पृष्ठ:ज्ञानकोश भाग 1.pdf/२७८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

अपकृत्य ज्ञानकोश (अ).२५५ अपकृत्य सदस्यको भगा ले जाना इत्यादि अभियोग अरते | विचारसे न शरीरो ब्राह्मणे दंडः', अर्थात् ब्राह्मण हैं। दूसरे प्रकारके अपकृत्य उन्हें कह सकते हैं को शारीरिक दंड नहीं देना चाहिये। परब्राह्म- जब स्वामित्व तथा बैसे ही दूसरे अधिकारों में गोको आर्थिकदंड भी नहीं दिया जाता था। बाधा पड़ती है। इसमें दूसरेकी भूमि पर दिना | स्मृतिकारोंने आर्थिकदण्डसे संचित् द्रव्य कभी श्राज्ञा लिये जाना, उनपर कञ्जा कर लेना, तथा भी, 'अपकृत्य विवान' की भांति, वादीको नहीं सम्पत्ति सम्बन्धी दूसरे वैयक्तिक अधिकारों पर देनेको कहा है : सारा धन राज्यको प्राप्त होता धक्का पहुँचाना इत्यादि अपराध सम्मिलित हैं। था। भारतमें पहिले दीवानी तथा फौजदारी दो तीसरे प्रकारका अपकृत्य उसे कह सकते हैं जब प्रकारके न्यायालय नहीं थे। सभी प्रकारके अभि- किसीके इस्टेट ( Estate ) के विरुद्ध कार्य होता योग एक ही न्यायालयके सम्मुख पाते थे। इस है। इस्टेटका ब्यापक अर्थ यहाँ पर लिया गया प्रकार भारतमें 'अपकृत्य विधान' तथा 'अपराध है, जिसका अर्थ होता है-जीवित व्यक्तिका ! सम्बन्धी विधान (Criminal Code) में कभी भी स्वास्थ्य सुख तथा लाभ । इसमें कपट, वैर वश | ऐसा अन्तर नहीं रहा, जैसा कि वर्तमान समय में झूठा दावा करना तथा मानहानि सम्मिलित है। देखा जाता है। अपकृत्य' के विचार दीवानी चौथे प्रकारके अपकृत्यमें जो अपराध पाते हैं वह श्रादालतमें होते हैं है शरीर, सम्पत्ति अथवा इस्टेट (Estate.) को अंग्रेजी राज्यमें अपकृत्यका विधान---उपरोक्त वर्णन- हानि पहुँचाना, चाहे उस कार्य विशेषसे इन से प्रगट है कि 'अपकृत्य विधान' भारतमै अंग्रेज़ी सबको हानि पहुँचे अथवा इनमेसे किसी एकको । कानूनसे लिया गया है। पर पीनल कोड (Penal असावधानीसे उन नियमोका उल्लङ्घन करने से जो Code) की भांति यह स्वतंत्र भौतिसे कभी 'पास' पड़ोसके तथा अन्य लोगोंके सम्बन्ध बनाये गये नहीं किया गया। इसका स्वरूप दीवानी अदा- हैं, शरीर, सम्पत्ति तथा इस्टेटको हानि पहुँचने लतोके दिये हुये फैसलों से क्रमशः निर्धारित हुआ, से मनुष्य अपकृत्य का दोषी हो जाता है। इसलिये इसमें कुछ इंगलैण्डके नियमोसे भिन्नता केवल ऐतिहासिक परिस्थितियोंसे सम्बन्ध | मालूम होती है। उन्हीं भेदों पर प्रकाश डालनेका रखनेवाली परिस्थितिको छोड़कर अन्य कार्य- यहाँ प्रयत्न किया गया है। पद्धतियों में 'अपकृत्य के विधानसे कहीं अधिक ऐसे कृत्य जो 'अपकृत्य के शीर्षकमें भी लाये लाभदायक सम्पत्ति सम्बन्धी. विधान हो सकते | जा सकते हैं, उनपर यदि वादी चाहे, तो फौज- हैं। सम्पत्ति सम्बन्धी विधानसे अपनी स्थावर | दारीमै भी मामला चलाया जा सकता सम्पत्ति फिर मिल सकती है. यदि वह | ऐसे कृत्योंका फैसला दोनों प्रकारके न्यायालयोसे अन्याय से किसी दूसरेके अधिकारमें चली : करा लेता ही उचित है। प्रानिर्णय ( रेसजुडि- गई हो । यहाँ रोमके विंडकेशियो (Vindi- केटा) अथवा अन्तर भावना (मर्जर) के तत्वा- catio) के अनुसार खुली तौरसे सम्पत्तिका नुसार दोनों न्यायालयों के निर्णय में समानता अधिकार स्थापित नहीं हो सकता। श्रसावधानी | होनी चाहिये । यद्यपि यह प्रश्न उपस्थित किया तथा उपद्रव के विधान भी नये हैं। सबसे नया | जा सकता है किन्तु प्राङिनर्णयके तत्वको यहाँ विधान अनुचित प्रतियोगिता विधान' (Unfair | लागू नहीं करना चाहिये। इससे यही तात्पर्य Competition) इसका महत्व बढ़ रहा है। आधु. ! निकलता है कि एक ही अपराध पर दोनों अदा- निक 'अपकृत्य' तथा रोटके एक्सडेलिकटो'(Ex- | लतोंमें मामला चलाया जा सकता है । भारतले delicto) और कासिएक्सडेलिक्टो (Quasi exde- | इंगलैएडके नियममें अब भी एक विशेष अन्तर है। ticto) में बहुत साम्य है। इससे प्रकट होता है वहाँका श्राव यह नियम हो गया है कि बिना फौज- कि यदि 'अपकृत्य विधान' उनसे लिया नहीं गया दारी अभियोग चलाये, केवल दिवानीमें अपनी. है, तो उनपर अवलम्बित तो अवश्य है। क्षतिपूर्ति के लिये दावा नहीं किया जा सकता। अपकृत्य तथा भारतवर्ष-~-अपराध सम्बन्धी इस विषयमें मद्रास हाईकोर्दका यह स्पष्ट निर्णय (Criminal) विधान तथा 'अपकृत्य विधान' में है कि यह कोई आवश्यक नहीं है कि वादी पहले मुख्य अन्तर यह है कि 'अपकृत्य के लिये शारी- फौजदारी करके ही दिवानी कर सकता है। प्रत्येक, रिक दंड नहीं मिलता, केवल आर्थिक दंड ही जिले तथा ताल्लुकेके न्यायालयों में भी यही नियम दिया जाता है। वह धन भी सरकारको न मिल- चला भाता है। कलकत्ता हाईकोर्ट ने इस सम्बन्ध कर वादी को मिलता है। भारत के स्मृति-कारोके | में अपने कुछ अलग ही नियम बना रवखे हैं। । अतः