पृष्ठ:ज्ञानकोश भाग 1.pdf/२७१

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अन्नवस्त्र अन्नवस्त्रे ज्ञानकोश (अ)२४८ अनौरस सन्तति--हिन्दू कानूनके अनुसार अनौ- | करता हो जिससे उसे प्रारण जानेका भय हो तव रस पुत्रके अन्न वस्त्रका उत्तरदायित्व उसके वह खतंत्र रहकर पतिसे अन्न वस्त्र पानेकी अधि- पिता पर एवं, उसकी मृत्युके अनन्तर उसकी कारिणी हो सकती है। पतिसे अलग रहकर पैतृक अथवा स्वतंत्र अर्जित सम्पत्ति पर होता यदि स्त्री व्यभिचारिणी हो जाय तब उसका यह है। पर यह अधिकार उसी तक परिमित है। अधिकार नष्ट हो जाता है किन्तु यदि फिर वह उसके पुत्रका फिर उसमें से कुछ भी पानेका | शुद्धाचारिणी हो जाय और अपराधों पर पश्चा- अधिकार नहीं है। हाँ, अनौरस पुत्रके अन्न वस्त्र त्ताप एवं प्रायश्चित्त कर ले तब फिर उसे पत्रिके का अधिकार मिताक्षराके अनुकूल युवा होनेके अधिकार प्राप्त हो जाते हैं। किन्तु यदि उसने उपरान्त तक भी रहता है पर दायभागमे ऐसा अपनेसे किसी नीच जातिके पुरुषके साथ व्यभि- नहीं होता। इसके साथ ही यद्यपि यह भी विधान चार किया हो तब उसकी शुद्धि नहीं हो सकती न है कि जो अनौरस पुत्र हिन्दू स्त्रीसे उत्पन्न हुए हो उसको अन्नबर पानेको ही अधिकार होता है। उन्हींको अन्नवस्त्र पानेका अधिकार होता है। सम्पत्तिका उत्तरदायित्व-हिन्दू कानून में अपने तथापि अन्य धर्मावलम्बिनी स्त्रियों से उत्पन्न पुत्र | आश्रितको अन्नवस्त्र देनेका व्यक्तिगत उत्तरदायित्व सिविल प्रोसीजर कोडकी धारा ४८ के आधार माता, पिता, स्त्री और पुत्रों तक ही परिमित पर दावा कर सकता है। पर पिताकी मृत्युके है । इसके अतिरिक्त सम्बन्धियों के पालनपोषणका पश्चात् उसकी सम्पत्तिपर वह इसके लिये दावा भार सम्पत्तिपर अवलम्बित है। इसका साधारण नहीं कर सकता। नियम यह है कि जिसकी सम्पत्ति होगी उसपर हिन्दू कानूनमें अनौरस पुत्रीको अन्नवस्त्र अन्नवस्त्र के लिये अवलम्बित रहनेवाले व्यक्तियोंके पानेका अधिकार नहीं दिया गया है, किन्तु वह पालनपोषणका भार उस सम्पत्तिके उत्तराधिकारी भी सिविल प्रोसिजर कोडकी उपर्युक्त धाराके पर रहता है। यह तो ऊपर कहा ही गया है कि आधार पर उसके लिये दावा कर सकती है। सम्मिलित परिवार के सब ब्यक्तियोंके पालनपोषण माता पिता-वृद्ध माता पिताके अन्न वस्रका का भार पैत्रिक सम्पत्तिकी प्रादसे उस कुटुम्बके भार प्रत्येक व्यक्ति पर पड़ता है। और पैतृक कर्त्ता पर रहता है। सम्पत्ति न होनेकी भी दशामें अपनी उपार्जित विधवा-उत्तराधिकारके अधिकारसे जिस सम्पत्तिसे उनका पालन पोषण करनेका उत्तर- | बिधवाको उसके पतिकी सम्पत्ति नहीं प्राप्त होती दायित्व होता हैं । पुत्रके मरने पर उसकी | उसके पालनपोषणका उत्तरदायित्व (१) उसके सम्पत्तिसे अन्न वस्त्र पाने के वे अधिकारी होते हैं। पतिकी स्वतंत्र सम्पत्ति पर रहता है। (२) पति स्त्री-स्त्रीके भरण पोषणका उत्तरदायित्व पति की सम्पत्तिमैसे अन्न वस्त्र मिलनेको यह अधिकार पर व्यक्तिगत रूपसे रहता है। सम्पत्तिसे उसका पतिकी मृत्युके समय, यदि वह पतिसे स्वतंत्र और कोई सम्बन्ध नहीं, किन्तु यदि किसीने अपनी पृथक् रहती हो तो भी नष्ट नहीं होता। इसके स्त्रीका त्याग कर दिया हो तो उसी दशामें वह अतिरिक्त पतिके जीवनपर्यंत स्वतंत्र रहकर अन्न उसके सम्बन्धियोसे अन्नवस्त्र पानेकी अधिका- | वस्त्र माँगनेका अधिकार सामान्यतः स्त्रीको न भी रिणी हो सकती है जब उसके पति की सम्पत्ति हो, तो भी विधवाके विषयमें यह नियम नहीं लागू सम्बन्धियोंके अधिकारमै हो। होता। अर्थात् विधवाको पतिके ही परिवार के नियमतः स्त्रीको अपने पतिके साथ रहकर | साथ रहना चाहिये यह कोई अनिवार्य नहीं है। उसकी श्राशाओं के अनुसार चलना चाहिये । अतः ! ससुरालको छोड़कर यदि वह पिताके तथा अन्य पतिसे स्वतंत्र रहनेकेलिये अन्नवस्त्र पाने का | किसीके घर रहे तब भी उसका अनवस्त्र लेनेका किसी स्त्रीको अधिकार नहीं है। किन्तु यदि पति यह अधिकार सर्वदा बना रहता है। किन्तु यदि स्वयं उसे अपने साथ रखना न चाहे अथवा कोई वह स्वतंत्र रहकर व्यभिचारिणी होजाय या कोई अन्य उपयुक्त कारण हो तो वह अन्नवस्त्र पानेकी अयोग्य आचरण करे तो उसका अन्नवस्त्रका अधिकारिणी हो जाती है। पति के दूसरा विवाह अधिकार नष्ट हो जाता है। मृत पतिकी सम्पत्ति कर लेने या साधारण झगड़ा-लड़ाई से यदि कोई यदि बहुत कम हो तब भी न्यायालय उसे अन्नवस्त्र स्त्री पतिसे अलग रहकर अन्नवस्त्र लेना चाहे तो नहीं दिला सकता। विधवाके पुनर्विवाह करने उसे नहीं मिल सकता। किन्तु यदि पति उसके | पर उसके पहले पतिके परिवारसे मिलनेवाला साथ अत्याचार करता हो अथवा ऐसा वर्ताव | अन्नवस्त्रका अधिकार नष्ट होजाता है । हिन्दू विध- !