अपस्मार ज्ञानकोश (अ)३६१ अपस्मार तक दौरे होने लगते हैं। यदि दौरा कड़ा हो देखने से, सुधनो सुधानेसे अथवा शारीरिक पीड़ा जाता है तो कुछ दिन तकके लिये रोगीको छुट्टी इत्यादि पहुँचानेसे ढोगीका पता सरलताले लग मिल जाती हैं। मद्य सेवन, अति मैथुन, अति | जाता है। अहार, मानसिक तथा शारीरिक परिश्रमके अधि- रोगके अनेक कारण होते हैं, और सबसे पहले कतासे दौरे अधिक होने लगते हैं। बहुधा देखा इसी बातका निश्चय कर लेना आवश्यक है कि गया है कि रजखला कालमें स्त्रियोंको अधिक दौरे रोगका मुख्य कारण, अथवा दौरे किस प्रकारके होते हैं। हैं। बहुधा इसका प्रारम्भ रातको सोते सोते भी उमापस्मार-जब रोगी को निरन्तर ही दौरे होने लगता है और शुरूमें इसका पता भी नहीं होते होते ज्वर आने लगता है, तो रोग असाध्य रहता। ऐसी अवस्थामें यह पूछना चाहिये कि सा हो जाता है। उसमें वहुधा मृत्यु भी हो | रोगीको सुप्तावस्थामे विछौने पर ही तो मूत्र-त्याग जाती है। देखा गया है कि जिन दिनो दौरे नहीं | तो नहीं होता है। श्राते, रोगी हृष्ट पुष्ट तथा विल्कुल स्वस्थ देख साध्यासाध्य विचार-जिसको बाल्यावस्था ही पड़ता है। किन्तु जब दौरे जल्दी जल्दी आने से यह रोग हो जाय और युवा होने तक अच्छा लगते हैं, तो रोगीको अवस्था भी बिगड़ने लगती न हो तो फिर अच्छा होनेकी बहुत कम आशा है। उसका खभाव चिड़चिड़ा तथा उदास हो रह जाती है। यदि रोग बड़े होने पर ही प्रारंभ जाता है। उसका मन तथा हृदय अत्यन्त दुर्वल हुआ तो अच्छे होनेकी श्राशा की जा सकती है। जाता है। उसकी बुद्धि तथा स्मरण शक्तिका यदि दौरे केवल दिन अथवा रात्रिको ही अथवा नाश होने लगता है, और कभी कभी तो पागल नियत समय अथवा अवधि पर आते हो, तो भी तक हो जाता । उमापस्मारके अतिरिक्त इस साध्य हो सकते हैं। जिन रोगियोको मिश्रित रोगसे मृत्यु कठिनतासे ही होती है, किन्तु दौरेमें | दौरे आते हैं वे दुस्साध्य समझने चाहिये। जिस बहुधा अन्य कारणोंसे रोगीको मृत्यु तक हो प्रकारके दोरेमें अनुभवशक्तिका पूर्णतया लोप जाती है। अचेत होनेके कारण बहुधा पानी में नहीं हो जाता, वे भी सुसाध्य कहे जा सकते हैं । डूब कर, ऊँबेसे गिरकर, प्रागसे जलकर, अथवा बहुतसे रोगो केवल नियमित जीवनचर्या करते ऐसे ही अनेक कारणोंसे रोगी मर जाता । रहनेसे भी रोगसे छुटकारा पा जाते हैं। दवार पहलेसे कुछ अनुभव न कर सकने के कारण से तो रोगी जड़से बहुत कम बिल्कुल अच्छे हो अक्सर चलते चलते, साइकिल पर घूमते घूमते, पाते हैं। यदि खानपान, मैथुन इत्यादिमें तनिक भोजन बनाते बनाते तक दौरा हो जाता है, जिससे भी अनाचार हुआ तो ऐसे मनुष्योंको रोग फिरसे भयंकर परिणाम हो जाता है। ऐसा अनुभव है कि धर पटकता है । अनुभवेन्द्रिय अथवा मेंदूमें कुछ विकार हो जानेसे औषधोपचार-औषधि से बहुधा तो दौरे में यह रोग हो जाता है, क्यों कि इसीके विकारसे तात्कालिक लाभ पहुँचता है, किन्तु बहुत काल हाथ पैर पटकना संभव हो सकता है। बेहोशी तक नियमित रूपसे चिकित्सा करते रहने से कभी होना भी इसी मतकी पुष्टि करता है। कभी लाभ हो जाता है। इसके रोगियोके लिये रोग निदान-यदि रोगीको दौरेको अवस्थामें बहुत सी नैसर्गिक बाते भी औषधिके साथ साथ देखा जाय तो रोगका निदान किया जा सकता अत्यन्त आवश्यक है । उनको हलका तथा है। बिना ध्यान पूर्वक देखे उन्माद अथवा इस पौष्टिक भोजन व्यवहार में लाना चाहिये। ताजा रोगके दौरेमें सन्देह हो सकता है। उन्मादके फलोका अधिक सेवन करना चाहिये। सुर्य दौरे में रोगी किसी एकही क्रियाको बराबर करता प्रकाश तथा शुद्ध वायु उनके लिये नितान्त श्राव- रहता है, दौरा भी अधिक स्थायी होता है। यदि श्यक है। यदि उनके नेत्र, दाँत, पेट में कोई रोगीको शारीरिक पीड़ा पहुँचाई जाती है तो यह | विकार हो तो उनका उपाय करना चाहिये। मांस उसका अनुभव करता है। किन्तु इस रोगके दौरे मदिरा अथवा कोई भी उत्तेजक पदार्थ व्यवहार में दाँत बैठ जाते हैं, चेहरा काला हो जाता है में न लाना चाहिये। बहुत अधिक भोजन न और मनुष्य अनुभव शून्य हो जाता है। बहुधा | करना चाहिये। रात्रिका भोजन सोनेसे कमसे नीच प्रकृतिके मनुष्य स्वार्थ साधनके लिये इस कम तीन घण्टे पहले करना चाहिये। पेट साफ प्रकार के ढोग भी रचते है, किन्तु इसका पता रहना चाहिये । परिश्रम भी नियमित और हलका बड़ी सुगमतासे लग जाता है। आँख इत्यादिको करना चाहिये। क्रोध, चिन्ता तथा उत्तेजनासे
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