पृष्ठ:ज्ञानकोश भाग 1.pdf/२६०

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अनूबाई घोरपड़े ज्ञानकोश (अ) २३७ अनेवाड़ी उसी वर्ष वर्षाऋतु अनूबाई अपने जागोर बहुरूपिया था। उसने अनूबाईसे इसके सम्बन्ध धारवारमें गयी और वहां रहने लगी। माताके | पूछ ताछ्की, पर अनुवाईने भी उसे भाऊ साहय निकट रहनेसे पुत्रकी स्वतंत्रतामें फिर व्याघात ही बतादिया। इसपर सन् १७७६ ई० में रत्न गिरि हुश्रा और उसकी ( नारायणराव) अव्यवस्था के तहसीलदारने उस बहुरूपियको कैदसे भगा एवं अनाचार. अनुवाईको सा न हुअा। अतः दिया जिसके लिये व्यंकट रावको लड़ाई करनी उसने पुत्रको उसकी स्त्रीके साथ नजर बन्द कर | पड़ी और बहुरूपिया हरा दिया गया। उन्हीं दिनों दिया। सन् १७६४ ई० में अस्वस्थ रहने के कारण इचलकरजीके कई गांवों पर जन्तीका वारंट अनूबाई माधवरावके साथ हैदरकी चढ़ाई में न भाया था पर नानाफड़नवीस और सखाराम जा सकी । उधर पानीपतको लड़ाई के बाद हैदरने वापूने अनूबाईकी वृद्धावस्थाका विचार कर सवा तुङ्गभद्राके उत्तरमै चढ़ाइयाँ कर धार वारको अपने लाख रुपया दण्ड स्वरूप लेकर जन्ती लौटाली । राज्यमें मिला लिया था । पर इस चढ़ाई में पेशवा उसके कुछ दिनों बाद वह काशी चली गयी जहां ने उसे फिर वापस ले लिया और अनूवाईको दे सन् १७८३ ई०में उसकी मृत्यु होगयी। दिया। अनूबाई की उस बीमारीकी दशा नारायण राजकाज में वह बहुत चतुर थी। चोरता भी राव भी उत्पात मचाने लगा था। पर उसके शीघ्र | उसमें गजबकी भरी थी। अंतिम अवस्था तक ही स्वस्थ होजाने के कारण वह फिर प्रतिवन्ध | उसने पेशवाकी लड़ाइयों में उसका साथ दिया रख लिया गया। उधर नारायण रावकी निष्कि और स्वयं सैन्य-संचालन करती थी। उसके धैर्य यता देखकर पेशवाके भी मनमें आया था कि उस नीति, महत्वाकांक्षा आदिकी सराहना नहीं की जा का पद छीन कर किसी अन्य को दे दिया जाय पर सकती। वह बड़ी उदार एवं खर्चीली थी जिससे सन् १७६६ई के जूनमें अनूबाईने पूना जाकर पेशवा | उस पर प्रायः कर्जका बोझ होजाया करता था। को अपने पक्षमें करलिया, यहां तक कि उसके खर्च पूरा करनेके लिये उसने कर भी बढ़ा राज्य पर जो वाकी लगानकी भारी रकम वसूल दिया था। करनेके लिये सरकारी कारकुन भेजे गये थे उन्हें अनेकुल गाँव-बंगलोर जिले ( मैसूर तो वापस वुलवा ही लिया उस रकममें भी काफी रियासत के अनेकुल ताल्लुके का मुख्यनगर है कमी कराली। जो बंगलोरसे २२ मील पर अग्निकोणमें स्थित है। सन् १७७०ई० में जब पेशवाने कर्नाटक पर यह उ०अ० १२४३' और पू०रे, ७७४२ में चढ़ाईकी तब अनूबाई भी उनके साथ ही थी स्थित है। इसकी जनसंख्या लगभग पांच हजार किन्तु उसी समय पुत्रकी मृत्युका समाचार पाकर है १७वीं शताब्दीमें सुगतूरके राजाने यहांपर वह वापस चली गयी ।. इस बृद्धावस्था पुत्रशोक | एक किला और उसके पासही एक तालाब भी की दारुण व्यथा उसे असह्य थी पर पौत्र व्यंकट बनवाया था। इसके सौ वर्ष बाद तक वह मैसूर रावके हितको ध्यानमें रख वह फिर राजकोज में रियासत का माण्डलिक रहा। सन् १७६० ई० में जुट गयी । उसके तीन ही वर्ष बाद उसकी कन्या | हैदर अलीने उसे अपने राज्यमें मिला लिया। वेणूबाईके पति त्र्यम्बकराव मामा पंढरपुर के पास १४०० ई० में डोमिनिकानोंने यहां एक प्रार्थना राघोबा दादाके पक्षमें लड़ते हुए मारे गये। विधवा | मन्दिर बनवाया । १८७० ई० से म्युनिसिपैलटी भी कन्याको सांत्वना देने अनूबाई अपने पोतेको लिये स्थापित होगयी है। १६०३-४ ई० में यहां की प्राय हुए पहुँची और वहाँसे वापस आये अभी वर्ष भी ३१००) रु. और व्यय ४६००) था। (इ० ग?, ५)। नहीं बीता था कि रघुनाथराव दादाके भड़कानेसे अनेकुल ताल्लुका-मैसूर राज्यके बंगलोर करबीर वालोंने पेशवाके राज्यमै अत्याचार करना जिलेके अग्निकोण का एक ताल्लुका है। यह उ० आरंभ करदिया । इचलकरजी पर भी चढ़ाइयाँ अ० १२४० से १२५५और पूरे ७७३२' हुईं। अनूबाईने चढ़ाई करने वालोंको तो भार से ७७४६ तकमे स्थित है। इसका क्षेत्रफल १६० भगाया पर भविष्यमै ऐसी चढ़ाइयाँ रोकने के लिये वर्गमील है । जनसंख्या साठ हजार है। इस उसने पेशवासे जो सहायता मांगी थी, वह पेशवा | ताल्लुके में तीन बड़े बड़े गांव एवं २०२ छोटे छोटे के अंग्रेजों और हैदरके साथ युद्ध में व्यस्त रहनेके गाँव हैं । १६०३-४ ई मैं यहांको श्राय १२६००००० कारण न मिल सकी। थी ( इ००५) सन् १७६६ई० में पेशवाको सन्देह हुआ कि अनेवाड़ी-सतारा जिलेका एक गाँव ! भाऊ साहब वास्तव में भाऊ साहब न होकर एक | मराठोंके इतिहासमें इसका उल्लेख अनेक स्थान्नु