पृष्ठ:ज्ञानकोश भाग 1.pdf/२७५

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अहिलवाड़ श्रह्निलवाड़ ज्ञानकोश (अ) २५२ सेनापति खासखाँ को नहरवाल भेजा, जहाँले सोलंकी वंश-चावड़ा वंशके पश्चात् सोलंकियों वह अतुलित संपत्ति तथा सहस्त्रों कैदी लाया। ने यहां अपनी राज सत्ता स्थापित की। प्रथम सुल्तान अलाउद्दीनने सन् १३८० ई० में गुजरात | सोलंकी राजा मूलराज था। इस वंशका द्वितीय जीतने पर, अपने सरदार उलूथखां को सोमनाथ राजा चामुण्ड था। इसीके राजकालमें गजनीके का नाश करने को भेजा । खाँ ने अलाउद्दीन की महमूदने अन्हिलवाड़ पर धावा किया । चामुण्ड आज्ञानुसार सोमनाथका नाश किया और उसकी | को पराजित कर वह सीधा सोमनाथ पर चढ़ सबसे बड़ी मूर्ति अलाउद्दीनके पास भेज दिया। | दौड़ा, जहाँ वल्लभसेन तथा भीमदेव नामके दो चाबड़ा धराना-पंचासरका राजा जयशिखर राजपुत्रीने उसका सामना किया, पर वे भी परा- कल्याणके सोलंकी राजासे युद्ध करते हुये मारा- | जित हुए। सोमनाथसे लौटकर महमूदने वर्षाके गया, तब रूपसुन्दरी प्राणरक्षणार्थ अपने भाई के चार मास अन्हिलवाड़में ही विताये। महमूदने साथ जंगलमें भाग गई। इसके पुत्र बनराजने दुलभको यहांका मांडलिक बनाया। दुलभका धन- अनेक वीरता-सूचक कार्य किये और चंपानेर | वायब हुश्रा दुलभ सरोवर यहाँ वर्तमान है। तथा अन्हिलवाड़ नामक दो नगर बसाया। उपरोक्त लड़ाईमें बल्लभ तो महमूदका कैदी अहिलवाड़ का नामकरण उस कर्मचारीके नाम- | होगया था, किन्तु भीमदेव स्वतन्त्र ही रहा और पर हुआ, जिसने इस स्थानको चुनकर यह नगर | इसने महमूदको अत्यन्त कष्ट पहुँचाया। भीम- वसाया । यही वनराज चाबड़ा घराने का देव, उसके पुत्र करणदेव तथा उसके पौत्र सिद्ध- मूल पुरुष है। राज तथा जयसिंहके समय सोलंकी राज्यका एक दूसरी दन्तकथा . * के स० १८७५ ई० विस्तार वहुत बढ़गया था। इसके अन्तर्गत दक्षिण की पुस्तकमें दी हुई है । बतराजका पूर्वज में कोल्हापूरसे लेकर मालवातक (संभवतः गंगा वेणीराजाका पिता बचरोज था! वचराज दीव तट तक) की सम्पूर्ण भूमि थी, जिसमें १८ रिया- गढ़पर राज्य करता था। उसके पुत्र वेणीराजाने | सते थीं । समुद्रकी शपथ लेकर एक व्यापारीको धोखा सिद्धराजके बारेमें अनेक किंबदन्तियां प्रच. दिया था, इसके फल-स्वरूप समुद्रने दीवगढ़को लित हैं। इसके पश्चात् कुमारपालने राज्यारोहण बहा दिया। राजाकी गर्भवती स्त्री वहांसे भाग किया। यह जैन श्राचार्य हेमचन्द्रका शिध्य था। गई। चांदरमें रानीने एक पुत्र प्रसव किया। यह कहा जाता है कि इसने कुमारविहार नामक जिसका बनराज नाम पड़ा। इसको अन्हिल पारसनाथका मन्दिर बनवाया। एक बार स्वप्नमें गड़ेरियाने पटुनमें गड़ा हुआ धन दिखलाया, महादेवजीने अन्हिलवाड़में आनेका विचार जिससे उसीके नामपर वनराजने 'अन्हिलवाद प्रगट किया, इसलिये उसने एक मन्दिर वहां भी नामक नगर बसाया। बनवाया। इसीके पुत्र लवणप्रसादके वंशज बघेल श्राईने अकबरीमें इस वंशके सात राजाओंके | वंशी नामसे गद्दीपर बैठे। नाम दिये हैं-रामराज, जोगराज, खेम या भीम भीमदेव द्वितीयके समयमें सोलको बंशका राज, पिथु, विजय सिंह, रावत सिंह और साँवल अन्त हुअा। इसने ११६४ ई० में कुतुबुद्दीनको सिंह । सांवलसिंहने सोलंकी घरानेके मूलराज पराजित कर उसे अजमेरमें रोक रखा। किन्तु को अपना राज्य दे दिया। स०६४ई० में बनराज | आगे चलकर कुतुबुद्दीनने नगरके समीप ही के गुरु तथा माताके प्रयत्नसे पंचासरमें पारस- उसके सेनापति जीवनरायको पराजित किया, नाथ का मन्दिर बना; जिसकी मूर्तिसे यह प्रगट | जिस पर भीमदेव राजधानीसे भाग गया। एक होता है कि राजाने श्रावकोंको श्राश्रय दिया था। बार फिर ११६६ ई० में अपने सब साथियों को किन्तु पट्टनकी दो मूर्तियाँ-उमामहेश्वर तथा एकत्रित करके उसने मुसलमानोका सामना किया। गणेशजोको देखनेसे यह ज्ञात होता है कि उसकी मुसलमानौने गुजरातको नष्ट कर अन्हिल- कृपा ब्राहणोपर भी थी। इन मूर्तियोंपर बनराज बाड़ पर अधिकार जमाया और 'नहरवाल' तथा नगरके स्थापनाका वर्ष सं०७०२ ई० खुदा नामसे उसे पुकारने लगे। हुआ है । फोर्स कहता है कि यहां के प्राचीन राजा वाघेलवंश-मुसलमानोंको शीघ्र ही अन्हिल- उदार थे। उन्होंने कभी किसी मत्त विशेषके प्रचा- | वाड़ छोड़ना पड़ा, किन्तु इसको शक्तिका दिन रकोंकी हानि नहीं की। यहां शैव तथा जैन प्रचारक प्रति दिन ह्रास होता गया। वाघेल राजाओंकी शान्ति पूर्वक अपने अपने मतका प्रचार करते थे। खतन्त्रता ( १२१४-१३०३) लगभग एक शताब्दी