनकी कल्पनाशक्ति बड़ी विलक्षण थी। है। सीता, द्रौपदी, सावित्री एवं शकुन्तला ल्यालकी बारीकीका तो कहना ही क्या है। श्रादिके विवाहोंमें विवाहपूर्व अनुनयका आभास इनकी कविता सात्विक भावों, शिक्षाओं तथा ! मिलता है फिरभी इस प्रथाका भारतवर्ष में अधिक महत्वसे परिपूर्ण । कहीं कहीं तो प्रकृतिका | प्रचार नहीं दृष्टि गोचर होता। हाँ, पाश्चात्य देशो जीता जागता चित्र तक उतार दिया है। नीचेके में इसका प्रायः विकास दिखायी पड़ता है जिस चुने हुए थोड़ेसे और उनकी प्रतिभाकी झलक का प्रधान कारण वहांकी स्त्रियोकी स्वतंत्रताही दे देते हैं। कहा जा सकता है। उन देशोंमें श्रौद्योगिक एवं (१) नामूदो धूद श्राकिल हुबाब समझे हैं। व्यक्तिगत स्वतंत्रताके कारण कुमारियोंको पुरुषका वो जांगते हैं जो दुनियाँको ख्वाब समझे हैं. ॥ सहयोग एवं उनसे एकान्तवासका प्रायः अवसर (२) अब गर्म खबर मौत के श्राने की है। मिला करता है और उसी दशामें यह संभव भी नादाँ तुझे फिक्र श्राबोदाने की है। होता है। भारतवर्ष में ज्यो ज्यो पाश्चात्य सभ्यता (३) जब साल गिरह हुई तो उकदयःखुला । का विकास एवं पाश्चात्य संस्कृतिका प्रचार होता यों गिरह से एक बरस और जाता है। जाता है त्यो त्यो इसका भी प्रचार होने लगा है (४) क्योंकर न लपटके तुझसे सोऊ ऐ कन्न। और सम्भव है कि आगे चलकर यहाँ भी इसकी मैंने भी तो जान देके पाया है तुझे ॥ - प्रथा चल जाये। " अनु-(१) शर्मिष्ठाके गर्भसे सोमवंशी राजा अनुभवजनित ज्ञानवाद-यह सुनिश्चित मत ययातिका पुत्र था। पिताके कहने पर इसने | है कि सब प्रकारके शान इन्द्रियदत्त होते हैं। इस उनकी बुढ़ौतीसें अपना यौवन परिवर्तन नहीं किया मतके अनुसार प्रारम्भमै मन बिलकुल कोग रहता जिससे उन्होंने मुख्य राज्याधिकारसे इसे वञ्चित है, उसपर इन्द्रियदस्त समवेदना यान्त्रिक रीतिसे कर दिया और ग्लेच्छाधिपत्य प्रेदान किया। लिपिवद्ध होती है। मानसिक कार्यका उसमें कोई सभानरं, चक्षुः और परोक्ष नामके इनके तीन पुत्र अंश नहीं रहता। मनके ज्ञान पूर्ण होनेको इस थे। (मत्स्य पुराणं.३४) क्रियामें अपरिचित व्यक्तिगत समवेदना रहती है। (सोमवंशी ) यदुपुत्र कोष्टाके ज्यांमध वंशमै | एकसी बातो हो के बारम्बार होने अथवा पुनरा- इसका जन्म हुआ था। यह क्रथ कुलके कुरुवंश गमनसे नियमोकी कल्पना तथा उत्पत्ति होती हैं। का एक राजपुत्र था जिसके पुरूहोन नामक एक ये साहचर्यके अनुभवसे मिले हुये होते हैं। पर पुत्र था। इस विधोनमें यह नहीं कहा जा सकता है कि ऐसा (३) यह क्रथ-वंशोत्पन्न सात्वत-पुत्र अंधकुल , होना नितान्त आवश्यक हो है। इसमें केवल यह के गजा कपोतरामाका पुत्र था। इसे अंधक विधान होता है कि कोई विशेष परम्परा अवश्य नामक एक पुत्र था। पायी जाती है, और उसीसे कार्यकारण भावका (४) ऋग्वेदमें अनु और भानवके राज्य का विकास होता है। इस सम्बन्धमें आवश्यकता उल्लेख मिलता है। यदु, पुरु, तुर्वश, द्रुह्य, की कल्पना अनुभवपूर्ण रहती 1. अनुभव इत्यादि लोगोंके साथ ये भी उत्तर हिन्दुस्थान जनित ज्ञानवादसे अनुभवका स्पष्टीकरण नहीं परुष्णीके किनारे रहते थे। इनका इतिहास दास होता। कहा जाता है कि व्यक्तिगत भावना राक्ष युद्धके तीसरे प्रकरणमें मिलता है। क्षणिक होती है। अतः इस शानवादमें भी भिन्न अनुनय-इस शब्दका साधारणतया दो अर्थों | भिन्न मानसिक क्रियाओंके आवश्यकतानुसार फल में प्रयोग होता हैः-एक प्रार्थना और दूसरा प्रेम हुआ करते हैं। प्राचीन ग्रीसमें यह मत ;बहुत याचना। दूसरे अर्थका सोपपत्तिक विचार करने प्रचलित था। बेकनने भी इस मतके प्रचारके के लिये उसको तीन भाग करना होगा-यतः लिये बहुत कुछ किया, तथा लॉक, ह्य म, प्रेथम् विवाहपूर्व अनुनय, विवाहोत्तर अनुनय और एवं अन्य साहचर्यवादियोंने इस मतको व्यवः विवाहनियमविरुद्ध अनुनयः। जब पशु पक्षियों स्थित किया। में भी संभोगापेक्षा अनुनय दिखायी पड़ता है: तब अनुमति-(१) कर्दम कन्या श्रद्धाके गर्भ