पृष्ठ:ज्ञानकोश भाग 1.pdf/२६४

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अन्न ज्ञानकोश (अ)२४१ 1 प्रादुर्भाव हुआ । बहुत कुछ प्रभाव जातिकी श्रम, स्वास्थ्य तथा जीवन-चर्या पर निर्भर है। सभ्यता तथा विकासका इसपर पड़ता है। रूस आजसे बीस वर्ष पहले भोजनसम्बन्धी जो में आजकल चाहे नवयुवकोको उत्तम भोजन प्राप्त धोरणाये थीं उनमें अब बहुत कुछ अन्तर होगया न हो किन्तु बच्चोंके भोजन का ध्यान सबसे पहले है। पहलेके वैज्ञानिकोका विचार था कि मानव- किया जाता है। आस्ट्रेलियामें अनेक नियम बने जीवनकेलिये अन्न-द्रव्यों में (१) नेत्रजन (Proteins) हुए हैं और उनको सामाजिक रूप दे दिया गया । (२) भाण्ड ( Caro-hydrates ) (३) स्निग्ध है। यह तो सर्वमान्य है ही कि भिन्न भिन्न स्थिति | अथवा चर्बी ( Fats ) (४) क्षार (Salt) तथा तथा अवस्थाके प्राणियोंको भिन्न भिन्न अन्न विशेष (५) जल ( Water ) का ही रहना अनिवार्य है, आवश्यकीय है। इसीका ध्यान रखते हुए इन | किन्तु अब, हमारे भोजनपदार्थमें विटामिन (Vita- नियमोका प्रादुर्भाव हुअा होगा। जो अन्न बच्चों mins) का होना भी आवश्यक समझा जाता है। के लिये नियत हैं वह उनके माता पिताको त्याज्य हमारे जीवनमें ताप ( Heat) भी कम भाग है । जो पदार्थ स्त्रियोंकेलिये है उसे पुरुषको नहीं लेता। मनुष्यमै वह शक्ति जिसके कारण वह व्यवहार में नहीं लाना चाहिये। इसी भाँति सब जीवित रह सकता है. इसी ताप ( Heat) से केलिये नियम है। फलतः सबको सरके श्राव उत्पन्न होती है। इस तापको वैज्ञानिकरूपसे श्यकतानुसार पदार्थ मिलते हैं ऐसे ही मापकर केलोरी ( Calorie) के नामसे पुकारा नियमौकी सम्भावना रूसमें भी को जाती जाता है। केलोरीसे ऊष्णताके उस प्रमाणका है। जो वस्तु विशेष उपयोगी होती है उसको बोध होता है जो एक पौण्ड जलको ४ डिग्री गरम भी खाद्य पदार्थ में निषेध करते हैं। कदा वना देतो है। केलोरीके पूर्णतया अभाव में जीवन चित् 'गो' की महिमा को जानने के कारण ही असम्भव है। श्वाँसक्रिया तकमें तो इसकी श्राव- उसका वध 'घोर पाप' कहा गया है। बहुत से श्यकता होती है। किस प्राणिको कितनी शक्ति देशो में 'अन' की चोरोकेलिये दण्ड अन्य चोरी की आवश्यकता है यह ठीक ठीक कहना तो कठिन के दण्डों से विभिन्न हैं। चीनमें क्षुधापीड़ित है क्योंकि यह तो बहुत कुछ उसके परिश्रम, मनुष्य अन्न चोरी करने पर दण्ड का भागी नहीं स्वास्थ्य, अवस्था तथा शरीर पर निर्भर रहता है। होता । हिन्दू, ही तथा ईसाई धर्म में भी ऐसे ही जितना ही अधिक परिश्रम करना पड़ता है और नियम हैं। इसीके विपरीत यदि डेंजर (Danger) जितना ही अधिक डोलडौल होता है उतने ही द्वीपमै अन्न चुराता हुआ कोई मनुष्य पकड़ा जाता अधिक केलोरीकी आवश्यकता पड़ती है। साधा- है तो उसे प्राण-दण्ड दिया जाता है। रणतया किसे कितनी केलोरीकी किस अवस्थामें त्योहार तथा उत्सबके अवसरोंका भाविष्कार आवश्यकता होती है, यह निनाङ्कित कोष्टकसे भी उत्तम उत्तम भोजनकेलिये ही हुआ देख पड़ता विदित होजावेगा- है। श्रार्थिक स्थितिके कारण नित्य उत्तम तथा प्रिय भोजन न मिल सकने पर भी ऐसे अवसरो अवस्था केलोरी की प्रति घण्टे में आवश्यकता पर उत्तमोत्तम भोजन बनाना अनिवार्य होजाता है। सहभोज इत्यादिके लाभ भी छिपे नहीं हैं। पुरुष इनसे जो स्नेहभाव तथा श्रात्मीयताका प्रादुर्भाव ६७ होता है उसीको विचार कर इसकी प्रथा भी सर्वत्र १५ वर्ष पाई जाती है। ६१ स्वास्थ्य तथा वैद्यक दृष्टिसे विचार-प्रारो-मात्रके लिये जो सबसे आवश्यक पदार्थ है वह है शक्ति, और इस शक्तिकी उत्पत्ति अन्नसे ही होती है। २५, बिना अन्नके शरीरमे शक्ति (Energy ) उत्पन्न | ३५, ५६ नहीं हो सकती और बिना शक्तिके प्राणका टिकमा ४५., ६६ असम्भव है ! अतएव जीवनकेलिये भोजन अपरि- १५, हार्य है। यो तो हर अन्नमें कुछ न कुछ शक्ति ६५ पू३ अवश्य रहती है, किन्तु किस अवस्थाके किस ६५ ,, मनुष्यको कितनी आवश्यकता है यह उसके परि-७५ , ६४ ८३ १७" ७७ २० ७४ 99 ७४ ५७ " 49 ५४ पू१