पृष्ठ:ज्ञानकोश भाग 1.pdf/२६९

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अन्नकूट ज्ञानकोश (अ) २४६ अन्नवस्त्र अन्नकूट-हिन्दुओंका यह एक प्रसिद्ध त्योहार नहीं कहा जा सकता किन्तु शालिवाहनकी पन्द्र- है। यह उत्सव कार्तिक मास में दीपावलीके | हवीं शताब्दीमें जिस समय चालुक्य वंशके राजा दूसरे दिन प्रतिपदा को मनाया जाता है। इसको राज करते थे, उस समय इसका उदय हुआ था। कथा सनत्कुमार सहिताके कार्तिक माहात्म्य में | कौडिन्यपुर ( कोडवीडू) की संस्कृत पाठशाला में दी हुई है। इस दिन नाना प्रकार के उत्तमोत्तम बारहवर्ष तक इसने न्यायशास्त्रका अध्ययन करके पक्वान्न तथा भोजन बनते हैं। गोवर्धन पूजा ही अच्छी योग्यता प्राप्त की। इसीने अाजकल के इस उत्सरका प्रधान अङ्ग है। गोवर्धन एक पर्वत सुविख्यात ग्रंथ 'तर्कसंग्रह' की रचना की थी। है जिसका उल्लेख कृष्णावतार में आता है। इस न्यायशास्त्र के विष्य तथा सिद्धान्तोको संक्षेप में की कथा इस भाँति है कि एक बार कार्तिकीय इसने बड़ी उत्तम रीतिसे दर्शाया है। इस विषय प्रतिपदाको सहस्रों वालजन भाँति भाँतिके भोजन का प्रारम्भिक-ज्ञान प्राप्त करने के लिये यह पुस्तक बनाकर गोवर्धनके समीप बन में गये हुए थे। अद्वितीय है। उनको देखकर श्रीकुष्णने पूछा कि बे लांग किस इसके पश्चात् इन्होंने अपनी स्वयं एक पाठ- कारणसे इतनी सामनी लेकर आये हैं। उन्हें ! शाला खोली जिसमें न्यायशासाकी उच्च शिक्षा दी उन ग्वालोसे यह विदित हुश्रा कि वे सब इन्द्रकी | जाती थी। तदीपिका, मुक्तावली तथा गदा- पूजा की तय्यारियाँ हैं क्योंकि उन ग्वालोकी | धारी आदि ग्रंथोको बड़े परिश्रमसे पढ़ाकर इस ऐसी धारणा थी कि इन्द्रपूजा से सूखा अथवा शास्त्र के अनेक उत्कृष्ट विद्वान् बनाये। अधिक वृष्टि द्वारा अकाल नहीं पड़ सकता और यह ५५ वर्ष की अवस्था में श्रीक्षेत्र मल्लिकार्जुन देश धनधान्य सम्पन्न रहता है। उन ग्वालोने के दर्शनकेलिये गये थे। इसके अतिरिक्त इन्होंने कृष्ण से भी उस पूजामें भाग लेनेका श्राग्रह किया। कदाचित् और कोई यात्रा नहीं की। यह प्रात्यन्त कृष्णने उनको समझा कर कहा कि ऐसे देवताकी सन्तोषी थे और अपने सम्मान तथा श्रात्मगौरव पूजासे क्या लाभ जो साक्षात् नहीं है, न तुम्हारे का विशेष ध्यान रखते थे। इतने बड़े विद्वान् अन्नको ग्रहण करता है। तुम 'गोवर्धन की पूजा होते हुए भी यह कभी किसी राजासे मिलने नहीं क्यों नहीं करते जो साक्षात् यहीं विराजमान हैं | गये, न कभी किसीसे कोई सहायताकी ही और जिससे लाभ भी तुम्हें अधिक होता है और प्रार्थना की। पिताका छोड़ा हुअा थोड़ा सा ही जो तुम्हारी अथवा तुम्हारे पशुओंकी रक्षा तथा धन ही इनके. जीवनयापनके लिये पर्याप्त था। पालन करता है। कृष्णके समझाने पर गोवर्धन नित्य देवदर्शन तथा सायंप्रातः दो दो घण्टे स्नान की ही पूजा की गई। जव नारद द्वारा इन्द्रको सन्ध्या पूजा पाटके अतिरिक्त यह अपना सम्पूर्ण यह समाचार विदित हुछा तो ऋद्ध हो भयंकर | समय विद्यार्थियोंके पढ़ाने में ही बिताते थे। कहा वर्षा करने लगा, किन्तु कृष्णने अपनी तर्जनी पर जाता है कि सन्तान तो इन्हें कई हुई किन्तु इनके गोवर्धनको उठाकर सब ग्वालोकी रक्षा की। अन्तकाल के लिये कोई भी नहीं बचा था। अन्त में कृष्णकी ईश्वरीय देखकर तथा अन्य्याचारी-इनकी जाति तथा कुल का अपने कार्य पर लक्षित होकर इन्द्र क्षमायाचना तो पूरा पूरा निश्चित रूपसे कुछ पता चलता नहीं करने आया। इन्द्रको क्षमा कर विदा करने पर है। कुछका मत है कि यह तैलङ्ग जातीय ब्राह्मण श्रीकृष्ण ने उनलोगों को प्रति वर्ष गोवर्धन पूजा थे किन्तु इसके लिये कोई निश्चित प्रमाण नहीं और अकूटोत्सव मनाने का आदेश किया । कृष्ण | दिया जा सकता। यह धारणा केवल इसी ने यह भी कहा कि भक्तिपूर्वक प्रति वर्ष गोवर्धन आधार पर है कि इन्होंने तैलङ्गी भाषामें 'पितामह पूजा करने वाले पुत्र, पौत्र, धनधान्यसे सम्पन्न चरित्र' नामक पुस्तक दो भागोंमें लिखी है जिसमें रहेगे। उनके ऐश्वर्य, तथा सौख्यकी प्रतिदिन सृष्टिर-चयिता ब्रह्माका वर्णन है। पुस्तक उच्च वृद्धि होती रहेगी। फलहरूप आज भी भारतके | कोटिकी लिखी हुई है, और इसके रचयिताके कोने कोने में अन्नकूट और गोवर्धन पूजाका उत्सव नाते ही यह प्रसिद्ध हैं। इनका ठीक ठीक काल प्रत्येक हिन्दू मनाता है। भी निर्णय करना कठिन है। अन्नभ-यह तैलङ्ग जातिका ब्राह्मणं बड़ा अन्नवस्त्र--(रोटी-कपड़ा, गुज़ारा.)-जो भारी नैय्यायिक हो गया है। इसका जन्म व्यक्ति किसी कारणवश अपनी वृत्ति अर्जन करनेमें

निजामकाली-शासित तैलंगणके गरिकपाद नामक अशक्त होजाता है उसे अपने भरण पोषणके लिये

गाँव में हुआ था। इसका ठीक ठीक समय तो दूसरों पर आश्रित रहना पड़ता है। उस दशामें .