पृष्ठ:ज्ञानकोश भाग 1.pdf/२७२

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अन्नवस्त्र ज्ञानकोश (अ) २४६ अन्नवस्त्र वाविवाह कानून १८५६ धारा २]। जबतक वैवाहिक सम्बन्ध बना रहे. तभीलकरहता अनाबस्यक खर्चकी रकम-विधवाके भरणपोषण है। इस सबन्ध विच्छेद (Divorse ) होने की रकम ठहराते समय (१) उसके पतिकी अथवा विधवा हो जानेपर वह अधिकार नष्ट सम्पत्ति का मूल्य (२) समाजमें उसका स्थान हो जाता है। किंतु, पतिपत्नीको एक दूसरे को और ( ३) विधवाकी श्रावश्यकताएँ एवं उसके | छोड़ देने के समय अलग रहकर जो समय व्यतीत धार्मिक कृत्योंका विचार किया जाता है। इसके करना पड़ता है उस समयमें भी अन्नवस्त्रका अतिरिक्त उस विधवाके पास वस्त्र तथा अलंकार अधिकार होता है । मुसलमानी कानूनके अनुसार श्रादि अनुत्पादक स्त्रीधनके अतिरिक्त यदि दूसरा एक समय चार ही स्त्रियोंसे विवाह करने की द्रव्योत्पादक धन अथवा जीविका चलाने योग्य आशा । अतः पाँचवीं या इससे अधिक स्त्री दूसरा स्वतंत्र धन हो तो उस विधवाको अन्नवस्त्र या स्त्रियों को उत्तराधिकार या अन्नवस्त्रका अधि- माँगनेका अधिकार नहीं होता। कार नहीं होता। अन्य व्यक्तियोंके पालनपोषणकी रकम निश्चित पुत्र-पुत्र तथा पुत्रियोंके अल्पवयस्क रहने करते समय भी ऊपर कही तीनों बातों पर ध्यान तक [इण्डियन मेजारिटी एक्ट Indian Majority देनेका नियम है । उसी तरह मृत ब्यक्तिकी Act के अनुसार ] उनके पोषणका भार पितापर सम्पत्तिमें जो अंतर होगा उसोके परिमाणमें अन्न होता है । पर लड़के के युवा [ वालिग] होतेही वस्त्रके अधिकारमें भी अंतर होगा। यह उत्तरदायित्व समाप्त हो जाता है। हाँ, यदि मुसलमानी कानून युवा पुत्र अशक्त हो और पिता धनी हो तो उसपर अन्नवस्त्र---पुरुषों की तरह स्त्रियोंके भी मायके की लड़के के पालन पोषण का भार रहता है। इसके सम्पत्तिमे उत्तराधिकारका अधिकार मिलने के कारण विपरीत छोटे लड़केसे उसकी योग्यताके अनु. तथा हिन्दू कानूनके समान सम्मिलित परिवार- रूप द्रव्योत्पादक काम कराकर अधिक आमदनी पद्धति न होनेके कारण मुसलमानी नियमोंमें अन्न करानेका पिता को अधिकार है। लड़कियोंके वस्त्र के अधिकारको क्षेत्र बहुत कुछ मर्यादित होता विवाह पर्यन्त एवं वैधव्य अथवा तलाक होनेपर । जिस पुरुष या स्त्रीको निजकी सम्पत्तिमेसे पालनपोषणका भार पितापर रहता । यदि अपना खर्च चलानेकी व्यवस्था हो वैसे किसी भी निर्धनताके कारण पिता उनका पालन करनेमें व्यक्ति को अपने अन्नवरूका भार दूसरों पर डालने असमर्थ हो और उनके दादा या माता अच्छी का कोई अधिकार नहीं है, यहाँतक कि मुसल- स्थितिमें हो तो वे उनके पालनपोषणके जिम्मे. मानी कानूनके अनुसार स्त्रीको भी सदा अन्नवस्त्रदार हैं। उसके अनन्तर यदि पिताकी स्थिति का अधिकार प्राप्त नहीं होता। अच्छी हो जाय तब वे उससे इसके सम्बन्ध स्त्री-साधारण नियम यही है कि पतिको स्त्री, खर्च की हुई रकम वसूल कर सकते हैं। कोई का पालनपोषण करना चाहिये, किन्तु पतिका यह मुसलमान यदि अपनी स्त्री अथवा औरस या उत्तरदायित्व तभी तक बना रहता है जबतक अनौरस पुत्रों का पालन करना नहीं चाहता हो खो उसके उपयोगमे श्राती हो । उदाहरण के लिये तो वह स्त्री, औरस या अनौरस लड़के सिविल यदि स्त्री वैवाहिक सम्बन्ध पूरा करने के अयोग्य प्रोसीजर कोड़की धारा ४८८-४६० के अनुसार हो अर्थात् पाल्पवयस्का हो, या श्राशाकारिणी न अनवस्त्रके खर्च की रकम का दावा कर सकते हैं। हो या कानूनके अनुसार, कारण न होनेपर भी माता पिता-अपने श्रमसे द्रव्य उपार्जन पतिको न चाहती हो या उसके अधिकारमें न करने में समर्थ होते हुए भी निर्धन माता पिताके रहती हो तो उसे छान्नवस्त्रका अधिकार नहीं पालनपोषणका भार उनकी योग्य संतति पर प्राप्त होता। किन्तु यदि ऊपर लिखे कारणों में समान रूपसे रहता है। उदाहरणार्थः-एक कोई भी न हो तो स्त्री चाहे निर्धन या धनी, मुस- निर्धन पिता का एक लड़का है जिसकी श्राय लमान धर्मको या इतर धर्मकी, उपभुक्त या अनु- तीन हजार रुपये की है तथा एक लड़की भी है पभुक्त, कैसी भी क्यों न हो उसे अन्नवस्त्र देनेके जिसकी प्राय पन्द्रह सौ रुपयेकी है । ऐसी दशामें लिये पति बाध्य होता है । वह स्त्रो भविष्य | कानून यही कहता है कि वह लड़का तथा लड़की जीवन के लिये अन्नवस्त्रका दवाकर सकती है पर | दोनो ही को उचित है कि अपने माता पिताके व्यतीत समयके अन्नवस्त्रका उसे कोई अधिकार, पालनके लिये यदि पचास रुपये की आवश्यकता नहीं होता। साथही अन्नवस्त्रका यह अधिकार हो तो प्रतिमास पचीस-पचीस रुपये दिया करें। ३२