पृष्ठ:ज्ञानकोश भाग 1.pdf/२८६

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. अपीनस ज्ञानकोश (अ)२६३ अपीनस २०७० ई० में तुर्कोंने इसपर अधिकार कर लिया रोगीके दोनों नासिक-पुटिकाओं में से क्षत होकर था। १३वीं शताब्दोसे यह मुसलमानोंके ही नाव यहता है। उपदंश वाले रोगीकी अवस्था शासनमें रहा। वहुत काल तक यह एशिया माइ अन्य कारणोंसे भी ठहराई जा सकती है। छोटे नरका प्रधान नगर समझा जाता था। प्रोको. | बच्चोंके रोगनिदानमें विशेष कठिनताका अनुभव रोमन कालके अनेक शिलालेख अब तक पाये होता है। जाते हैं। नावका प्रमाण हरेककी प्रकृतिके अनुसार (३) युफ्रेटीस नदीके किनारे पर बसा हुआ अलग अलग होता है। प्राकृतिक हेर-फेरसे भी एक नगर। असूरियन लोगोंके लेखोंमें इसका इसपर प्रभाव पड़ता है। सर्दी, श्रमातिरेक उल्लेख, 'तिलबार सिप' के नामसे आया है तथा तथा स्त्रियोंकी रजस्वलावस्था में यह बढ़ जाता है । वर्तमान समयमै यह विरेज़िकके नामसे वह स्राव भी भिन्न भिन्न रोगीका भिन्न भिन्न अवस्थामै प्रसिद्ध है। भिन्न भिन्न प्रकारका होता है। यह स्राव पतला (४) विथिनियाका पुराना नगर मिरलिया' अथवा गाढ़ा, मवाद (पीप) के सदृश अथवा का यही नाम था। पहले प्रशियसने इसको बसा. रेठाके समान, रङ्गहीन अथवा पीला, हरा अथवा कर यही नाम रक्खा था। लाल भी होता है। · रक्तके बिन्दु भी कभी कभी ५) स्टिफेन्स तथा सिन्नी द्वारा उल्लिखित देख पड़ते हैं। कभी कभी जमा हुआ पदार्थ नाक एक नगर। से निकलने लगता है। इसमें अत्यन्त दुर्गन्धि (६) राघीके समीपपर्थियाका एक ग्रीकनगर। होती है। इस विकारसे नाककी हड्डी सड़ तक अपीनस-यह एक नाकका रोग है। इसे जाती है और जिससे मनुष्यमें अत्यन्त कुरूपता अंग्रेजोमे श्रोजीना (Ozaena ) कहते हैं। खास श्रा जाती है। उपदंशके कारणसे जिनको यह नाक अथवा उसके समीप तनिक ऊपर की ओर रोग होता है उनको नाक सड़कर कुरूप होनेका एक गट्टा सा हो जाता है। इसमें दुर्गन्धयुक्त अधिक भय रहता है । निरन्तर स्त्राव बहो करता है। इसे नाकका रोग-परीक्षा-दाँतोंके विकार के कारण, मुख स्वतन्त्र रोग न कह कर यदि नाकके विकारके अथवा गलेके क्षतके कारण, नाकमें कोई वाह्य ‘कारण अथवा नाकके भीतरी श्लेष्मत्वचामें के पदार्थके अटक कर रह जानेके कारण या प्रकृति क्षतके कारण यह रोग उत्पन्न हो जाता है। कुछ क्रिया के बिगड़ जानेसे खासमें दुर्गन्धि श्राने लोग इसे पीनस' भी कहते हैं, यद्यपि पीनसका रुगती है, और ऐसी ही दुर्गन्धियुक्त श्वास अपी- अर्थ जुकाम भी होता है । वैद्यक शास्त्रमें इसका | नसके रोगियोंकी भी होती है। अतः पहले रोग बड़े ब्योरेसे वर्णन मिलता है। का ठोक ठोक कारण तथा परीक्षा कर लेनी कारण इस रोगके अनेक कारण हो सकते आवश्यक है। हैं। उपदंश, गण्डमाला, विकारयुक्त क्षत, नाककी चिकित्सा-इस रोगमें औषधिका लगाने भीतरी हड्डोमें कीड़ा लगना या सड़ना, नाकमें ( External ) तथा खाने ( Internal ) दोनों कोई वाह्य विकार युक्त पदार्थका प्रवेश कर जाना ही प्रकारका प्रयोग करना चाहिये । सबसे अथवा अटके रहना इत्यादि ही इसके मुख्य पहले कारण निश्चय करना आवश्यक है। तद्- कारण होते हैं। कभी २ उपरोक्त किसी कारण नन्तर इस कारणका ही समूल नष्ट करने का उपाय के बिना इस रोगका प्रादुर्भाव हो जाता है और करना चाहिये। सबसे अधिक आवश्यक बात इसका ठीक ठीक कारण निश्चय करना कठिन हो है नाकको पूर्णरूपसे हर समय स्वच्छ रखना । जाता है। ऐसी अवस्थामें इसे स्वतंत्र रोग मान | ऐसा करनेसे काफी बढ़ा हुश्रा रोग भी साध्य हो लेते हैं। । कुछका मत है कि पेटमें पारा अधिक सकता है। साकको स्वच्छ रखनेसे तात्पर्य यह प्रमाणमें पहुँच जानेसे इस रोगका प्रारम्भ हो है कि बहनेवाले स्नावको नाकमें बिल्कुल जमने न जाता है। दिया जाय.नं उसमें जमकर सूख जानेवाली खप- लक्षणे-नाकके बिल्कुल ऊपरी भाग में जो लियोको ही रहने देना चाहिये। नाकको साफ क्षत होता है उसोका इस रोगसे सम्बन्ध हो करते समय योग्य साधनोंकी सहायता लेते रहना सकता है। राडमाला वाले मनुष्यके नाकके चाहिये। नाकको इस प्रकार धोना चाहिये कि किसी एकहों छिद्र क्षत होकर उसमें से धीरे धीरे नाकके भीतरसे खपली निकल जाय परन्तु उसको दुर्गन्धयुक्त स्राव बहने लगता है, किन्तु उपदंशके जगह दूसरी न जमें। यदि स्रावको भीतर ही