पृष्ठ:ज्ञानकोश भाग 1.pdf/२७०

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अन्नवस्त्र ज्ञानकोश (अ) २४७ अन्नयन किसी व्यक्ति अथवा सम्पत्ति विशेष द्वारा अपने दि-लड़के, बिधवा भावज आदिका परिपालनाधिकार वाहकीव्यवस्था करनेका वह अधिकारी होजाताहै। व्यक्ति विशेष पर न होकर उस सम्मलित परिवार इस अधिकारको अन्नवस्त्र अथवा गुजारा कहते हैं। की सम्पत्ति पर होता है। हिन्दुओं के नियम पुत्र का अधिकार-पुत्रके पालनपोषणका उत्तर- इस परिपालनाधिकार का जितना महत्व | दायित्व उसके युवा [बालिग ] होनेतक पिता पर हिन्दू-व्यवस्थामें है उतना किसी अन्य देशकी रहता है। ऐसी ही व्यवस्था अन्य राष्ट्रों में है। व्यवस्था नहीं, क्योंकि अन्य देशों में तो थह पुत्रके युवा होनेपर इस व्यक्तिगत उत्तरदायित्वसे अधिकार केवल आश्रित पुत्रों तथा स्त्रियोको पिता मुक्त होजाता है। किंतु यदि पिता और पुत्र ही है पर हिन्दुओंमें सम्मिलित परिवार प्रथाके एक ही सम्मिलित परिवारमें रहते हो तो पुत्रके कारण परिवारके प्रायः सभी व्यक्तियों को यह युवा होनेपर भी उसके भरणपोषणका भार उस अधिकार प्राप्त है। इसके अतिरिक्त उसके विवाह सम्मिलित परिवार पर रहता है क्योंकि सम्सि- आदि समस्त धार्मिक संस्कारोंके भी व्ययका भार लित परिवारकी पैतृक सम्पत्ति में पुत्रके जन्म लेते सम्मिलित परिवारको ही उठाना पड़ता है। यह ही उसका भी उत्तराधिकार वा अधिकार होजाता दूसरी बात है कि सम्मिलित परिवार के किसी है। ऐसी दशामें जब तक विभक्त न होजाय तव सदस्यको उसकी व्यक्तिगत अयोग्यला अथवा तक पुधका युवा होनेके अनन्तर सी उस सम्मि- अन्य कारणोंसे उस परिवारकी सम्पत्तिमें उत्तरा लित परिवारकी सम्पत्तिसे भरण पोषणका अधि- धिकारका अधिकार न प्राप्त हो फिर भी भरण- कार है। इसके अतिरिक्त जिन राज्योंको विभक पोषणका अधिकार तो उसे भी मिल ही जाता है। न करनेका नियम चला आता है उनका उत्तरा- सम्मिलित परिवारके किस व्यक्तिको उत्तराधिकार | धिकार बड़े पुत्रको होता है। ऐसी दशामें सब प्राप्त है तथा कौन केवल अन्नवस्त्रकाही अधिकारी छोटे पुत्रोंको युवा होनेके बाद भी उस राज्यकी है उसके सम्बन्धमे याज्ञवल्क्य स्मृति में लिखा है-- ओरसे भरण पोषणका अधिकार प्राप्त होता है। 'क्लीवोऽथ पतितस्तजः पंगुरुन्मत्तको जडः । कन्याओं का अधिकार-विवाह पर्यन्त कन्याओके अन्धोऽचिकित्स्य रोगाद्या मर्तव्याःनिरंशकाः ॥ भरणपोषणका उत्तरदायित्व पिता पर रहता है। अर्थ-नपुंसक, पतित, पंगु, उन्मत्त ( पागल ) पिताकी मृत्यु के उपरांत वे निराश्रया होजाती हैं जड़ (मूर्ख ); अन्धा, असाध्य, रोगी, तथा उनकी | किंतु पिताकी सम्पत्तिसे भरणपोषणका व्यय लेने संतानको दाय भाग न देकर केवल अन्नवस्त्र ही का उनका अधिकार है। विवाह होजाने पर देना चाहिये। कन्याएं पतिके कुल की होजाती हैं और तबसे हिन्दूधर्म शास्त्रानुसार अन्न वस्त्रका उत्तरदा. उनके अन्नवस्त्रका भार पतिको सहन करना पड़ता यित्व दो प्रकारका होता है-एक ब्यक्तिगत और | है। पतिको मृत्युके उपरांत उसकी सम्पत्तिसे दूसरा साम्पत्तिक। परिवारके कुछ सदस्य ऐसे | अन्नवस्त्र लेनेका अधिकार विधवाओं को है। पति भी हैं जिनके अन्नवस्त्रका उत्तरदायित्व ब्यक्ति की यदि कोई सम्पत्ति न हो तो कानूनन उनके विशेष पर प्रत्येक अवस्था रहता हो है। जैसे अन्नवस्त्रका उत्तरदायी नहीं है फिर भी उसके मनुस्मृतिमें लिखा है कि- पालनपोषणका नैतिक उत्तरदायित्व कन्याके ससुर वृद्धी च माता पितरौ साध्वी भार्या सुतः शिशुः पर पड़ता है एवं उसकी भी मृत्यु होनेपर उसकी अनाचार शतं कृत्वा भर्तब्या मनुरब्रवीत् । सम्पत्ति से अन्नवस्त्र चलानेका उसका अधिकार मनु १३५ ] है। यदि ससुरकी भी कोई सम्पत्ति न होने अर्थ-वृद्ध मातापिता, पतिव्रता स्त्री एवं | फिर पितापर उसके अन्नवस्त्रका नैतिक उत्तर- शिशु संतानका सौ दुष्कर्म करके भी पालन पोषण | दायित्व पड़ता है। विवाहित एवं विधवा लड़की करना चाहिये। का उसके पिताकी सम्पत्ति पर कोई अधिकार है यह तो हुश्रा व्यक्तिगत उत्तरदायित्वका उदा- | या नहीं यह विवादास्पद विषय है। हरण । साम्पत्तिक उदाहरणके विषय में इतना ही पौत्रका अन्न वस्त्र-जन्म लेतेही उत्तराधिकार कहना पर्याप्त होगा कि सम्मिलित परिवारमें कुछ का अधिकार प्राप्त होनेके कारण पैत्रिक सम्पत्ति व्यक्ति ऐसे भी होते हैं जिनके पालनका अधिकार से पौत्रोको अन्न वस्त्र लेनेका अधिकार है पर उस सम्मिलित परिवार अथवा उस परिवारको व्यक्तिशः उनके पितामहों पर इसकेलिये कोई सम्पत्ति पर होता है। अतः बहन, बुआ. उनके उत्तरदायित्व नहीं है।