पृष्ठ:ज्ञानकोश भाग 1.pdf/२६७

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अन्न ज्ञानकोश (अ)२४४ भारतवर्ष ऐसे कृषिप्रधान देशमें तो गेहूँ, जौ, व्यवहारमै लाना अधिक लाभदायक । बारली चना, चाँवल, दाल इत्यादिका ही विशेष महत्व अथवा जौ से 'माल्ट' नामक पौष्टिक पदार्थ उत्पन्न देख पड़ता है। गेहूँ तथा जौ का आटा विशेष होता है। विशेष ज्ञानकेलिये नीचे कोष्टक दिया रूपसे व्यवहार में लाया जाता है और होता भी है | जाता है- इन्हींका आटा सबसे उत्तम । चोकर सहित आटा घटक पदार्थ जौ बाली श्रोट चावल दाल द्विदलधान्य मटर भालू १३-१ १२-५ ७६.० नैट्रोजनयुक्तसत्त्व 9-8 २४-८ २-२ स्निग्ध पदार्थ २-२ ५.२ माँड ६७-६ ५४. ४६-३ २०-६ (नपचने वाला)सेल्यूलोज २-५ ५-३ ७.५ जल २-७ फल तथा शाक इत्यादिमें यद्यपि उतने पौष्टिक | अभावसे ही उत्पन्न होते हैं। भविष्यकी आवश्यक- गुण नहीं है किन्तु उनमें फासफोरस ( Phaspho- | तानोको पूरा करनेके लिये शरीर 'ए' विटामिन rus) बहुत होता है जिससे मानसिक कार्य करने ! काफी अंशमै संचय कर सकनेकी शक्ति रखता है। वालोंके लिये यह विशेष लाभकारी होते हैं। माना जीवनके शैशवकालमें इन्हें यथेष्ट एकत्रित कर प्रकारके शारोंसे युक्त होने के कारण मानव शरीर रखनेसे आगे चलकर मनुष्य इन रोगोंसे अपनी पर तथा स्वास्थ्य दृष्टिसे इसका बड़ा उत्तम प्रभाव रक्षा कर सकता है, अतः बच्चोंके लिये यह विशेष होता है। रक्त-पित्त दोष तथा अपच इत्यादिसे रूपसे श्रावश्यक होता है । योतो यह बहुतसे अन्नों पीड़ित मनुष्योकेलिये ये विशेष उपयोगी होते हैं। मैं थोड़े बहुत अंशो में पाया जाता है किन्तु विशेष ऊपर कहा जा चुका है कि जीवनकेलिये कई | रूपसे गायके ताजा दूध, मक्खन, अण्डे इत्यादिमे प्रकार के रासायनिक द्रव्योंकी श्रावश्यकता होती होता है । है और उनपर थोड़ा बहुत प्रकाश भी डाला गया 'बो' विटामिन का पता 'ए' से पहले ही लग है किन्तु आजकलके वैज्ञानिक विटामिन ही को चुका था। अबतक इसके विषय में जो पतो लगा सबसे अधिक प्रधानत्व देते हैं। यही एक ऐसी है वह मानव जीवनकेलिये कम उपयोगी नहीं पदार्थ है जिसपर मानवस्वास्थ्य निर्भर है। यह हैं। इसके प्रभाव से 'वेरी वेरी' ( Beri-beri ) पदार्थ नित्य व्यवहार में लायेजाने वाले प्रश्नोमे पाया पेलना ( Pellagra) स्नायुयोके रोग ( Nervous जाता है। यधपि अभी इस विषयमें ज्ञान केवल | troubles) कब्ज, पाचन क्रियामें दोष इत्यादि परिमित है किन्तु जो कुछ भी विदित हो चुका है | अनेक रोग होने लगते हैं। बेरीबेरी भी प्रधानतः उसका उल्लेख नि आवश्यक है। अब तक रनायुयों का ही रोग है। श्रारम्भमें तो स्नायुयो पाँच भागोंमें बिटामिन बाटे जाते हैं-(A) 'ए' | में असह्य पीड़ा होती है और बढ़ते बढ़ते मांस (B) 'बी' (C) 'सी' (D) डी तथा (E) ई। पेशियाँ शिथिल होकर बेकार हो जाती हैं। अन्तमें ये विभाग इनके विशेष गुणधर्मके अनुसार ही मृत्यु तक हो जाती है। पेलनासे स्नायु और किये गये हैं। यदि शारीरिक आवश्यकतानुसार मस्तिष्क दोनों ही आक्रान्त होजाते हैं, त्वचा लाल प्रत्येक विटामिन हमारे शरीरमे नित्य न पहुँच | होने लगती है। अन्तमें मनुष्य उन्माद ग्रसित हो सके तो धीरे धीरे किसी न किसी भयानक अथवा जाता है। इसका अभाव हमारे शरीर को शीघ्रही असाध्य रोगके चंगुलमें फँस जाना अनिवार्य है, खटकने लगता है। इससे पता लगता है कि मानव और अन्तमें बड़ा भयानक परिणाम हो सकता है। शरीर इसको सञ्चित करके बहुत दिनों तक नहीं १६१५ई० में विटामिन 'ए' का आविष्कार रख सकता। अतः ऐसे अन्नका निरन्तर ही हुआ। प्रयोग करके देखा गया कि इसके प्रभाव सेवन आवश्यक है जिसमें विटामिन 'बी' यथेष्ट से नेत्रोको विशेष हानि पहुँचती है। और भी यह हो। यह विशेष रूपसे ताजा फलों और तरका. सभी छूतोका प्रधान रक्षक माना गया है । साधा | रियों, गेहूँ तथा अन्य अन्नोफे कीटाणु, ईस्त रण सर्दी, जुकाम इत्यादि ऐसे रोग जिनमें नाक, (Yeast ) सलाद ( Salad ) इत्यादि में पोया गला और सांस नली आक्रान्त होती है इसके | जाता है।